पुराणों में इंद्र, सप्तऋषि मनु और मन्वन्तर क्या है ?
विष्णु पुराण के अनुसार प्रत्येक चतुर्युग के अंत में वेदों का लोप हो जाता है, उस समय सप्तर्षि गण ही स्वर्ग लोक से पृथिवी में अवतीर्ण होकर उनका प्रचार करते है।
प्रत्येक सतयुग के आदि में (मनुष्यों की धर्म मर्यादा स्थापित करने के लिए) स्मृति शास्त्र के रचयिता मनु का प्रादुर्भाव होता है और उस मन्वंतर के अंत में तत्कालीन देवता यज्ञ भागों को भोगते हैं और मनु उनके वंशधर मन्वंतर के अंत तक पृथिवी का पालन करते रहते है।
इस प्रकार मनु सप्तर्षि , देवता, इन्द्र और मनु पुत्र राजा गण ये प्रत्येक मन्वंतर के अधिकारी होते हैं।
इन 14 मन्वंतरों के बीत जानें पर एक सहस्त्र युग रहने वाला कल्प समाप्त हो जाता है, फिर इतने ही समय की रात होती है। उस समय विष्णु भगवान प्रलयकालीन जल के ऊपर शेष शय्या पर शयन करते है और फिर सृष्टि की रचना ब्रह्मा जी द्वारा की जाती है।
प्रथम मन्वंतर
प्रथम मनु स्वयंभुव थे।
दूसरा मन्वंतर
दूसरे मन्वंतर के स्वारोचिष नाम के मनु थे। इसमें पारावत और तुषितगण देवता थे और इस मन्वन्तर के विपिश्चित नामक देवराज इंद्र थे। ऊर्ज्ज, स्तम्भ, प्राण, वात पृषभ, निरय और परिवान ये उस समय सप्तऋषि थे। चैत्र और किम्पुरुष आदि स्वारोचिष मनु के पुत्र थे।
तीसरा मनवंतर
तीसरे मनवंतर के उत्तम नामक मनु और सुशांति नामक देवराज इंद्र थे।
उस समय सुधाम ,सत्य, जप, प्रतर्दन और वशवर्ती ये पांच ,बारह - बारह देवताओं के गण थे तथा वशिष्ठ जी के सात पुत्र सप्तर्षिगण और अज ,परशु एवं दीप्त आदि उत्तम मनु पुत्र थे।
चौथा मनवंतर
चौथे मन्वन्तर के तामस नामक मनु थे और सौ अश्वमेध यज्ञ करने वाले राजा शिबि इंद्र थे। सुपार, हरि, सत्य और सुधि ये चार देवताओं के वर्ग थे और इनमें प्रत्येक वर्ग में 27 - 27 देवगण थे।
ज्योतिर्धामा, पृथु , काव्य , चैत्र , अग्नि , वनक और पीवर ये उस मनवंतर के सप्तर्षि थे। नर , ख्याति , केतुरूप और जानुजंघ आदि तामस मनु के पुत्र ही उस समय राज्याधिकारी थे।
पांचवां मनवंतर
पांचवे मनवंतर में रैवत मनु और विभु नामक इंद्र हुए तथा इस मनवंतर में 14 -14 देवताओं के अमिताभ, भूतरय , वैकुंठ और सुमेधा नामक गण थे।
इस रैवत मन्वंतर में हिरण्यरोमा, वेदश्री, ऊर्ध्वबाहु , वेदबाहु , सुधामा , पर्जन्य और महामुनि ये सात सप्तर्षि गण थे।
रैवत मनु के पुत्र बलबंधु, सांभाव्य और सत्यक आदि राजा थे।
स्वारोचिष, उत्तम, तामस और रैवत ये चार मनु, राजा प्रियव्रत के वंशधर कहे जाते है। राजर्षि प्रियव्रत तपस्या द्वारा भगवान विष्णु की आराधना करके अपने वंश में उत्पन्न हुए इन चार मनवंतरराधिपों को प्राप्त किया।
छठा मन्वंतर
छठे मन्वंतर में चाक्षुष नामक मनु और मनोजव नामक इंद्र थे। आप्य, प्रसूत, भव्य, पृथुक और लेख - ये पांच प्रकार के देवगण वर्तमान थे और इनमें से प्रत्येक गण में 8 - 8 देवता थे।
उस मनवंतर में सुमेधा, विरजा, हविष्मान, उत्तम, मधु अतिनामा और सहिष्णु ये सात सप्तर्षि थे।
चाक्षुष के पुत्र उरू, पुरु और शतधुम्न आदि राज्याधिकारी थे।
सातवां मन्वंतर
इस सातवें मनवंतर में सूर्यदेव के पुत्र श्राद्धदेव जी मनु और आदित्य, वसु और रुद्र आदि देवगण तथा पुरंदर नामक इंद्र है।
वसिष्ठ, काश्यप ,अत्रि, जमदग्नि ,गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज ये सात सप्तर्षि है।
वैवस्वत मनु के इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यंत, नाभाग, अरिष्ट, करुष और पृषध्र ये नौ पुत्र है।
सूर्य देव की पत्नी छाया के पुत्र दूसरे मनु अपने अग्रज मनु का सवर्ण होने से सावर्णि कहलाया।
आठवां मन्वंतर
आठवें मन्वंतर के सावर्णि नाम के मनु तथा सुरप ,अमिताभ और मुख्यगण देवता हैं उन देवताओं का प्रत्येक गण 20 - 20 का समूह कहा जाता है। उस समय दीप्तिमान, गालव, राम, कृप, द्रोण पुत्र अश्वत्थामा, व्यास और सातवें ऋष्यश्रृंग ये सप्तर्षि है। पाताल लोक वासी विरोचन के पुत्र बलि इंद्र और सावर्णि मनु विरजा,उर्वरीवान एवं निर्मोक आदि तत्कालीन होंगे।
नवां मन्वंतर
नवें मनु दक्षसावर्णि , उनके समय में पार , मरिचिगर्भ और सुधर्मा नामक तीन देववर्ग, जिसमें से प्रत्येक वर्ग में 12 - 12 देवता,उनका अद्भुत नामक इंद्र।
सवन, द्युतिमान, भव्य, वसु, मेधातिथि, ज्योतिष्मान और सत्य ये सप्तर्षि तथा धृतकेतु, दीप्तिकेतु ,पंचहस्त ,निरामय और पृथुश्रवा आदि दक्षसावर्णि मनु के पुत्र।
दसवां मन्वंतर
दसवें मनु ब्रह्मसावर्णि, उनके समय में सुधामा और विशुद्ध नामक 100 - 100 देवताओं के दो गण।
शांति उनका इंद्र तथा हविष्मान, सुकृत, सत्य, तपोमूर्ति, नाभाग, अप्रतिमौजा और सत्यकेतु ये सप्तर्षि है।
उस समय ब्रह्मसावर्णि मनु के सुक्षेत्र, उत्तमौजा और भूरिषेण आदि दस पुत्र राजा।
ग्यारहवां मन्वंतर
ग्यारहवें मनु धर्मसावर्णि , विहंगम, कामगम और निर्वाणरति नामक देवताओं के मुख्य गण और प्रत्येक के 30 - 30 देवता और वृष नामक इंद्र।
नि: स्वर, अग्नितेजा , वपुष्मान, घृणि, आरुणि, हविष्मान और अनघ नामक सप्तर्षि है।
धर्मसावर्णि मनु के सर्वत्रग ,सुधर्मा और देवानीक आदि पुत्र राजा।
बारहवां मन्वन्तर
रुद्रपुत्र सावर्णि बारहवां मनु और ऋतुधामा नामक इंद्र तथा उस समय 10 - 10 देवताओं के हरित, रोहित, सुमना, सुकर्मा और सुराप नामक पाँच गण।
तपस्वी, सुतपा , तपोमूर्ति, तपोरति , तपोधृति, तपोद्युुति , तथा तपोधन ये सात सप्तर्षि।
मनुपुत्र देववान, उपदेव और देवश्रेष्ठ आदि पुत्र तत्कालीन सम्राट।
तेरहवां मन्वंतर
तेरहवां रुचि नामक मनु , इस मन्वंतर में सूत्रामा, सुकर्मा और सुधर्मा नामक देवगण, इनमें से प्रत्येक में 33 - 33 देवता और दिवस्पति उनके इन्द्र।
निर्मोह, तत्वदर्शी, निष्प्रकंप , निरुत्सुक, धृतिमान,अव्यव और सुतपा ये उस समय सप्तर्षि।
मनुपुत्रों के नाम चित्रसेन और विचित्र आदि मनुपुत्र राजा।
चौदहवां मन्वंतर
चौदहवां मनु भौम, उस समय शुचि नामक इंद्र ,पांच देवगण उनके नाम चाक्षुष, पवित्र, कनिष्ठ, भ्राजिक और वाचावृद्ध नामक देवता हैं।
अग्निबाहु , शुचि, शुक्र , मागध, अग्निध्र , युक्त और जित सप्तर्षि है।
मनु के ऊरु और गंभीरबुद्धि आदि पुत्र होंगे जो राजा।
भगवान विष्णु के सात मन्वंतरों उनकी माता
सबसे पहले स्वयंभू मन्वंतर में मानस देव यज्ञपुरुष उस विष्णु शक्ति के अंश से ही आकूति के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।
फिर स्वारोचिष मन्वंतर के उपस्थित होने पर वे मानस देव श्री अजित ही तुषित नामक देवगणों के साथ तुषिता से उत्पन्न हुए।
फिर उत्तम मन्वंतर में वे सत्य गण के सहित सत्यरूप से सत्या के गर्भ से जन्मे।
तामस मन्वंतर में वे हरि नाम देवगण के सहित हरिरूप से हर्या के गर्भ से जन्मे।
रैवत मन्वंतर में वे तत्कालीन देवगण के सहित संभूति से जन्म लेकर वो मानस नाम से विख्यात हुए।
चाक्षुष मन्वंतर में वे वैकुंठ नामक देवगणों के सहित विकुंठा से उत्पन्न होकर वैकुण्ड कहलाये।
वैवस्वत मन्वंतर में वे कश्यप जी द्वारा अदिति के गर्भ से वामनरूप होकर प्रकट हुए।
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