101) वृषाकपि: -
धर्म और वराह रूप
102) अमेयात्मा -
अप्रमेय स्वरूप
103) सर्वयोगविनि: सृत: -
नाना प्रकार के शास्त्रोक्त साधनों से जानने में आने वाले
104) वसु: -
सब भूतों के वास स्थान तथा सब भूतों में बसने वाले
105) वसुमना: -
उदार मन वाले
106) सत्य: -
सत्य स्वरूप
107) समात्मा -
संपूर्ण प्राणियों में एक आत्मा रूप से विराजने वाले
108) असम्मित: -
समस्त पदार्थो से मापे न जा सकने वाले
109) सम: -
सब समय सब विकारों से रहित
110) अमोघ: -
भक्तों के द्वारा पूजन, स्तवन अथवा स्मरण किए जाने पर उन्हें वृथा न कर के पूर्ण रूप से उसका फल प्रदान करने वाले
111) पुण्डरीकाक्ष: -
कमल के समान नेत्रों वाले
112) वृषकर्मा -
धर्ममय कर्म करने वाला
113) वृषाकृति: -
धर्म की स्थापना करने के लिए विग्रह धारण करने वाला
114) रुद्र: -
दुख या दुःख के कारण को दूर भगा देने वाला
115) बहुशिरा: -
बहुत से सिरो वाले
116) बभ्रु: -
लोको का भरण करने वाले
117) विश्वयोनि: -
विश्व को उत्पन्न करने वाले
118) शुषिश्रवा: -
पवित्र कीर्ति वाले
119) अमृत: -
कभी न मरने वाले
120) शाश्वतस्थाणु: -
नित्य सदा एक रस रहने वाले एवं स्थिर
121) वरारोह: -
आरुढ़ होने के लिए परम उत्तम अपुनरावृत्तीस्थानरुप
122) महातपा: -
प्रताप ( प्रभाव) रूप महान तप वाले
123) सर्वग: -
कारण रूप से सर्वत्र व्याप्त रहने वाले
124) सर्वविद्धवानु: -
सब कुछ जानने वाले तथा प्रकाशरूप
125) विश्ववसेन: -
युद्ध के लिए की हुई तैयारी मात्र से ही दैत्य सेना को तितर बितर करने वाले
126) जनार्दन: -
भक्तों के द्वारा अभियुदय - नि:श्रेयसरुप परम पुरुषार्थ की याचना किए जाने वाले
127) वेद: -
वेदरूप
128) वेदवित् -
वेद और वेद के अर्थ को यथावत् जानने वाले।
129) अव्यग्ड़: -
ज्ञानादी से परिपूर्ण अर्थात किसी प्रकार अधूरे ना रहने वाले सर्वांग्डपूर्ण ।
130) वेदाग्ड: -
वेदरूप अंगोवाले।
131) वेदवित् -
वेदों को विचारने वाले।
132) कवि: -
सर्वज्ञ ।
133) लोकाध्यक्ष: -
समस्त लोकों के अधिपति।
134) सुराध्यक्ष: -
देवताओं के अध्यक्ष।
135) धर्माध्यक्ष: -
अनुरूप फल देने के लिए धर्म और अधर्म का निर्णय करने वाले।
136) कृताकृत: -
कार्य रूप से कृत और कारण रूप से अकृत।
137) चतुरात्मा -
सृष्टि की उत्पत्ति आदि के लिए चार अलग मूर्तियों वाले।
138) चतुव्र्यूह: -
उत्पत्ति, स्थिति, नाश और रक्षारूप चार व्यूह वाले।
139) चतुर्दष्ट्र: -
चार दाढ़ो वाले नरसिंह रूप।
140) चतुर्भुज: -
चार भुजाओं वाले वैकुंठवासी भगवान विष्णु।
141) भ्राजिष्णु: -
एकरस, प्रकाशस्वरूप।
142) भोजनम् -
ज्ञानियों द्वारा भोगने योग्य अमृत स्वरूप ।
143) भोक्ता -
पुरुष स्वरूप से भोक्ता ।
144) सहिष्णु: -
सहनशील ।
145) जगदादिज: -
जगत के आदि में हिरण्यगर्भरूप से स्वयं उत्पन्न होने वाले।
146) अनघ: -
पापरहित।
147) विजय: -
ज्ञान , वैराग्य और ऐश्वर्य आदि गुणों में सबसे बढ़कर
148) जेता -
स्वभाव से ही समस्त भूतों को जितने वाले।
149) विश्वयोनि -
विश्व के कारण।
150) पुनर्वसु: -
बार बार शरीरों में आत्मा रूप से बसने वाले।
151) उपेन्द्र: -
इन्द्र को अनुज रूप से प्राप्त होने वाले।
152) प्रांशु: -
तीनों लोकों को लांघने के लिए त्रिविक्रमरुप से ऊंचे होने वाले।
153) वामन: -
वामन रूप से अवतार लेने वाले।
154) अमोघ: -
अव्यर्थ चेष्टा वाले।
155) शुचि: -
स्मरण स्तुति और पूजन करने वालों की पवित्र कर देने वाले।
156) उर्जित: -
अत्यंत बलशाली।
157) अतिंद्र: -
स्वयं सिद्ध ज्ञान ऐश्वर्य के कारण इन्द्र से भी बढ़े चढ़े हुए।
158) संग्रह: -
प्रलय के समय सबको समेट लेने वाले।
159) सर्ग: -
सृष्टि के कारण रूप।
160) धृतात्मा -
जन्मादि से रहित रहकर स्वेक्षा से स्वरूप धारण करने वाले।
161) नियम: -
प्रजा को अपने अपने अधिकारों में नियमित करने वाले।
162) यम: -
अंत:करण में स्थित होकर नियमन करने वाले।
163) वेद्य: -
कल्याण की इच्छा वालों के द्वारा जानने योग्य।
164) वैद्य: -
सब विद्याओं के जानने वाले।
165) सदयोगी -
सदा योग में स्थित रहने वाले।
166) विरहा -
धर्म की रक्षा के लिए असुर योद्धाओं को मार डालने वाले।
167) माधव: -
विद्या के स्वामी ।
168) मधु: -
अमृत की तरह सबको सबको प्रसन्न करने वाले।
169) अतिंद्रिय: -
इन्द्रियों से सर्वथा अतीत।
170) महामाय: -
महावियों पर भी माया डालने वाले महान मायावी।
171) महोत्साह:-
जगत की उत्पत्ति स्थिति और प्रलय के लिए तत्पर रहने वाले परम उत्साही।
172) महाबल: -
महान बलशाली।
173) महाबुद्धि: -
महान बुद्धिमान।
174) महावीर्य: -
महान पराक्रमी।
175) महाशक्ति: -
महान सामर्थ्यवान।
176) महाद्युति: -
महान कांतिमान।
177) अनिर्देश्यवपु: -
अनिर्देश्य विग्रह वाले।
178) श्रीमान -
ऐश्वर्यवान।
179) अमेयात्मा -
जिसका अनुमान न किया जा सके ऐसे आत्मा वाले।
180) महाद्रिधृक् -
अमृत मंथन और गोरक्षण के समय मंद्राचल और गोवर्धन नामक पर्वतों को धारण करने वाले।
181) महेषास: -
महान धनुष वाले।
182) महिभर्ता -
पृथ्वी धारण करने वाले।
183) श्रीनिवास: -
अपने वक्ष स्थल में श्री को निवास देने वाले।
184) सतां गति -
सत्यपुरूषों के आश्रय रूप।
185) अनिरुद्ध:-
सच्ची भक्ति के बिना किसी के भी द्वारा न रुकने वाले।
186) सुरानंद: -
देवताओं को आनंदित करने वाले।
187) गोविंद: -
वेद वाणी के द्वारा अपने को प्राप्त करा देने वाले ।
188) गोविंदां पति: -
वेद वाणी को जानने वालों के स्वामी।
189) मरीचि: -
तेजस्वियों के भी परम तेजरूप।
190) दमन: -
प्रमाद करने वाली प्रजा को यम आदि के रूप से दमन करने वाले।
191) हंस: -
पितामह ब्रह्मा को वेद का ज्ञान कराने के लिए हंसरूप धारण करने वाले।
192) सुपर्ण:-
सुंदर पंख वाले गरुण स्वरूप
193) भूजगोत्तम: -
सर्पो में श्रेष्ठ शेषनाग रूप।
194) हिरण्यनाभ: -
हितकारी और रमणीय नभिवाले।
195) सुतपा: -
बद्रिकाश्रम में नर नारायण रूप से सुंदर तप करने वाले।
196) पद्मनाभ: -
कमल के समान सुन्दर नाभिवाले।
197) प्रजापति: -
संपूर्ण प्रजाओं के स्वामी।
198) अमृत्यू: -
मृत्यु से रहित।
199) सर्वदृक -
सब कुछ देखने वाले।
200) सिंह: -
दुष्टों का विनाश करने वाले।
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