भारत - चीन संबंध आजादी के बाद कैसे थे ?

 हिंदी चीनी भाई भाई का युग

1947 में भारत की आजादी तथा 1949 में साम्यवादी दल द्वारा "चीन की मुक्ति " से एशिया और विश्व में एक नये युग का आरंभ हुआ। भारत को  आजादी के साथ ही एशिया से यूरोपीय प्रभुत्व का भी अंत हो गया।


दोनों देशों की आजादी के बाद के दौर में दोनों देशों के नेताओं ने एक दूसरे की आकांक्षाओं और नीतियों की ठोस और वास्तविक समझ के बिना ही हिंदी - चीनी भाई भाई के युग को बढ़ावा दिया।


उनकी एकता का आधार दोनों देशों की साम्राज्यवाद - विरोधी सोच थी, लेकिन जैसे ही दोनों बड़े देश अपने शासन की वास्तविकताओं से रूबरू हुए ,उनकी यह एकता और दोस्ती सतही और क्षणिक सिद्ध हुई।

चीन में भारतीय राजदूत पणिक्कर

कोमिंतांग सरकार के समय चीन में भारतीय राजदूत के पद पर सरदार के. एम. पणिक्कर  काम कर रहे थे।

के. एम. पणिक्कर  

अंत में 1949 में उन्हीं को दुबारा भारतीय राजदूत बनाकर चीन भेजा गया। पणिक्कर के प्रयत्नों से भारत और चीन के बीच अच्छी दोस्ती की शुरुआत हुई।  


पणिक्कर ने बताया कि चीनी क्रांति एशिया के नवजागरण का प्रतीक है और चीन की नई स्थापित सरकार वहां के लगभग 100 साल पुराने विकास का परिणाम है।
क्रांति के बाद साम्यवादी चीन को मान्यता देने वाले आरंभ के कुछ देशों में भारत भी था।

चीन को भारत की मान्यता 

भारत ने 30 सितंबर 1949 को साम्यवादी चीन को मान्यता दी। कुछ ही समय के बाद चीनी क्रांति की सफलता और भारत की मान्यता पर लोकसभा में टिप्पणी करते हुए, 

प्रधानमंत्री नेहरू ने कहा कि - 

" यह करोड़ों व्यक्तियों के जीवन में आमूल क्रांति थी। इसके परिणाम स्वरूप एक स्थायी और लोकप्रिय सरकार की स्थापना हुई। इसका हमारी पसंद या नापसंद से कोई भी संबंध नहीं है। इसलिए ,स्वाभाविक था कि हमने इस नई सरकार को मान्यता दी।"


भारत ने संयुक्त राष्ट्र में जनवादी चीन के प्रतिनिधित्व का पूरा समर्थन किया।भारत द्वारा चीन का समर्थन करने के फलस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका और बाकी कई गैर साम्यवादी देश खुश नहीं हुए। लेकिन भारत की नीति सिद्धांतो पर आधारित थी। 

जब 1950 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् के उस प्रस्ताव का समर्थन किया। जिसमें उत्तरी कोरिया को दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण करने का दोषी कहा गया था। तब अमेरिका ने भारत की प्रशंसा की, लेकिन इससे साम्यवादी जगत को निराशा हुई।

कुछ ही समय बाद जब अमेरिकी नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र की सेनाएं उत्तरी कोरिया में ने प्रवेश कर गई तथा चीन की ओर बढ़ने लगी। तब भारत ने साफ शब्दों में अमेरिका की भी आलोचना की।

प्रोफेसर वी. पी. दत्त और नेहरू भारत - चीन संबंध पर 

प्रधानमंत्री नेहरू ने एक पत्र में भारतीय राजदूत पणिक्कर को कहा था कि - 

 " जब - जब चीन में शक्तिशाली सरकार की स्थापना हुई है , तब - तब उसने अपनी सीमाओं के विस्तार के प्रयास किए है। यही प्रकृति नए गतिशील चीन में भी देखने को मिल रही है।"


नेहरू ने ये भी कहा था कि

 " चीन में क्रांति 1949 में हुई। वह कोई राजमहल की क्रांति नहीं थी ,वह तो जन साधारण के द्वारा समर्पित क्रांति थी।"


  प्रोफेसर वी. पी. दत्त ने लिखा कि - 

 " नेहरू ने चीन की नई सरकार से मित्रता का आवाहन किया। उसको विश्व समुदाय को मुख्य धारा में लाने की नीति अपनाई और सम्पर्क बढ़ाने और , दुश्मन और शंका को कम करने के लिए की। नेहरू ने भारत की नीति को नई दिशा देकर यह उम्मीद की कि चीन के साथ कोई संघर्ष न हो।"


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