विष्णु जी के 1000 नाम ! भाग - 10
901) स्वस्तिद: -
परमानंद रूप मंगल देने वाले।
902) स्वस्तिक -
श्रित जन्स का कलिंग वाला।903) स्वस्ति - कल्यान रूप।
904) स्वस्तिउक्क्क् -
भक्तों के परम कल्याण की रक्षा करने वाले।905) स्वस्तिदक्षिण: -
कल्याण करने में समर्थ और शीघ्र कल्याण करने वाले906) अरौद: -
प्रकार के रुद्र (क्रूर) भावों से रहित शंतिमूर्ति।907) कुंडली -
के समान प्रकाशमय मकराकृति कुंडलो को धारण करने वाले।908) चक्री -
सुदर्शन चक्र को धारण करने वाले।909) विक्रमी -
सर्वाधिक विलोपनीय पराक्रम।910) ऊर्जितशासन: -
जिनकी श्रुति स्मृति रूप शासन अत्यंत श्रेष्ठ है- ऐसे अति श्रेष्ठ शासन करने वाले।911) शबदतिग: -
शब्द की जहां पहुंच नहीं, ऐसे वाणी के अविषय।912) शब्दसह: -
वेद शास्त्र जिनकी महिमा का बखान करते हैं, ऐसे।913) शिशिर: -
त्रिताप पीड़ितो को शांति देने वाले शीतल मूर्ति।914) सोरवारीकर: -
ज्ञानियों की रात्रि संसार और अज्ञानियों की रात्रि ज्ञान - ये दोनों को उत्पन्न करने वाले हैं।915) अक्रूर: -
प्रकार के क्रूर भावों से रहित।916) पेशल: -
मन, वाणी और कर्म - सभी दृष्टियों स सुन्दर होने के कारण परम सुंदर।917) प्रतिज्ञा: -
सभी प्रकार से समृद्ध, भावपूर्ण और संवेग में बड़े से बड़े कार्य करने देने वाले महान कार्य के अनुकूल।
918) दक्षिण: - संहारक।
919) क्षमिणावर:-
क्षमा करने वालों में उत्तम।920) विद्धमतम्: -
विद्वानों में सर्वश्रेष्ठ परम विद्वान।921) वीतभय: -
सब प्रकार के भय से रहित।922) पुण्यश्रवणकीर्तन: -
जिसका नाम, गुण, महिमा और स्वरूप का श्रवण और कीर्तन परम पुण्य अर्थात परम पावन है।923) उत्थान: -
संसार सागर पार करने वाले।924) दृश्यावली -
पापों का और पापियों का विनाश करने वाले।925) पुण्य: -
स्मरण आदि करने वाले सभी पुरुषों को पवित्र कर देने वाले।926) दु: स्वश्नाशन: -
ध्यान, स्मरण, कीर्तन और पूजन करने से बुरे सपने का और संसार रूप दुस्वप्न का नाश करने वाले।927) वीरहा -
शरणागतों की विविध गतियों का अर्थात संसार चक्र का विनाश करने वाले।928) जुड़ाव: -
प्रकार से रक्षा करने वाले।929) संत: -
संत विद्या और विनय का प्रचार करने के लिए संत रूप से प्रकट होने वाले।930) जीवन: -
प्रजा को प्रकाश रूप से जीवित रखने वाले।931) मान्यवंत: -
विश्व को पैत करके स्थित रखने वाले।932) अनंत: -
अनंत अनंत - अमित स्वरूप933) अनंतश्री: -
अनंतश्री यानी अपरिमित पराशक्तियों से युक्त।934) जितमानु: -
प्रकार से क्रोध को जीतने वाले।935) भुमः - भक्तभयारी।
936) गभीरात्मा -
गंभीर मन वाले।937) विदिश: -
अधिकारियों को उनके कर्मानुसार विभाग द्वारा नाना प्रकार के फल देने वाले।938) कलश: -
चार वेद रूप कोणों वाले मंगल मूर्ति और न्यायपूर्ण।939) व्यादिश: -
सबको यथायोग्य विविध आज्ञा देने वाले।940) पक्ष: -
वेदरूप से पूरे कर्मो का फल कमानेलाने वाले।941) अनादि: -
जिसका आदि कोई न हो जैसे सबके कारण स्वरूप।942) भूर्भुव: -
पृथ्वी के भी आधार।943) लक्ष्मी: -
समस्त शोभयमान वस्तुओं की शोभा।944) सुबीर: -
आश्रित जनों के अंत: करन में सुन्दर कालमयी विविध स्फुरणा करने वाले।945) रंजनगरडड: -
परम रुचिकर कल्यम बाजूबंदों धारण करने वाले।946) जनन: -
प्राणिमात्र को उत्पन्न करने वाले।947) जनजन्मादि: -
जन्म लेने वालों के जन्म के मूल कारण।948) भीम: -
दुष्टों के लिए भयानक।949) भीमपराक्रम: -
अतिशय भय उत्पन्न करने वाले चरक्रम से युक्त।950) एररनिलय: -
आधार स्वरूप पृथ्वी आदि सभी भूतों के स्थान।951) अधाता -
जिसका कोई भी बनाने वाला न हो ऐसा स्वयं स्थित है।952) पुष्पहास: -
पुष्प की भांति विकसित यसीवेल।953) प्रजागर: -
भली प्रकार जाग्रत रहने वाले नित्यप्रबुद्ध।954) ऊध्र्वग: -
सबसे ऊपर रहने वाले।955) शांताचार्य: -
सत्य पुरुषों के मार्ग का आचरण करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।956) प्रणद: -
परीक्षित आदि मरे हुए को भी जीवन देने वाले।957) प्रणव: - कारस्वरूप।
958) पान -
यथायोग्य व्यवहार करने वाले।959) प्रमाणम्: -
स्वतः अनुक्रम होने से स्व प्रमाण स्वरूप।
960) प्रणयनिलय: -
प्राणों के आधार रूप।961) प्राणभृतः-
सभी प्राणों का पोषण करने वाले।
962) प्राणजीवन: -
प्राण - वायु के संचार से प्राणियों को जीवित रखने वाले।
963) तत्वम -
वास्तविक तत्व स्वरूप।
964) तत्ववित् -
वास्तविकता तत्व को पूर्णतया जानने वाले।
965) एकता - आदित्यभाव।
966) जन्ममृत्युजरातिग: -
जन्म, मृत्यु और बुढ़ापा आदि शरीर के धर्मो से सर्वथा अतीत।
967) भूर्भुव: स्वस्तू: -
भू: भुव: स्वरूप तीनों लोकों को भविष्यत करने वाले और संसार वृक्ष स्वरूप।
968) तार: -
संसार सागर पार उतरने वाले।
969) सविता -
सबको उत्पन्न करने वाले पितामह।
970) प्रपितामह: -
पितामह ब्रह्मा के भी पिता।
971) यज्ञ: - यज्ञ स्वरूप।
972) यज्ञपति: -
सभी यज्ञों के अधिष्ठाता ।
973) यज्वा -
यजमान रूप से यज्ञ करने वाले।
974) यज्ञागढ़: -
सभी यज्ञ रूप अंगो वाले।
975) यजीवाहन: - यज्ञों को चलाने वाले।
976) यज्ञभृत: -
यज्ञों का धारण पोषण करने वाला
977) यज्ञितेश - यज्ञों के रचयिता।
978) या प्रवेशी-
सभी यज्ञ जिसमें समाप्त होते हैं - ऐसे यज्ञशेषी।
979) यज्ञभुक: - सभी यज्ञों के भोक्ता।
980) यज्ञोपवीत: -
ब्रह्म यज्ञ, जपयज्ञ आदि बहुत से यज्ञ जिनकी प्राप्ति के साधन है ऐसे।
981) ज्ञानज्ञानित्श -
यज्ञों का अंत करने वाले यानी उनका फल देने वाले।
982) यज्ञुघम् -
यज्ञों में गुप्त ज्ञान स्वरूप और तटस्थ यज्ञ स्वरूप।
983) अन्नमश् -
सभी प्राणियों की अन्न अर्थात अन्न की भांति उनके सब प्रकार से तुष्टि पुष्टि करने वाले।
984) अन्नाद: - सभी अन्नों के भोक्ता।
985) आत्मयोनि: -
जिसका कारण दूसरा नहीं।
986) स्वयंजत: -
स्वयं अपने आप को स्वेच्छा पूर्वक प्रकट होने वाले।
987) वैखान: -
पाताल वासी हिरण्यक्ष का वध करने के लिए पृथ्वी को खोदने वाले।
988) सामग्यान - सामवेद का गान करने वाले।
989) देवकीनंदन: - देवकी पुत्र।
990) स्त्रोहा - सभी लोकों के विनियमन।
991) गीतांश: - अर्थाति।
992) पापनाशन: -
स्मरण, कीर्तन, पूजन और ध्यान आदि करने से सभी पाप समुदाय का नाश करने वाले।
993) शखभृत -
पाञ्जन्य शंख को धारण करने वाले।
994) नंदकी -
नन्दक नामक खड्ग धारण करने वाले।
995) चक्री -
सुदर्शन नामक चक्र धारण करने वाले।
996) शार्डिंगनवा - शार्दगद्दीकार।
997) गदाधर: -
कौमोदकी नाम की गदा धारण करने वाले।
998) रथागडपर्णी: -
भीष्म की प्रतिज्ञा को रखने के लिए सुदर्शन चक्र को हाथ में धारण करने वाले।
999) अक्षोभ्य -
जो किसी के द्वारा क्षुभित - भयभीत नहीं किए जा सके ऐसे।
1000) सर्वप्रमेय्युद्ध: -
ज्ञान और अज्ञान विन भी युद्धादि में काम आने वाले हथियारों है, उन सबको धारण करने वाले।

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