भारत चीन सीमा विवाद भाग - 1
1) भारत - चीन सीमा कहां तक है ?
भारत - चीन के बीच लगभग दो हजार मील लंबी सीमा है। इस सीमा रेखा को समझौतों तथा प्रशासकीय व्यवस्थाओं से नियमित किया गया है।
इसके अलावा भारत - चीन "प्राकृतिक सीमा रेखा " भी इतनी स्पष्ट है कि दोनों देशों की वास्तविक सीमाओं के विषय में किसी को कोई भी शक हो ही नहीं सकता है।
समस्त भारत - चीन सीमा को सामान्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है -
2) भारत चीन सीमा विवाद
भारत - चीन सीमा - विवाद मुख्य रूप से उत्तर - पूर्व में मैकमोहन रेखा और उत्तर- पश्चिम में लद्दाख से संबंधित है।
मैकमोहन रेखा (MC Mohan Line) उत्तर - पूर्व में भारत चीन सीमा विभाजन करती है। यह भूटान के पूर्व में दोनों देशों की सीमा रेखा है।
भारत ने सदैव ही इस रेखा को वैध रूप से निर्धारित सीमा माना है, लेकिन चीन ने हमेशा उसकी साम्राज्यवादी रेखा कहकर निंदा की है।
3) शिमला सम्मेलन
सन् 1914 में शिमला सम्मेलन हुआ , जिसमें ब्रिटिश - भारत चीन और तिब्बत के प्रतिनिधि ने भाग लिया था ,सीमा रेखा निर्धारित करके औपचारिक रूप से सीमा विभाजन किया गया था।इस सम्मेलन में ब्रिटिश - भारत का प्रतिनिधित्व आर्थर हेनरी मैकमोहन ने किया था जो कि भारत - मंत्री भी थे।
इस सम्मेलन में तिब्बत को आंतरिक और बाह्य दो भागों में विभाजित किया गया था। बाह्य तिब्बत और भारत का विभाजन ऊंची पर्वत माला के बीच किया गया।
यह सीमा रेखा भारत - मंत्री आर्थर हेनरी मैकमोहन के सुझाव पर निश्चित की गई, और खुद मैकमोहन ने मानचित्र पर लाल पेंसिल से एक रेखा खींचकर सीमा विभाजन किया।
जिस मानचित्र पर यह सीमा रेखा बनाई गई थी,उस पर ब्रिटिश - भारत ,चीन और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए थे। लेकिन चीन सरकार ने इसका अनुमोदन नहीं किया। फिर भी,
4) लद्दाख हमेशा से जम्बु - कश्मीर का अंग है
लद्दाख हमेशा से जम्बु - कश्मीर का अंग रहा है और आज भी है। जम्बु - कश्मीर राज्य, भारत की स्वतंत्रता से पहले ब्रिटिश सरकार के अधीन था।
स्वतंत्रता के बाद उसको भारत में मिला लिया गया।
इस क्षेत्र में लद्दाख - चीन सीमा किसी संधि के द्वारा निर्धारित नहीं हुई थी। फिर भी शताब्दियों से भारत और चीन दोनों इस क्षेत्र की सीमा रेखा को मानते रहे थे।भारत इसे हमेशा अपने मानचित्र में प्रदर्शित करता रहा है।
भारत द्वारा 1899 में चीन को भेजे एक पत्र में यह स्पष्ट कर दिया गया था कि अक्साई चीन भारतीय प्रदेश का भाग था।
जम्बु - कश्मीर राज्य के राजस्व अभिलेखों में भी अक्साई चीन को कश्मीर के लद्दाख प्रांत का भाग स्वीकार किया गया था।
5) पहली बार भारत के भाग को चीन का अंग दिखलाया गया !
1950 - 51 में ही भारत के एक बहुत बड़े भू - भाग को चीन का अंग दिखलाया गया था। जब भारत सरकार ने चीन से इसके बारे में पूछा तो जवाब मिला कि कोमिंतांग सरकार
6) भारतीय जवानों पर अवैध रूप से कब्जे का आरोप
जुलाई 1954 में, चीन ने भारत को एक विरोध पत्र (प्रोटेस्ट - नोट) भेजा। जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि भारतीय जवानों ने बू - जे (बाराहोती) पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है।
भारत ने इस विरोध - पत्र को अस्वीकार करते हुए लिखा कि-
" यह स्थान भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित है और यहां भारतीय सीमा - सुरक्षा सेना की चौकी है"
7) जवाहर लाल नेहरु की चीन यात्रा
अक्टूबर 1954 में चीन यात्रा पर गए जवाहर लाल नेहरु ने बाराहोती के प्रश्न की ओर " चाऊ एन - लाई " का ध्यान आकर्षित किया। तब उन्होंने इसे साधारण घटना कहकर टाल दिया ।
8) चाऊ एन - लाई को भारत यात्रा
नवंबर 1956 में और जनवरी 1957 में " चाऊ एन - लाई " के भारत यात्रा के दौरान एक निर्णय लिया गया कि
" सीमा संबंधी कोई विवाद नहीं है,कुछ साधारण सी समस्याएं है जिनको मित्रतापूर्ण तरीके से हल किया जाना चाहिए।"
" ठीक इसी दौरान चीन ने अक्साई चीन से निकलती एक सड़क का निर्माण शुरू कर दिया।"
इस सड़क को पूर्वी - लद्दाख से होकर गुजरना था।





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