पंचशील समझौता क्या है और कब हुआ ?
पंचशील समझौता
कोरिया युद्ध के बाद भारत और चीन के बीच एक व्यापक व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरु हुई। इसके मुताबिक भारत और चीन के तिब्बत क्षेत्र के बीच वाणिज्य और अन्य संबंधों के विषय में भारत -चीन संधि पर 29 अप्रैल, 1954 को हस्तक्षेप किए गए।
यह समझौता 8 वर्षों के लिए किया गया। इसके अंतर्गत भारत ने तिब्बत में अपने विशेष बहिर्देशीय अधिकार त्याग दिए और तिब्बत पर चीन की संप्रभुता स्वीकार कर ली।
तिब्बत को चीन का " एक प्रदेश मानते " हुए तिब्बत के उ यातुंग एवं ग्यागट्सी क्षेत्रों में अपनी सेनाएं तैनात करने का अधिकार छोड़ दिया। सीमा पर व्यापार और तीर्थ यात्राओं के विषय में नियम निर्धारित करना स्वीकार कर लिया।
इसी समझौते में पंचशील के पांच सिद्धांतों का भी उल्लेख किया गया। वाणिज्य समझौतो पर हस्ताक्षर होने के बाद , जून 1954 में चीन के प्रधानमंत्री चाऊ - एन - लाई भारत की यात्रा पर आए। फिर अक्टूबर 1954 में नेहरू चीन की यात्रा पर गये।
प्रधानमंत्री चाऊ - एन - लाई भारत की यात्रा के अंत में जारी एक संयुक्त विज्ञप्ति में इस बात पर बल दिया गया कि दोनों देशों के पारस्परिक संबंध भविष्य में पंचशील को औपचारिक मान्यता दी गई।
पंचशील के सिद्धान्त थे -
(1) एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और संप्रभुता के लिए पारस्परिक सम्मान की भावना पर आचरण करना।
(2) अनाक्रमण ,अर्थात एक दूसरे पर आक्रमण न करना।
(3) एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
(4) परस्पर समानता और मित्रता की भावना ,और
(5) शांतिपूर्ण सहअस्तित्व ।
पंचशील पर हस्ताक्षर होने के बाद के चार सालों को भारत चीन की गहरी मित्रता और हिंदी - चीनी भाई - भाई का काल कहा जाता है।
प्रधानमंत्री चाऊ ने 1954 - 1957 की अवधि में चार बार भारत यात्रा की।
भारत - चीन की मैत्री अफ्रीकी - एशियाई देशों के बाण्डुग सम्मेलन (अप्रैल 1955) के समय अपनी चरम सीमा पर थी।
पंचशील के सिद्धान्तों को 1955 में हुए बाण्डुग सम्मेलन में कुछ परिवर्तनों के साथ स्वीकार किया गया। उस समय नेहरू और चाऊ ने निकटतम सहयोग का प्रदर्शन किया था।
फारमोसा और तट से दुर स्थित क्वेमोए और मात्सू द्वीपों पर चीन के दावे को भारत ने और गोवा में भारत पुर्तगाल बस्तियों पर भारत के दावे को चीन ने पूर्ण नैतिक और राजनयिक समर्थन किया।
पंचशील और बाण्डुग सम्मेलन को भारतीय कूटनीति की महान सफलताएं माना गया था। लेकिन वह भारतीय कूटनीति की हार साबित हुई।


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