विष्णु जी के 1000 नाम ! भाग - 3


201) संधाता -

पुरुषों को उनके कर्मों के फलों से संयुक्त करनेवाले ।

202) संधिमान् -

संपूर्ण यज्ञ और तपों को भोगने वाले।

203) स्थिर: -

सदा एकरूप।

204) अज: -

भक्तों के हृदयों में जाने वाले और दुर्गुणों को दूर हटा देने वाले।

205) दुर्मर्षण: -

किसी से भी सहन नहीं किये जा सकने वाले।

206) शास्ता -

सब पर शासन करने वाले।

207) विश्रुतात्मा -

वेद शास्त्रों में विशेष रूप से प्रसिद्ध स्वरूप वाले।

208) सुरारिहा -

देवताओं के शत्रुओं को मारने वाले।

209) गुरु: -

सब विद्याओं का उपदेश करने वाले।

210) गुरूतम: -

ब्रह्मा आदि को भी ब्रह्मविद्या प्रदान करने वाले।

211) धाम -

संपूर्ण प्राणियों की कामनाओं के आश्रय।

212) सत्य: -

सत्यस्वरूप ।

213) सत्यपराक्रम: -

अमोघ पराक्रम वाले।

214) निमिष: -

योगनिद्रा से मूंदे हुए नेत्रों वाले।

215) अनिमिष: -

मत्स्यरूप से अवतार लेने वाले।

216) स्त्रग्वी -

वैजयंती माला धारण करने वाले।

217) वाचस्पतिरूदारथी: -

सारे पदार्थों को प्रत्यक्ष करने वाली बुद्धि से युक्त समस्त विद्याओं के पति।

218) अग्रणी: -

मुमुक्षुओं को उत्तर पद पर ले जाने वाले।

219) ग्रामणी: -

भूतसमुदाय के नेता।

220) श्रीमान् -

सबसे बढ़ी - चढ़ी कांतिवाले।

221) न्याय: -

प्रमाणों के आश्रयभूत तर्क की मूर्ति।

222) नेता -

जगत रूप यंत्र चलाने वाले।

223) समीरण: -

व्श्रसरूप से प्राणियों से चेष्टा कराने वाले।

224) सहस्त्रमूर्ध -

हजार सिर वाले।

225) विश्वात्मा -

विश्व के आत्मा।

226) सहस्त्राक्ष: -

हजार आंखों वाले।

227) सहस्त्रपात् -

हजार पैरों वाले।

228) आवर्तन: -

संसार चक्र को चलाने के स्वभाव वाले।

229) निवृत्तात्मा  - 

संसार बंधन से मुक्त आत्म स्वरूप।

230) संवृत्त: -

अपनी योगमाया से ढके हुए।

231) सम्प्रमर्दन: -

अपने रुद्र आदि स्वरूप से सबका मर्दन करने वाले।

232) अह:संवर्तक -

सूर्य रूप से सम्यक्तया दिन के प्रवर्तक ।

233) वहिॄ: -

हवि को वहन करने वाले अप्रिदेव।

234) अनिल: -

प्राण रूप से वायु स्वरूप।

235) धरणीधर: -

वराह और शेषरुप से पृथ्वी को धारण करने वाले।

236) सुप्रसाद: -

शिशुपाल आदि अपराधियों पर भी कृपा करने  वाले।

237) प्रसन्नात्मा -

प्रसन्न स्वभाव वाले अर्थात करुणा करने वाले।

238) विश्वधृक -

जगत को धारण करने वाले।

239) विश्वभुक्  -

विश्व को भोगने वाले अर्थात विश्व का पालन करने वाले ।

240) विभु: -

सर्वव्यापक।

241) सत्कर्ता -

भक्तों का सत्कार करने वाले।

242) सत्कृत: -

पुजितों से भी पूजित।

243) साधु: -

भक्तों के कार्य साधने वाले।

244) जहुॢ: -

संहार के समय जीवों का लय करने वाले।

245) नारायण: -

जल में शयन करने वाले।

246) नर: -

भक्तों को परम धाम में ले जाने वाले।

247) असंख्येय: -

नाम और गुणों की संख्या से शून्य।

248) अप्रमेयात्मा -

किसी से भी मापे न जा सकने वाले।

249) विशिष्ट: -

सबसे उत्कृष्ट।

250) शिष्टकृत् -

शासन करने वाले।

251) शुचि: -

परम शुद्ध।

252) सिद्धार्थ: -

इच्छित अर्थ को सर्वथा सिद्ध कर चुकने वाले।

253) सिद्धसंकल्प: -

सत्य संकल्प वाले।

254) सिद्भिद: -

कर्म करने वालों को उनके अधिकार के अनुसार फल देने वाले।

255) सिद्धिसाधन : -

सिद्धि रूप क्रिया के साधक।

256) वृषाही -

द्वादशाहादि यज्ञों को अपने में स्थित रखने वाले।

257) वृषभ: -

भक्तों के लिए इच्छित वस्तुओं की वर्षा करने वाले।

258) विष्णु: -

शुद्ध सत्वमूर्ति ।

259) वृषपर्वा -

परम धाम में आरुण होने की इच्छा वालों के लिए धर्मरूप सीढ़ियों वाले।

260) वृषोदर: -

अपने उदर में धर्म को धारण करने वाले।

261) वर्धन: -

भक्तों को बढ़ाने वाले।

262) वर्धमान: -

संसार रूप से बढ़ने वाले।

263) विवित्त: -

संसार से पृथक रहने वाले।

264) श्रुतिसागर: -

वेदरूप जल के समुद्र।

265) सुभुज: -

जगत् की रक्षा करने वाली अति सुंदर भुजाओं वाले।

266) दुर्धर: -

दूसरों से धारण न किए जा सकने वाले पृथ्वी आदि लोकधारक पदार्थों को भी धारण करने वाले और स्वयं किसी से धारण न किए जा सकने वाले।

267) वाग्मी -

वेडमयी वाणी को उत्पन्न करने वाले।

268) महेंद्र: -

ईश्वरों के भी ईश्वर।

269) वसुद: -

धन देने वाले।

270) वसु: -

धन रूप ।

271) नैकरूप: -

अनेक रूप धारी।

272) वृहद्रूप: -

विश्व रूप धारी ।

273) शिपिविष्ट: -

सूर्य किरणों में स्थित रहने वाले।

274) प्रकाशन: -

सबको प्रकाशित करने वाले।

275) ओजस्तेजोद्युतिधर: -

प्राण और बल , शूरवीरता आदि गुण तथा ज्ञान की दीप्ति को धारण करने वाले।

276) प्रकाशात्मा -

प्रकाश रूप विग्रह वाले।

277) प्रतापन: -

सूर्य आदि अपनी विभूतियों से विश्व को तप्त करने वाले।

278) ऋद्ध: -

धर्म ज्ञान वैराग्य आदि से संपन्न।

279) स्पष्टाक्षर: -

ओंकार रूप स्पष्ट अक्षर वाले।

280) मंत्र: -

ऋक‌् साम और यजुरूप मंत्रों से जानने योग्य।

281)। चद्रांशु: -

संसार ताप से संतप्तचित्त पुरूषों को चंद्रमा की  किरणों के समान आह्मदित करने वाले।

282) भास्करद्युति: -

सूर्य के समान प्रकाश स्वरूप।

283) अमृतांशुद्धव: -

समुद्र मंथन करते समय चंद्रमा को उत्पन्न करने वाले समुद्ररूप।

284) भानु: -

भासने वाले।

285) शशबिन्दु: -

खरगोश के समान चिन्ह् वाले।

286) सुरेश्वर: -

देवताओं के ईश्वर।

287) औषधम‌् -

संसार रोग को मिटाने के लिए औषध रूप।

288) जगत: सेतु: -

संसार सागर को पार कराने के लिए सेतुरूप।

289) सत्यधर्मपराक्रम: -

सत्य स्वरूप धर्म और पराक्रम वाले।

290) भूतभव्यभवन्नाथ: -

भूत, भविष्य, वर्तमान सभी प्राणियों के स्वामी।

291) पवन: -

वायुरूप।

292) पावन: -

दृष्टि मात्र से जगत को पवित्र करने वाले।

293) अनल: -

अप्रिस्वरूप ।

294) कामहा -

अपने भक्तजनों के सकाम भाव को नष्ट करने वाले।

295) कामकृत् -

भक्तों की कामनाओं को पूर्ण करने वाले।

296) कांत: -

कमनियरूप ।

297) काम: -

ब्रह्मा, विष्णु, महादेव उस प्रकार त्रिदेव रूप।

298) कामत्रद: -

भक्तों को उनकी कामना की हुई वस्तुएं प्रदान करने वाले।

299) प्रभु: -

  सर्वोत्कृष्ट सर्वसमथ्र्यवान‌् स्वामी ।

300) युगादिकृत् -

युगादि का आरंभ करने वाले।

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