कैसे हुई कृष्ण और बलराम की मृत्यु ?

भयंकर मूसल युद्ध के कारण सभी यदुवंशी एक दूसरे का वध करने लगे। तब श्री कृष्ण ने अर्जुन के पास द्वारका आने का संदेह भिजवाया और यहां की महिलाओं और बच्चो की रक्षा करने को कहा।

बलराम जी की मृत्यु

बलराम जी वन में एकांत में योगयुक्त हो समाधि में बैठे थे। तभी श्री कृष्ण वहां गये और उन्होंने देखा कि बलराम जी के मुंह से सफेद वर्ण का विशालकाय सर्प निकल रहा है। वह सर्प महासागर की ओर चला गया और बलराम जी ने अपने प्राण त्याग दिए।

श्री कृष्ण  की मृत्यु

श्री कृष्ण एकांत में एक वन में महासमाधि का आश्रय ले पृथ्वी पर लेट गये। जरा नाम का एक बहेलिया था। 

उसने मूसल के बचे हुए टुकड़े से अपने बाण की गाँसी बना ली थी। उसे दूर से भगवान का लाल - लाल तलवा हिरण के मुख के समान लगा, उसने उसे सचमुच हिरण समझकर विषयुक्त बाण चला दिया ,बाण श्री कृष्ण के पैर के तलुवे में लगा और श्री कृष्ण ने देह त्याग दिया।

जब वह पास आया, तब उसने देखा कि ये तो "चतुर्भुज पुरुष है। तब वह रोने लगा और क्षमा मांगने लगा। 

तब भगवान ने कहा - मेरी आज्ञा से तू स्वर्ग में निवास कर।

इसके बाद जब कृष्ण जी के सारथी दारुल वहां पहुंचे ,तब उन्होंने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण पीपल के वृक्ष के नीचे आसान लगाए बैठे हैं। 

कृष्ण जी ने दारुल को ही अपने और बलराम जी की अपने धाम जाने की बात बताने को कहा और सभी को द्वारका से अपने अपने धन संपत्ति, कुटुंभ और माता पिता को लेकर अर्जुन के पास इंद्रप्रस्थ ले जानें को कहा।


इसके पीछे ऐसी भी कथा है कि जिस तरह श्री राम ने त्रेतायुग में बाली को छिपकर तीर मारा था, ठीक उसी तरह की मृत्यु श्री कृष्ण ने अपने लिए द्वापरयुग में चुनी। कहा जाता है कि बाली ने द्वापरयुग में ,जरा के रूप में जन्म लिया था।

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