विष्णु जी के 1000 नाम ! भाग - 1
महाभारत कथा में जब भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर थे तब उन्होंने युधिष्ठिर को विष्णु जी के 1000 नामों और उनके अर्थो का वर्णन इस प्रकार है -
1) विश्वम -
1) विश्वम -
समस्त जगत के कारण रूप।
2) विष्णु: - सर्वव्यापी।
3) वषट्कार: - जिसके उद्देश्य से यज्ञ में।
4) भूतभव्यभवरत्रभु: -
भूत, भविष्य और वर्तमान के स्वामी।
5) भूतकृत् -
रजोगुण का आश्रय लेकर ब्रह्मरूप से संपूर्ण स्वामी।
6) भूतभृत् -
6) भूतभृत् -
सत्वगुण का आश्रय लेकर संपूर्ण भूतों का पालन पोषण करने वाले।
7) भाव: -
7) भाव: -
नित्य स्वरूप होते हुए भी स्वत: उत्पन्न होने वाले।
8) भूतात्मा -
8) भूतात्मा -
संपूर्ण भूतों के आत्मा अर्थात अंतर्यामी।
9) भूतभावन: -
9) भूतभावन: -
भूतों की उत्पत्ति और वृद्धि करने वाले।
10) पुतात्मा - पवित्रात्मा।
10) पुतात्मा - पवित्रात्मा।
11) परमात्मा -
परमश्रेष्ठ नित्य ,शुद्घ , बुद्ध , मुक्तस्वभाव
12) मुक्तानां परमा गति: - मुक्त पुरुषों की सर्वश्रेष्ठ गतिस्वरूप
12) मुक्तानां परमा गति: - मुक्त पुरुषों की सर्वश्रेष्ठ गतिस्वरूप
13) अव्यय: - कभी विनाश को न प्राप्त होने वाले।
14) पुरुष: -
पुर अर्थात शरीर में शयन करने वाले।
15) साक्षी -
15) साक्षी -
बिना किसी व्यवधान के सब कुछ देखने वाले।
16) क्षेत्रज्ञ: -
16) क्षेत्रज्ञ: -
क्षेत्र अर्थात समस्त प्रकृति रूप शरीर को पूर्णतया जानने वाले।
17) अक्षर: - कभी क्षीण न होने वाले।
17) अक्षर: - कभी क्षीण न होने वाले।
18) योग: -
मनसहित संपूर्ण ज्ञानेंद्रीयों के निरोध रूप योग से प्राप्त होने वाले।
19) योगविदां नेता -
19) योगविदां नेता -
योग को जानने वाले भक्तों के योगक्षेमादि का निर्वाह करने में अप्रसर रहने वाले।
20) प्रधानपुरूवेश्वर: -
20) प्रधानपुरूवेश्वर: -
प्रकृति और पुरुष के स्वामी।
21) नारसिंहवपु: -
21) नारसिंहवपु: -
मनुष्य और सिंह दोनों के जैसा शरीर धारण करने वाले , नरसिंग रूप।
22) श्रीमान् -
22) श्रीमान् -
वक्ष स्थल में सदा श्री को धारण करने वाले।
23) केशव: -
ब्रह्म, विष्णु और महादेव - इस प्रकार त्रिमूर्ति स्वरूप।
24) पुरुषोत्तम: -
24) पुरुषोत्तम: -
क्षर और अक्षर इं दोनों में सर्वथा उत्तम।
25) सर्व: -
25) सर्व: -
असत् और सत् - सबकी उत्पत्ति , स्थिति और प्रलय के स्थान।
26) शर्व: -
26) शर्व: -
सारी प्रजा का प्रलयकाल में संहार करने वाले।
27) शिव: -
27) शिव: -
तीनों गुणों से परे कल्यानस्वरूप।
28) स्थाणु: - स्थिर।
28) स्थाणु: - स्थिर।
29) भुतादि: - भूतों के आदि कारण।
30) निधिरव्यय: -
प्रलय काल में सब प्राणियों के लीन होने के अविनाशी स्थानरूप।
31) संभव: -
31) संभव: -
अपनी इच्छा से भली प्रकार प्रकट होने वाले।
32) भावन: -
32) भावन: -
समस्त भोक्ताओं के फलों को उत्पन्न करने वाले।
33) भर्ता - सबका भरण करने वाले।
33) भर्ता - सबका भरण करने वाले।
34) प्रभव: - उत्कृष्ट (दिव्य) जन्म वाले।
35) प्रभु: - सबके स्वामी।
36) ईश्वर: - उपाधि रहित ऐश्वर्य वाले।
37) स्वयंभू: - स्वयं उत्पन्न होने वाले।
38) शंभू: - भक्तों के लिए सुख उत्पन्न करने वाले।
39) आदित्य: -
द्वादश आदित्यो में विष्णु नामक आदित्य
40) पुष्कराक्ष: - कमल के समान नेत्र वाले।
40) पुष्कराक्ष: - कमल के समान नेत्र वाले।
41) महस्वन: - वेदरूप अत्यंत महान रूप वाले।
42) अनादिनिधन: - जन्म मृत्यु से रहित
43) धाता - विश्व को धारण करने वाले।
44) विधाता -
कर्म और उसके फलों की रचना करने वाले।
45) धातुरुत्तम: -
45) धातुरुत्तम: -
कार्यकारण संपूर्ण प्रपञ्च को धारण करने वाले एवं सर्वश्रेष्ठ।
46) अप्रमेय: -
46) अप्रमेय: -
प्रमाण आदि से जानने में न आने वाले।
47) हषिकेश: - इन्द्रियों के स्वामी।
47) हषिकेश: - इन्द्रियों के स्वामी।
48) पद्मनाभ: -
जगत के कारण रूप कमल को अपनी नाभि में स्थान देने वाले।
49) अमरप्रभु: - देवताओं के स्वामी।
49) अमरप्रभु: - देवताओं के स्वामी।
50) विश्वकर्मा - सारे जगत की रचना करने वाले।
51) मनु: - प्रजापति मनु रूप।
52) स्वष्टा -
संहार के समय संपूर्ण प्राणियों को क्षीण करने वाले।
53) स्थविष्ठ: - अत्यंत स्थूल।
53) स्थविष्ठ: - अत्यंत स्थूल।
54) स्थविरो ध्रुव: - अति प्राचीन या अत्यंत स्थिर।
55) अप्राह्म: - में से ग्रहण न किए जाने वाले।
56) शाश्वत: - सब कल में स्थित रहने वाले।
57) कृष्ण: -
सबके चित्त को बलात् अपनी ओर आकर्षित करने वाले श्यामसुंदर सच्चिदानंद भगवान श्री कृष्ण
58) लोहिताक्ष: -लाल नेत्रों वाले
58) लोहिताक्ष: -लाल नेत्रों वाले
59) प्रतर्दन: -
प्रलय काल में प्राणियों का संहार करने वाले
60) प्रभूत: -
60) प्रभूत: -
ज्ञान, ऐश्वर्य आदि गुणों से संपन्न।
61) त्रिककुव्याम -
61) त्रिककुव्याम -
ऊपर ,नीचे और मध्य भेद वाली तीनों दिशाओं के आश्रय रूप।
62) पवित्रम् - सबको पवित्र करने वाले।
62) पवित्रम् - सबको पवित्र करने वाले।
63) मंगल परम् - परम मंगल।
64) ईशान: - सर्वभूतों के नियंता
65) प्राणद: - सबको प्राण देने वाले
66) प्राण: - सबको जीवित रहने वाले।
67) जेष्ठ: - सबसे कारण होने से सबसे बड़े।
68) श्रेष्ठ: - सबमें उत्कृष्ट होने से परम श्रेष्ठ।
69) प्रजापति: -
ईश्वर रूप से सारी प्रजाओं के मालिक।
70) हिरण्यगर्भ: - ब्रह्माण्डरूप हिरण्यमय अंड के भीतर ब्रह्माण्डरूप से व्याप्त होने वाले।
70) हिरण्यगर्भ: - ब्रह्माण्डरूप हिरण्यमय अंड के भीतर ब्रह्माण्डरूप से व्याप्त होने वाले।
71) भूगर्भ: - पृथ्वी को गर्भ में रखने वाले।
72) माधव: - लक्ष्मी के पति।
73) मधुसूदन: - मधु नामक दैत्य को मारने वाले।।
74) ईश्वर: - सर्वशक्तिमान ईश्वर।
75) विक्रमी - शूरवीरता से युक्त।
76) धनवी - शारंग धनुष रखने वाले।
77) मेधावी - अतिशय , बुद्धिमान।
78) विक्रम - गरुण पक्षी द्वारा गमन करने वाले।
79) क्रम: - क्रम विस्तार के कारण।
80) अनुत्तम: - सर्वोत्कृष्ट।
81) दुराधर्ष: -
किसी से भी तिरस्कृत न हो सकने वाले।
82) कृतज्ञ: -
82) कृतज्ञ: -
अपने निमित्त से थोड़ा सा भी त्याग किए जाने पर उसे बहुत मानने वाले यानी पत्र - पुष्प आदि थोड़ी सी वस्तु समर्पण करने वालों को भी मोक्ष दे देने वाले।
83) कृति: - पुरुष प्रयत्न के आधार रूप।
83) कृति: - पुरुष प्रयत्न के आधार रूप।
84) आत्मवान् - अपनी ही महिमा में स्थित।
85) सुरेश: - देवताओं के स्वामी।
86) शरणम् - दिन दुखियों के परम आश्रय।
87) शर्म - परमानन्दस्वरूप।
88) विश्वरेता: - विश्व के कारण।
89) प्रजाभव: -
सारी प्रजा को उत्पन्न करने वाले।
90) अहम: - प्रकाश रूप।
90) अहम: - प्रकाश रूप।
91) संवत्सर: - कालस्वरूप से स्थित।
92) व्याल: -
सर्प के समान ग्रहण करने में n आ सकने वाला।
93) प्रत्यय: -
93) प्रत्यय: -
उत्तम बुद्धि से जानने में आनेवाला।
94) सर्व दर्शन: - सबके द्रष्टा।
94) सर्व दर्शन: - सबके द्रष्टा।
95) अज: - जन्मरहित।
96) सर्वेश्वर: -
समस्त ईश्वरों के भी ईश्वर।
97) सिद्ध: - नित्य सिद्ध।
97) सिद्ध: - नित्य सिद्ध।
98) सिद्धि: - सबके फलस्वरूप।
99) सर्वादी: - सब भूतों के आदि कारण।
100) अच्युत: -
अपनी स्वरूप स्थिति से कभी त्रिकाल में भी च्युत न होने वाले

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