किस ऋषि का विवाह 50 राजकुमारियों से हुआ था ?
सौभरि ऋषि का विवाह मांधाता की 50 राजकन्याओं से हुआ था।
♦️एक समय बह्वृच सौरभि नामक महर्षि ने बारह वर्ष तक जल में निवास किया। उस जल में सम्मद नामक एक बहुत सी संतानों वाला और बहुत बड़ा मत्स्यराज था।
♦️ उनके पुत्र, पौत्र और दौहित्र आदि उसके आगे पीछे तथा इधर उधर पक्ष, पुच्छ और सिरके ऊपर घूमते हुए अति खुश होकर रात दिन उसी के साथ क्रीडा करते रहते थे तथा वह भी अपनी सन्तान के स्पर्श से अत्यंत खुश होकर उन मुनिश्वर के देखते अपने पुत्र, पौत्र और दौहित्र आदि के साथ खेला करता था।
♦️ इस प्रकार जल में स्थित सौभरि ऋषि ने एकाग्रचित्त होकर समाधि छोड़कर रात दिन उस मत्स्यराज की अपने पुत्र, पौत्र और दौहित्र आदि के साथ उनके मन में भी सन्तान प्राप्ति की अभिलाषा से विवाह की इच्छा से राजा मांधाता के पास आये।
♦️ सौभरि ऋषि ने राजा मांधाता से कहा कि मुझे विवाह करना है जिसके लिए मुझे एक कन्या चाहिए इसलिए मैं आपके पास आया हूँ। आप मुझे अपनी 50 कन्याओं में से केवल एक ही कन्या दे दो।
♦️ सौभरि ऋषि श्राप न दे दे इस भय से राजा ने कहा कि आप राजकुमारियों के पुर में जाये और यदि मेरी कोई भी पुत्री आपके विवाह करने को तैयार हो तभी मैं आपकी बात मानूंगा।
♦️ सौभरि ऋषि जब राजकुमारियों की पुरी में गये तब उन्होंने अपना रूप बहुत ही सुंदर बना लिया और राजा ने कहलाया कि जो भी कन्या इस ब्राह्मण का वरण करेगी उससे ही उनका विवाह होगा।
♦️ उस ऋषि के रुप पर मोहित होकर राजा की सभी कन्याओं ने उन्हें वरण किया और विवाह के लिए तैयार हो गई।
♦️अपनी वचन की पूर्ति के लिए न चाहते हुए भी राजा मांधाता को अपनी सभी 50 कन्याओं का विवाह सौभरि ऋषि करना पड़ा। वे सभी ऋषि के साथ उनके आश्रम में चली गई।
♦️ अपने आश्रम में जाकर विश्वकर्मा से अपनी सभी पत्नियों के लिए एक - एक महल बनवाया जिसमें सभी सुख सुविधाएं थी।
♦️ एक दिन राजा मांधाता अपनी पुत्रियों से मिलने के लिए गये। वहां जाकर कतार में बने महलों को देखा और एक महल में गये, जहाँ अपनी पुत्री से उसका कुशल पूछा तब उसने बताया कि यहां हम बहुत सुखी हैं ,लेकिन मेरे पति मुझसे अति प्रेम करते हैं और केवल मेरे ही साथ रहते है , बहनों के पास नहीं जाते जिससे मेरी बहनें बड़ी दुःखी होंगी।
♦️ इसी तरह राजा बारी - बारी अपनी सभी पुत्रियों के पास गयें और सभी ने उनसे यही बात कही जिससे विस्मय के कारण राजा ऋषि के पास गयें और ऋषि से भेंट करके खुशी से अपने राज्य को चले गये।
♦️ सौभरि ऋषि के उन राजकन्याओं से 150 पुत्र हुए।
इसके बाद सौभरि ऋषि ने सोचा कि मैं इस तरह तो मोह माया में ही फंसा रहूंगा और मेरी इच्छाएं कभी खत्म नहीं होंगी। इसलिए वे अपनी सभी पत्नियों के साथ सभी कुछ त्याग के वन में चले गये और भगवान में लीन हो कर मोक्ष को प्राप्त हो गये।
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