महाभारत युद्ध में मारे गए योद्धाओं को जीवित किसने और क्यों किया ?

एक बार धृतराष्ट्र के मन में वानप्रस्थ आश्रम में जाने का विचार आया और धृतराष्ट्र के साथ गांधारी, विदुर, संजय और कुंती भी वन में चले गए।



यहां महर्षि वेदव्यास से वनवास की दीक्षा लेकर ये सभी "महर्षि शतयूप" के आश्रम में रहने लगे। 


काफी समय,  बीतने के बाद युधिष्ठिर के मन में वन में रह रहे धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती को देखने की इच्छा हुई। तब सुभद्रा, द्रौपदी और पांडव भी उनसे मिलने के लिए गए।


वन में महर्षि व्यास जी भी थे। तब गांधारी ने युद्ध में मृत अपने पुत्रों तथा कुंती ने कर्ण को देखने की इच्छा प्रकट की। द्रौपदी और सुभद्रा ने भी कहा कि वह युद्ध में मारे गए अपने मृत परिजनों को देखना चाहते हैं। महर्षि वेदव्यास ने कहा कि ऐसा ही होगा।


व्यास जी ने गंगा तट पर सबको बैठने को कहा और खुद वे गंगा नदी में प्रवेश करके पांडवों और कौरवों के युद्ध में मरे सभी लोगों का आह्वाहन करने लगे।


जल के अंदर से कौरवों और पांडवों की सेना प्रकट हो गई। भीष्म, द्रोण, दुर्योधन और उसके सभी भाई, शकुनि, कर्ण, अभिमन्यु, द्रौपदी के पांचों पुत्र, घटोत्कच और युद्ध के सभी सैनिक जीवित हो गए।


गांधारी ने अपने दिव्य ज्ञान बल से और धृतराष्ट्र व्यास जी से मिली दिव्य दृष्टि से अपने सभी पुत्रों और बाकी सभी का दर्शन किया।

सारी रात अपने मृत परिजनों के साथ बिता कर सभी के मन में संतोष हुआ। अपने मृत पुत्रों, भाइयों, पतियों व अन्य संबंधियों से मिलकर सभी का संताप दूर हो गया।

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