विष्णु जी के 1000 नाम ! भाग - 2


101) वृषाकपि:  - 

धर्म और वराह रूप

102) अमेयात्मा - 

अप्रमेय स्वरूप

103) सर्वयोगविनि: सृत: -

 नाना प्रकार के शास्त्रोक्त साधनों से जानने में आने वाले

104) वसु: -

 सब भूतों के वास स्थान तथा सब भूतों में बसने वाले

105) वसुमना: -

 उदार मन वाले

106) सत्य: - 

सत्य स्वरूप

107) समात्मा - 

संपूर्ण प्राणियों में एक आत्मा रूप से विराजने वाले

108) असम्मित: -

 समस्त पदार्थो से मापे न जा सकने वाले

109) सम: -

 सब समय सब विकारों से रहित

110) अमोघ: -

 भक्तों के द्वारा पूजन, स्तवन अथवा स्मरण किए जाने पर उन्हें वृथा न कर के पूर्ण रूप से उसका फल प्रदान करने वाले

111) पुण्डरीकाक्ष: -

  कमल के समान नेत्रों वाले

112) वृषकर्मा - 

धर्ममय कर्म करने वाला

113) वृषाकृति: -

 धर्म की स्थापना करने के लिए विग्रह धारण करने वाला

114) रुद्र: -

 दुख या दुःख के कारण को दूर भगा देने वाला

115) बहुशिरा: -

 बहुत से सिरो वाले

116) बभ्रु: -

 लोको का भरण करने वाले

117) विश्वयोनि: -

  विश्व को उत्पन्न करने वाले

118) शुषिश्रवा: -

 पवित्र कीर्ति वाले

119) अमृत: -

 कभी न मरने वाले

120) शाश्वतस्थाणु: -

 नित्य सदा एक रस रहने वाले एवं स्थिर

121) वरारोह: -

 आरुढ़ होने के लिए परम उत्तम अपुनरावृत्तीस्थानरुप

122) महातपा: -

 प्रताप ( प्रभाव) रूप महान तप वाले

123) सर्वग: -

 कारण रूप से सर्वत्र व्याप्त रहने वाले

124) सर्वविद्धवानु: -

 सब कुछ जानने वाले तथा प्रकाशरूप

125) विश्ववसेन: -

 युद्ध के लिए की हुई तैयारी मात्र से ही दैत्य सेना को तितर बितर करने वाले

126) जनार्दन: -

 भक्तों के द्वारा अभियुदय - नि:श्रेयसरुप परम पुरुषार्थ की याचना किए जाने वाले

127) वेद: -

 वेदरूप

128) वेदवित् -

वेद और वेद के अर्थ को यथावत् जानने वाले।

129) अव्यग्ड़: -

ज्ञानादी से परिपूर्ण अर्थात किसी प्रकार अधूरे ना रहने वाले सर्वांग्डपूर्ण ।

130) वेदाग्ड: -

वेदरूप अंगोवाले।

131) वेदवित् -

वेदों को विचारने वाले।

132) कवि: -

सर्वज्ञ ।

133) लोकाध्यक्ष: -

समस्त लोकों के अधिपति।

134) सुराध्यक्ष: -

देवताओं के अध्यक्ष।

135) धर्माध्यक्ष: -

अनुरूप फल देने के लिए धर्म और अधर्म का निर्णय करने वाले।

136) कृताकृत: -

कार्य रूप से कृत और कारण रूप से अकृत।

137) चतुरात्मा -

सृष्टि की उत्पत्ति आदि के लिए चार अलग मूर्तियों वाले।

138) चतुव्र्यूह: -

उत्पत्ति, स्थिति, नाश और रक्षारूप चार व्यूह वाले।

139) चतुर्दष्ट्र: -

चार दाढ़ो वाले नरसिंह रूप।

140) चतुर्भुज: -

चार भुजाओं वाले वैकुंठवासी भगवान विष्णु।

141) भ्राजिष्णु: -

एकरस, प्रकाशस्वरूप।

142) भोजनम् -

ज्ञानियों द्वारा भोगने योग्य अमृत स्वरूप ।

143) भोक्ता -

पुरुष स्वरूप से भोक्ता ।

144) सहिष्णु: -

सहनशील ।

145) जगदादिज: -

जगत के आदि में हिरण्यगर्भरूप से स्वयं उत्पन्न होने वाले।

146) अनघ: -

पापरहित।

147) विजय: -

ज्ञान , वैराग्य और ऐश्वर्य आदि गुणों में सबसे बढ़कर

148) जेता -

स्वभाव से ही समस्त भूतों को जितने वाले।

149) विश्वयोनि -

विश्व के कारण।

150) पुनर्वसु: -

बार बार शरीरों में आत्मा रूप से बसने वाले।

151) उपेन्द्र: -

इन्द्र को अनुज रूप से प्राप्त होने वाले।

152) प्रांशु: -

तीनों लोकों को लांघने के लिए त्रिविक्रमरुप से ऊंचे होने वाले।

153) वामन: -

वामन रूप से अवतार लेने वाले।

154) अमोघ: -

अव्यर्थ चेष्टा वाले।

155)  शुचि: -

स्मरण स्तुति और पूजन करने वालों की पवित्र कर देने वाले।

156) उर्जित: -

अत्यंत बलशाली।

157) अतिंद्र: -

स्वयं सिद्ध ज्ञान ऐश्वर्य के कारण इन्द्र से भी बढ़े चढ़े हुए।

158) संग्रह: -

प्रलय के समय सबको समेट लेने वाले।

159) सर्ग: -

सृष्टि के कारण रूप।

160) धृतात्मा -

जन्मादि से रहित रहकर स्वेक्षा से स्वरूप धारण करने वाले।

161) नियम: -

प्रजा को अपने अपने अधिकारों में नियमित करने वाले।

162) यम: -

अंत:करण में स्थित होकर नियमन करने वाले।

163) वेद्य: -

कल्याण की इच्छा वालों के द्वारा जानने योग्य।

164) वैद्य: -

सब विद्याओं के जानने वाले।

165) सदयोगी -

सदा योग में स्थित रहने वाले।

166) विरहा -

धर्म की रक्षा के लिए असुर योद्धाओं को मार डालने वाले।

167) माधव: -

विद्या के स्वामी ।

168) मधु: -

अमृत की तरह सबको सबको प्रसन्न करने वाले।

169) अतिंद्रिय: -

इन्द्रियों से सर्वथा अतीत।

170) महामाय: -

महावियों पर भी माया डालने वाले महान मायावी।

171) महोत्साह:-

जगत की उत्पत्ति स्थिति और प्रलय के लिए तत्पर रहने वाले परम उत्साही।

172) महाबल: -

महान बलशाली।

173) महाबुद्धि: -

महान बुद्धिमान।

174) महावीर्य: -

महान पराक्रमी।

175) महाशक्ति: -

महान सामर्थ्यवान।

176) महाद्युति: -

महान कांतिमान

177) अनिर्देश्यवपु: -

अनिर्देश्य विग्रह वाले।

178) श्रीमान -

ऐश्वर्यवान।

179) अमेयात्मा -

जिसका अनुमान न किया जा सके ऐसे आत्मा वाले।

180) महाद्रिधृक‌् -

अमृत मंथन और गोरक्षण के समय मंद्राचल और गोवर्धन नामक पर्वतों को धारण करने वाले।

181) महेषास: -

महान धनुष वाले।

182)‌ महिभर्ता -

पृथ्वी धारण करने वाले।

183) श्रीनिवास: -

अपने वक्ष स्थल में श्री को निवास देने वाले।

184) सतां गति -

सत्यपुरूषों के आश्रय रूप।

185) अनिरुद्ध:-

सच्ची भक्ति के बिना किसी के भी द्वारा न रुकने वाले।

186) सुरानंद: -

देवताओं को आनंदित करने वाले।

187) गोविंद: -

वेद वाणी के द्वारा अपने को प्राप्त करा देने वाले ।

188) गोविंदां पति: -

वेद वाणी को जानने वालों के स्वामी।

189) मरीचि: -

तेजस्वियों के भी परम तेजरूप।

190) दमन: -

प्रमाद करने वाली प्रजा को यम आदि के रूप से दमन करने वाले।

191) हंस: -

पितामह ब्रह्मा को वेद का ज्ञान कराने के लिए हंसरूप धारण करने वाले।

192) सुपर्ण:-

सुंदर पंख वाले गरुण स्वरूप

193) भूजगोत्तम: -

सर्पो में श्रेष्ठ शेषनाग रूप।

194) हिरण्यनाभ: -

हितकारी और रमणीय नभिवाले।

195) सुतपा: -

बद्रिकाश्रम में नर नारायण रूप से सुंदर तप करने वाले।

196) पद्मनाभ: -

कमल के समान सुन्दर नाभिवाले।

197) प्रजापति: -

संपूर्ण प्रजाओं के स्वामी।

198) अमृत्यू: -

मृत्यु से रहित।

199) सर्वदृक -

सब कुछ देखने वाले।

200) सिंह: -

दुष्टों का विनाश करने वाले।

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