विष्णु जी के 1000 नाम ! भाग - 8



701) अधिकार - 

सदा सर्वदा विद्यमान सत्ता स्वरूप।

702) भावार्थ: - 

बहुत प्रकार से बहुत रूपों भष्म होने वाले।

703) सत्परायण: -

सत्य पुरुषों के परम प्राप्य स्थान।

704) शूरसेन: - 

हनुमानादि श्रेष्ठ शूरवीर राजकुमारियों से युक्त सेनावाले।

705) यदुश्रेष्ठ: - 

यदुवंशियों में श्रेष्ठ।

706) सन्निवास: - 

सत्पुरुषों के आश्रय।

707) सुयमुन: - 

जिनके परिकर यमुना तट निवासी गोपाल बाल आदि अति सुंदर हैं, ऐसे कृष्ण।

708) भूतावेश: - 

सभी प्राणियों के मुख्य निवास स्थान।

709) वासुदेव: - 

अपनी माया से जगत को आच्छादित करने वाले परम देव।

710) सर्वेशुनिलय: - 

सभी प्राणियों के आधार।

711) अनल: - 

अपार शक्ति और संपत्ति से युक्त।

712) दर्पद: - 

अपने भक्तों को विशुद्ध गौरव देने वाले।

713) दर्पहा - 

धर्म विरूद्ध मार्ग में चलने वालों के घमंड को नष्ट करने वाले।

714) दृश्‍य: - 

नित्यान्नमग्न।

715) दुर्धर: - 

बड़ी क्रूरता से हृदय में धारित होने वाले।

716) अपराजित: - 

किसी प्रकार भी जितने में न आने वाले।

717) विश्वमूर्ति: - 

सारी दुनिया ही जिसकी मूर्ति है।

718) महामूर्ति: - 

बड़े फॉर्मूले।

719) दीप्तमूर्ति: - 

स्वेच्छा से धारण किए हुए देदीप्यमान स्वरूप से युक्त।

720) अमुर्तिमान - 

 जिसकी कोई मूर्ति नहीं।

721) मानमूर्ति: -

नाना अवतारों स्वेच्छा से लोगों का उपकार करने के लिए बहुत मूर्तियों को धारण करने वाले के साथ।

722) अव्यक्त: - 

कई मूर्ति होते हैं जिनका स्वरूप किसी भी प्रकार व्यक्त न किया जा सकता है।

723) शतमूर्ति: - 

सैकड़ों मूर्तिकार हैं।

724) शैतान: - 

सैकड़ों मुखिया।

725) एक: - 

सब प्रकार के भेद भावों से रहित।

726) नैक: - 

उपाधि भेद से अनेक।

727) सब: - 

जिसमें सोम नाम की औषधि का रस निकाला जाता है।

728) क: - 

खुशी का स्वरूप।

729) किम् - 

विचारणीय ब्रह्मभूत।

730) यत् -

स्व: अनुक्रम।

731) तब - 

विस्तार करने वाला।

732) पदमनुततमम् - 

मुमुक्ष पुरुषों द्वारा प्राप्त किए जाने योग्य उच्चोत्तम परम पद।

733) लोकबंधु: - 

सभी प्राणियों के हित करने वाले परम मित्र।

734) लोकनाथ: - 

सबके द्वारा याचना किए जाने योग्य लोकस्वामी।

735) माधव: - 

मधुकुल में उत्पन्न होने वाले।

736) भक्तवत्सल: - 

भक्तों से प्रेम करने वाले।

737) सुवर्णवर्धन: - 

सोने के समान पितवर्ण वाले।

738) हेमांग: - 

सोने के समान चमकौल चमकीले अंगो वाले।

739) वरंग: -

 परम श्रेष्ठ अंगो प्रत्यंगो वाले।

740) चंदनागदनदी - 

चंदन के लेप और बाजूबंद से सुशोभित।

741) वीरहा -

धर्म की रक्षा के लिए असुर वीरों को मारने वाले।

742) 

उन समान दूसरा नहीं।

743) शून्य: - 

सभी विशेषणों से रहित।

744) धृतिति: - 

अपने आश्रित जनों के लिए कृपा से सने हुए द्रविन संकल्प करने वाले।

745) डूब: - 

किसी प्रकार भी विचलित न होने वाले अविचल।

746) चल रहा है: - 

वायु रूप से सर्वत्र गमन करने वाले।

747) अमानी - 

स्वयं मान न चाहने वाले अभिमान रहित।

748) मानद: - 

दूसरों को मान देने वाले।

749) विश्वास: -

सबके पूजने योग्य माननीय

750) लोकस्वामी- 

चौधह भुवनों के स्वामी।

751) त्रिलोकधृक्ष -

तीनों लोकों को धारण करने वाले।

752) सुमेधा: - 

अति उत्तम बुद्धि वाला।

753) मेधज: - 

यज्ञ में प्रकट होने वाले।

754) धन्य: - 

नित्य उपहारकृत्य होने के कारण सर्वधा धन्यवाद के पात्र।

755) सत्यमेध: -

सच्ची और श्रेष्ठ बुद्धि वाले।

756) धराधार: -

अनंत भगवान के रूप से पृथ्वी को धारण करने वाले।

757) तेजोवृश: - 

आदित्य रूप से तेज की वर्षा करने वाले और भक्तों पर अपने आश्रम के तेज की वर्षा करने वाले।

758) दुतिधर: - 

परम कांति को धारण करने वाले।

759) अलखभृतांवर: - 

सभी शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ।

760) प्राथमिकता: - 

भक्तों के द्वारा अर्पित पत्र पुष्पादि को ग्रहण करने वाले।

761) निग्रह: - 

सबका निग्रह करने वाले।

762) व्यग्र: - 

अपने भक्तों को अभीष्ट फल देने में लगे हुए।

763) नैश्रृग्ड: - 

नाम, प्रसिद्ध, उपसर्ग और बसने रूप चार सिंगों को धारण करने वाले शब्द ब्रह्म स्वरूप।

764) गडग्रज: - 

गद से पहले जन्म लेने वाले।

765) चतुर्मर्ति: - 

राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न रूप चार मूर्ति वाले।

766) चतुर्बाहु: - 

चार भुजाओं वाले।

767) चतुर्भुज: - 

वासुदेव, संज्ञा, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध - इन चार दृश्यनों से युक्त।

768) चतुर्गति: - 


सालोक्य, सामीप्य, सारुप्य, सायुज्यरूप चार परम गति स्वरूप।

769) चतुर्मुख - 

मन, बुद्धि, अहंकार और चित्तरूप चार छोर: करण वाले।

770) भाव: - 

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - ये चारों पुरुषार्थों के उत्पत्तिस्थान हैं।

771) चतुर्वेदवित- 

चारों वेदों के अर्थ को भली भांति जानने वाले।

772) एकपात -

एक पाद वाले अर्थात एक पाद (अंश) से सारे विश्व को छल करने वाले।

773) समावेशन: - 

संसार चक्र को भली भांति घुमाने वाले।

774) निवृत्ताम् - 

स्वभाव से ही विषय वासना रहित मनवाले।

775) दुर्जय: - 

किसी से भी जितने में न आने वाले।

776) दुरतिक्रम: - 

जिनके आदेश का कोई उलंघन नहीं कर सका।

777) दुर्लभ: - 

बिना भक्ति के प्राप्त न होने वाले।

778) दुर्ग: -

कठिनता से जानने में आने वाले।

779) दुर्ग: -

 क्रूरता से प्राप्त होने वाले।

780) दुरावास: - 

बड़ी कठिनता से योगी जनों द्वारा हृदय में बसाये जाने वाले।

781) दुरारिहा - 

दुष्ट मार्ग में चलने वाले दैत्यों का वध करने वाले।

782) शुभांग: -

सुंदर अंग प्रत्यांगो वाले।

783) लोकरंगदा: -

लोकों के सार को ग्रहण करने वाले।

784) सुतनु: -

सुंदर विस्तृत अवतार रूप तंतु वाले।

785) तंतुवर्धन: -

पुर्वोक्ततर तंतु को बढ़ाने वाले।

786) इन्द्रकर्मा -

इन्द्र के समान कर्म वाले।

787) महाकर्मा -

बड़े - बड़े कर्म करने वाले।

788) कृतकर्मा - 

जो सारे पाप कर्म किए गए हैं 

789) कृतागम: -

आगम रूप वेदों को बनाने वाले

790) उद्भव: - 

स्वेच्छा से श्रेष्ठ जन्म धारण करने वाले।

791) सुंदर: - 

सबसे अधिक भाग्यशाली होने के कारण परम सुंदर।

792) सांड: - 

परम करुणाशील।

793) रत्नाभ: - 

रत्न के समान सुंदर नाभि वाले।

794) खुशी: - 

सुन्दर नेत्रों वाले।

795) अर्क: -

ब्रह्मादि पूज्य पुरुषों के भी पूजनीय।

796) वाजसन: - 

आयनॉक्स को अन्न प्रदान करने वाले।

797) श्रृंगेरी - 

प्रलय काल में सींग युक्त मत्स्यविशेष का रूप धारण करने वाले।

798) जयंत: -

शत्रुओं को पूर्णतया जितने वाले।

799) सर्वविजयी - 

सर्वज्ञ बने सब कुछ जानने वाले और सबको जीतने वाले।

800) सुवर्णबिन्दु: -

 सुंदर अक्षर और बिंदु से युक्त ओंकार स्वरूप नाम ब्रह्म।


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