वराह मिहिर एक महान भारतीय विद्वान कौन थे ?
वराह मिहिर (जन्म, माता - पिता)
वराह मिहिर का जन्म 499 ईसवी उज्जैन के समीप कपिथा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम आदित्यदास था। उनका नाम मिहिर रखा गया था, जिसका अर्थ सूर्य होता है, क्योंकि उनके पिता सूर्य के उपासक थे। इनके भाई का नाम भद्रबाहु था।
पिता ने मिहिर को भविष्य शास्त्र पढ़ाया था।
वराह मिहिर की भविष्यवाणी
मिहिर ने " राजा विक्रमादित्य द्वितीय " के पुत्र की मृत्यु 18 वर्ष की आयु में होगी, इसकी सटीक भविष्यवाणी कर दी थी।
इस भविष्यवाणी के कारण मिहिर को राजा " राजा विक्रमादित्य द्वितीय " ने बुलाकर उनकी परीक्षा ली और फिर उनको अपने दरबार के रत्नों में स्थान दिया।
इस तरह " विक्रमादित्य द्वितीय " के नौ रत्न हो गए थे।
मिहिर से वराह कैसे जुड़ा ?
मिहिर ने " खगोल और ज्योतिष शास्त्र " के कई सिद्धांतों को गढ़ा और देश में इस विज्ञान को आगे बढ़ाया। इस योगदान के चलते राजा " विक्रमादित्य द्वितीय " ने " मिहिर " को मगध देश का सर्वोच्च सम्मान " वराह " दिया ,उसी दिन से मिहिर " वराह मिहिर " कहे जाने लगे।
वराह मिहिर की रचनाएं
" वराह मिहिर " ही पहले आचार्य हैं जिन्होंने " ज्योतिष शास्त्र को सिद्धांत, संहिता तथा होरा " के रूप में स्पष्ट रूप से व्याख्यायित किया। इन्होंने तीनों स्कंधों के निरुपण के लिए तीनों स्कंधों से संबद्ध अलग-अलग ग्रंथों की रचना की।
पंचसिद्धांतिका, संहितास्कंध में बृहत्संहिता तथा
विष्णु स्तंभ
कुतुब मीनार को पहले " विष्णु स्तंभ " कहा जाता था। इससे पहले इसे " सूर्य स्तंभ " कहा जाता था। इसके केंद्र में " ध्रुव स्तंभ " था। जिसे आज " कुतुब मीनार " कहा जाता है। इसके आसपास "27 नक्षत्रों के आधार पर 27 मंडल " थे इसे वराह मिहिर की देखरेख में बनाया गया था।




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