विष्णु जी के 1000 नाम ! भाग - 6


501) कपिंद्र: - 

बंदरों के स्वामी, श्रीराम

502) भुरिदक्षिण: -

श्रीरामादि अवतारों में यज्ञ करते समय बहुत सी दक्षिणा प्रदान करने वाले।

503) सोमप: -

यज्ञों में देव रूप और यजमान रूप से सोमरस का पान करने वाले।

504) अमृतप: -

समुद्र मंथन से निकाला हुआ अमृत देवों को पिलाकर स्वयं पीने वाले।

505) सोम: -

औषधियों का पोषण करने वाले चंद्रमा रूप।

506) पुरूजित -

बहुतों को विजय लाभ करने वाले।

507) पुरुसत्तम: -

विश्व रूप और अत्यंत श्रेष्ठ।

508) विनय: -

दुष्टों को दण्ड देने वाले।

509) जय: -

सब पर विजय प्राप्त करने वाले।

510) सत्य संघ: -

सच्ची प्रतिज्ञा करने वाले।

511) दाशार्ह: -

दाशार्ह कुल में प्रकट होने वाले।

512) सत्वतां पति: -

यादवों के और अपने भक्तों के स्वामी।

513) जीव: -

क्षेत्रज्ञ रूप से प्राणों को धारण करने वाले।

514) वीनयितासाक्षी -

अपने शरणापन्न भक्तों के विनय भावों को तत्काल प्रत्यक्ष अनुभव करने वाले।

515) मुकुंद: -

मुक्तिदाता।

516) अमितविक्रम: -

वामनावतार में पृथ्वी नापते समय अत्यंत विस्तृत पैर रखने वाले।

517) अंभोनिधी: -

जल के निधान समुद्र स्वरूप।

518) अनंतात्मा -

अनंत मूर्ति।

519) महोदधिशय: -

प्रलय काल के महान् समुद्र में शयन करने वाले।

520) अंतक: -

प्राणियों का संहार करने वाले मृत्यु स्वरूप।

521) अज़: -

अकार भगवान विष्णु का वाचक है, उससे उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा स्वरूप।

522) महार्ह: -

पूजनीय।

523) स्वाभाव्य: -

नित्य सिद्ध होने के कारण स्वभाव से ही उत्पन्न न होने वाले।

524) जितामित्र: -

रावण - शिशुपाल आदि शत्रुओं को जितने वाले।

525) प्रमोदन: -

स्मरण मात्र से नित्य प्रमुदित करने वाले ।

526) आनन्द: -

आनंद स्वरूप।

527) नंदन: -

सबको प्रसन्न करने वाले।

528) नंद: -

संपूर्ण ऐश्वर्यों से संपन्न ।

529) सत्यधर्मा -

धर्मज्ञानादी सब गुणों से युक्त।

530) त्रिविक्रम: -

तीन डग में तीनों लोकों को नापने वाले।

531) महर्षि कपिलाचार्य: -

सांख्यशास्त्र के प्रणेता भगवान कपिलाचार्य।

532) कृतज्ञ: -

अपने भक्तों की सेवा को बहुत मानकर अपने को उनका ऋणी समझने वाला।

533) मेदिनीपति: -

पृथ्वी के स्वामी।

534) त्रिपद: -

त्रिलोकी रूप तीन पैरों वाले विश्व रूप।

535) त्रिदशाध्यक्ष: -

देवताओं के स्वामी।

536) महाश्रृंग: -

मत्स्यावतार में महान् सींग धारण करने वाले।

537) कृतांतकृत -

स्मरण करने वालों के समस्त कर्मों का अंत करने वाले।

538) महावराह: -

हिरण्याक्ष का वध करने के लिए महावराह रूप धारण करने वाले।

539) गोविंद: -

नष्ट हुई पृथ्वी को पुनः प्राप्त कर लेने वाले।

540) सुषेण: -

पार्षदों के समुदाय रूप सुन्दर सेना से सुसज्जित।

541) कनकांगदी -

सुवर्ण का बाजूबंद धारण करने वाले।

542) गुहा: -

हृदयाकाश में छिपे रहने वाले।

543) गंभीर: -

अतिशय गंभीर स्वभाव वाले।

544) गहन: -

जिनके स्वरूप में प्रविष्ट होना अत्यंत कठिन हो।

545) गुप्त: -

वाणी और मन से जानने में न आने वाले।

546) चक्रगदाधर: -

भक्तों की रक्षा करने के लिए चक्र और गदा आदि दिव्य आयुधों को धारण करने वाले।

547) वेधा: -

सब कुछ विधान करने वाले।

548) स्वांग: -

कार्य करने मी स्वयं ही सहकारी।

549) अजित: -

किसी के द्वारा न जीते जाने वाले।

550) कृष्ण: -

श्यामसुंदर श्री कृष्ण।

551) दृढ़: -

अपने स्वरूप और सामर्थ्य से कभी भी च्युत न होने वाले।

552) सड़्कर्षणोऽच्युत: -

प्रलय काल में एक साथ सबका संहार करने वाले और जिसका कभी किसी भी कारण से पतन न हो सके।

553) वरुण: -

जल के स्वामी वरुण देव।

554) वारुण: -

वरुण के पुत्र वशिष्ठ स्वरूप।

555) वृक्ष: -

अश्वत्थ वृक्ष स्वरूप।

556) पुष्कराक्ष: -

कमल के समान नेत्र वाले।

557) महामना: -

संकल्प मात्र से उत्पत्ति, पालन और संहार आदि समस्त लीला करने की शक्ति वाले।

558) भगवान -

उत्पत्ति और प्रलय , आना और जाना तथा विद्या और अविद्या को जानने वाले।

559) भगहा -

अपने भक्तों का प्रेम बढ़ाने के लिए उनके ऐश्वर्य का हरण करने वाले

560) आनंदी -

परम सुख स्वरूप।

561) वनमाली -

वैजयंती वनमाला धारण करने वाले।

562) हलायुध -

हल रूप शस्त्र को धारण करने वाले बलभद्र स्वरूप।

563) आदित्य: -

अदिति पुत्र वामन भगवान।

564) ज्योतिरादित्य: -

सुर्य मंडल में विराजमान ज्योति स्वरूप।

565) सहिष्णु: -

समस्त द्वंदों को सहन करने में समर्थ।

566) गतिसत्तम: -

सर्वश्रेष्ठ गति स्वरूप।

567) सुधन्वा -

अतिशय सुन्दर सारंग धनुष धारण करने वाले।

568) खण्डपरशु: -

शत्रुओं का खंडन करने वाले फरसे को धारण करने वाले परशुराम स्वरूप।

569) दारुण: -

सत्य मार्ग विरोधियों के लिए महान् भयंकर।

570) द्रविणप्रद्: -

अर्थार्थी भक्तों को धन संपत्ति प्रदान करने वाले।

571) दिवीस्पृक -

स्वर्ग लोक तक व्याप्त ।

573) सर्वद्दगवयास: -

सबके दृष्टा एवं वेद का विभाग करने वाले श्री कृष्णद्वैपायन  व्यास स्वरूप।

574) त्रिसामा -

देवव्रत आदि तीन साम श्रुतियों द्वारा जिनकी स्तुति की जाती है।

575) सामग: -

सामवेद का गान करने वाले।

576) साम -

सामवेद स्वरूप ।

577) निर्वानम -

परम शांति के निधान परमनंदन स्वरूप।

578) भेषजम -

संसार रोग की औषधि।

579) भिषक -

संसार रोग का नाश करने के लिए गीतारूप उपदेशामृत का पान कराने वाले परम वैध।

580) संन्यासकृत -

मोक्ष के लिए संन्यासाश्रम और संन्यास योग का निर्माण करने वाले।

581) शम: -

उपशमता का उपदेश देने वाले।

582) शांत: -

परम शांत स्वरूप।

583) निष्ठा -

सबकी स्थिति के आधार अधिष्ठान स्वरूप।

584) शांति: -

परम शांति स्वरूप।

585) परायणम -

मुमुक्षु पुरुषों के परम प्राप्य स्थान।

586) सुभांग: -

अति मनोहर परम सुन्दर अंगोवाले।

587) शांतिद: -

परम शांति देने वाले।

588) स्त्रष्टा -

सर्ग के आदि में सबकी रचना करने वाले।

589) कुमुद: -

पृथ्वी पर प्रसन्नता पूर्वक लीला करने वाले।

590) कुवलेशय: -

जल में शेषनाग की शय्या पर शयन करने वाले।

591) गोहित: -

गोपाल रूप से गायों का और अवतार धारण करके भार उतारकर पृथ्वी का हित करने वाले।

592) गोपति: -

पृथ्वी के और गायों के स्वामी।

593) गोप्ता -

अवतार धारण करके सबके सम्मुख प्रकट होते समय अपनी माया से अपने स्वरूप को आच्छादित करने वाले।

594) वृषभाक्ष: -

 समस्त कामनाओं की वर्षा करने वाली कृपादृष्टि से युक्त।

595) वृषप्रिय: -

धर्म से प्यार करने वाले।

596) अनिवर्ती -

रणभूमि में और धर्म पालन में पीछे न हटने वाले।

597)  निवृत्तात्मा -

स्वभाव से ही नी विषय वासना रहित नित्य शुद्ध मन वाले।

598) संक्षेप्ता -

विस्तृत जगत को संहार काल में संक्षिप्त यानी सूक्ष्म करने वाले।

599) क्षेमकृत -

शरणागत की रक्षा करने वाले।

600) शिव: -

स्मरण मात्र से पवित्र करने वाले कल्याण स्वरूप।

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