भारत चीन का कोलंबो प्रस्ताव क्या था जो कभी लागू नहीं किया जा सका ?

 कोलंबो प्रस्ताव

10 दिसंबर,1962 को , श्रीलंका की प्रधानमंत्री सिरिमाओ भंडारनायके ने कोलंबो में 6 गुटनिरपेक्ष देशों - श्रीलंका, बर्मा, मिस्र, इंडोनेशिया, घाना और कोलंबो, का एक सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में पारित प्रस्तावों को लेकर श्रीमती भंडारनायके ने दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों से बातचीत की।




जो इस प्रकार है -

1) कोलंबो सम्मेलन इस बात का अनुभव करता है कि वर्तमान युद्ध विराम का समय भारत - चीन विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के लिए उपयुक्त है।


2) चीन पश्चिमी क्षेत्र में अपनी चौकियां 10 किलोमीटर पीछे हटा ले। जैसे कि चीनी प्रधानमंत्री चाऊ - एन - लाई ने गत 21 और 24 नवंबर ,1962 को प्रधानमंत्री नेहरू को भेजे पत्र में खुद प्रस्तावित किया था।


3) यह सम्मेलन भारत सरकार से अपील करता है कि वह अपनी वर्तमान सैनिक स्थिति बनाए रखें।


4) सीमा विवाद का अंतिम समाधान होने तक चीन द्वारा खाली किया गया क्षेत्र असैनिक क्षेत्र हो , जिसकी निगरानी दोनों पक्षों द्वारा नियुक्त गैर सैनिक चौकियां करें।


5) पूर्वी नेफा क्षेत्र में दोनों सरकारों द्वारा मान्य वास्तविक नियंत्रण रेखा , युद्ध विराम रेखा का काम करें।


6) मध्यवर्ती क्षेत्र का समाधान सैनिक शक्ति का आश्रय लिए बिना ही शांतिपूर्ण ढंग से किया जाय। यहां 8 सितंबर ,1962 के पहले की स्थिति रहनी चाहिए।


7) सम्मेलन यह भी विश्वास करता है कि इन प्रस्तावों के क्रियान्वयन होने से दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच युद्ध विराम की स्थिति में समस्याओं को सुलझाने दृष्टि से की वार्ता के लिए रास्ता प्रशस्त होगा।


भारत ने 19 जनवरी ,1963 को जारी किया गया, कोलंबो प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया लेकिन चीन ने इसमें कुछ ऐसी शर्तें जोड़ दी जिससे यह प्रस्ताव महत्वहीन हो गई -


1) पश्चिम में विसैन्यीकृत क्षेत्र में भारत और चीन दोनों की असैनिक चौकियां नहीं होनी चाहिए ,सिर्फ चीन को ही असैनिक चौकियां रखने का अधिकार मिलना चाहिए।


2) विसैन्यीकृत प्रदेश में भारतीयों को किसी भी रूप में उपस्थित होने की स्वीकृति नहीं मिलनी चाहिए।


3) पूर्वी क्षेत्र के संबंध में चीन अभिमत था कि भारतीय सेना को मैक्मोहन रेखा ( मैकमोहन रेखा ) तक जाने का अधिकार नहीं होना चाहिए।

इस तरह कोलंबो प्रस्ताव को लागू नहीं किया जा सका, क्योंकि चीन की शर्तें मानना भारत के लिए असंभव था।


3 अक्टूबर ,1963 को राष्ट्रपति नासिर ने एक प्रस्ताव रखा जिसमें " कोलंबो शक्तियों " के एक और सम्मेलन का सुझाव था ,लेकिन इसको व्यावहारिक रूप नहीं दिया जा सका।


मई 1964 में जवाहर लाल नेहरू ने मृत्यु पर भेजे अपने शोक संदेश में चाऊ - एन - लाई ने विवाद के शांतिपूर्ण समाधान की आशा जरूर व्यक्त की , लेकिन 1980 तक भारत चीन संबंधों में सुधार के कोई खास लक्षण नहीं दिखाई दिये।

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