युधिष्ठिर ने क्यूं एक कुत्ते के लिए त्याग दिया स्वर्ग का सुख!

भीम,अर्जुन, नकुल सहदेव और द्रौपदी की मृत्यु के बाद,उसी समय देवराज इन्द्र रथ लेकर वहां पहुंचे और युधिष्ठिर से कहा " तुम इस रथ पर सवार हो जाओ"


युधिष्ठिर ने देवराज इंद्र से कहा "  मेरे भाई और द्रौपदी भी मेरे साथ चले इसकी व्यवस्था कीजिए उनके बिना मैं स्वर्ग में नहीं जाना चाहता हूं।"


देवराज इंद्र ने युधिष्ठिर से कहा " तुम्हारे सभी भाई और द्रौपदी मृत्यु के बाद ही स्वर्ग में पहुंच चुके है। लेकिन तुम मनुष्य शरीर के साथ ही स्वर्ग में चल सकते हो।

तब युधिष्ठिर ने देवराज इंद्र से कहा " यह कुत्ता भी मेरा बहुत भक्त है और इसे मैं अपने साथ ले जाने की आज्ञा मांगता हूं। "


देवराज इंद्र ने युधिष्ठिर कहा, ‘‘ कुत्ता रखने वालों के लिए स्वर्ग लोक में स्थान नहीं है। उनके यज्ञ करने और कुआं, बावली आदि बनवाने का जो पुण्य होता है उसे क्रोधवश राक्षस हर लेते हैं।
आपको अमरता मेरे समान ऐश्वर्य, पूर्ण लक्ष्मी और बहुत बड़ी सिद्धि प्राप्त हुई है साथ ही स्वर्गिक सुख भी सुलभ हुए हैं। इस कुत्ते को छोड़ कर आप मेरे साथ चलें।’’


युधिष्ठिर ने कहा, ‘‘ यह कुत्ता मेरे साथ है, मेरा भक्त है। फिर इसका त्याग मैं कैसे कर सकता हूं।’’


देवराज इंद्र ने कहा, ‘‘मनुष्य जो कुछ दान, स्वाध्याय अथवा हवन आदि पुण्य कर्म करता है उस पर यदि कुत्ते की दृष्टि भी पड़ जाए तो उसके फल को राक्षस हर ले जाते हैं इसलिए आप इस कुत्ते का त्याग कर दें। इससे आपको देवलोक की प्राप्ति होगी।


आपने भाइयों तथा प्रिय पत्नी द्रौपदी का परित्याग करके अपने पुण्य कर्मों के फलस्वरूप देवलोक को प्राप्त किया है फिर इस कुत्ते को क्यों नहीं छोड़ देते ? सब कुछ छोड़ कर अब कुत्ते के मोह में कैसे पड़ गए।’’


युधिष्ठिर ने कहा, ‘‘ द्रौपदी तथा अपने भाइयों को जीवित करना मेरे वश की बात नहीं है, मर जाने पर ही मैंने उनका त्याग किया है, जीवित अवस्था में नहीं।


यह कुत्ता मेरी शरण में आया है। स्वर्ग के लोभ से मैं इसका परित्याग नहीं कर सकता।’’

युधिष्ठिर के दृढ़ निश्चय को देखकर कुत्ते के रूप में स्थित भगवान धर्मराज प्रसन्न होकर अपने वास्तविक रूप में आ गए।


वह युधिष्ठिर की प्रशंसा करते हुए बोले, ‘‘आप अपने सदाचार, बुद्धि और सम्पूर्ण प्राणियों के प्रति इस दया के कारण अपने पिता का नाम उज्ज्वल कर रहे हैं। क्षुद्र कुत्ते के लिए इंद्र के रथ का भी परित्याग आपने कर दिया है। अत: स्वर्ग लोक में आपकी समानता करने वाला और कोई नहीं है।’’

धर्म, इंद्र, मरुद्गण, अश्विनी कुमार, देवता और देवर्षियों ने युधिष्ठिर को रथ में बिठाकर अपने-अपने विमान में सवार होकर स्वर्गलोक को प्रस्थान किया।

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