भारत चीन सीमा विवाद भाग - 2

 

9) चीन का, लद्दाख के एक जिले पर कब्जा और भारत का विरोध

जुलाई 1958 में चीन ने भारत के लद्दाख में स्थित खुरनाक जिले पर अधिकार कर लिया ।


सितंबर 1958 में चीनी सैनिकों ने नेफा लोहितमण्डल में घुसपैठ शुरू कर दि। भारत सरकार को जब अक्टूबर 1958 में अक्साई चीन सड़क के निर्माण और नेफा में घुसपैठ का पता चला तब उसने विरोध के रूप में दो पत्र चीन को लिखे।

लेकिन इसके बावजूद चीन की अतिक्रमण प्रतिक्रिया जारी रही और उसने भारत - तिब्बत सीमा पर लैयथल और सांगाचो - माला में बाहरी सैनिक चौकियां स्थापित कर ली।


10) चीन का पत्र द्वारा भारत कब्जे का दावा

23 जनवरी 1959 को चाऊ  एन - लाई एक पत्र में लिखकर पहली बार भारत के हजारों वर्गमील प्रदेश पर अपना दावा प्रस्तुत किया।

चाऊ  एन - लाई ने लिखा " भारत और चीन के बीच कभी भी सीमाओं का निर्धारण नहीं हुआ है और तथाकथित  सीमायें चीन के विरूद्ध कीये गये साम्राज्यवादी षड्यंत्र का परिणाम है।सीमा के प्रश्न को पहले चीन ने इसलिए नहीं उठाया क्योंकि उसके लिए सही समय नहीं था।"

चीन ने उस समय तक तिब्बत का अपने में भलीभांति एकीकरण कर लिया था, चीन के सैनिको को भारत - चीन सीमा के साथ- साथ नियुक्त कर दिया था और अक्साई चीन क्षेत्र में 1100 मील लंबी सड़क का निर्माण कर लिया गया था।


11) तिब्बत की समस्या

 मार्च 1959 में तिब्बत की समस्या एक बार फिर शुरू हुई। 9 मार्च 1959 को ल्हासा में प्रदर्शन के बाद तिब्बत की मंत्रिपरिषद ने तिब्बत को आजाद घोषित कर दिया ।

इन परिस्थितियों में तिब्बत के नेता दलाई लामा ने अपने समर्थकों के साथ तिब्बत को छोड़कर भारत में राजनैतिक शरण ली। इन सबका चीन ने विरोध किया और अतिक्रमण की प्रक्रिया को जारी रखा।


7 अगस्त,1959 को चीन के सैनिकों की एक टुकड़ी ने खिन्जमेन में प्रवेश किया और 25 अगस्त 1959 को चीनी सैनिकों ने नेफा ( NEFA- NORTH EAST FRONTIER AGENCY ), वर्तमान अरुणाचल प्रदेश के सावन - मंडल और लौंगजू की भारतीय सीमा चौकी पर अधिकार कर लिया।


20 अक्टूबर 1959 को चीनी सैनिकों  ने लद्दाख में 40 मील अंदर घुसकर कोंग्का दर्रे ( Kongka Pass ) में 9 भारतीय सिपाहियों को मार डाला। इस घटना के बाद भारत - चीन संबंध में कड़वाहट आ गई।


12) भारत सरकार ने क्या जवाब दिया

पंडित जवाहर लाल नेहरू ने चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ एन - लाई  को सीमा विवाद सुलझाने के लिए भारत आमंत्रित किया।


19 अप्रैल 1960 को दिल्ली में भारत और चीन के प्रधानमंत्रियों ने एक संयुक्त बयान जारी करके कहा

 " कि दोनों देशों के बीच कुछ मतभेद है और विवादग्रस्त सीमाओं के बारे में दोनों सरकारों के अधिकारी ऐतिहासिक  तथा अन्य उपलब्ध सामग्रियों के अध्ययन के आधार पर अपनी सरकारों को प्रतिवेदन प्रस्तुत करे।"

13)  भारत चीन वार्ता में प्रस्तुत प्रमाण

इस निर्णय के अनुसार दोनों देशों के अधिकारियों ने पीकिंग, नई दिल्ली और रंगून में तीन दौर की असफल वार्ता की।

भारत के प्रतिनिधिमंडल ने वार्ता के दौरान 630 प्रमाणपत्रों को प्रस्तुत किया था। जिसमें 516 प्रशासनिक तथ्यों, सुझावों और 49 कानूनी  थे।

चीनी प्रतिनिधिमंडल ने वार्ता के दौरान  245 प्रमाणपत्र पेश किए थे ।

 जिसमें 47 कानूनी और बाकी बचे 198 पारस्परिक और प्रशासनिक तथ्यों पर आधारित थे। किसी भी तरह की बातचीत का कोई असर चीन पर नहीं हुआ।

14) नेहरू सरकार का नीति परिवर्तन

नेहरू सरकार ने नीति परिवर्तन करके यह निश्चय किया कि भारत अपनी सीमा रेखा तक प्रभावी नियंत्रण स्थापित करेगा।

सीमा के साथ - साथ 1961 के अंत तक भारतीय सेना ने 50 चौकियां स्थापित कर ली।

इससे चीन में तीव्र प्रतिक्रिया हुई। 12 जुलाई 1962 को लद्दाख की गलवान घाटी में स्थित भारत की एक पुलिस चौकी पर चीन ने कब्जा कर लिया।


चीन द्वारा भारत के खिलाफ आक्रामक कार्यवाहियां शुरू करते हुए, 8 सितंबर 1962 को अरुणाचल प्रदेश (उस समय नेफा कहलाता था) में मैक्मोहन रेखा को पार कर भारत के कुछ क्षेत्रों को कब्जे में ले लिया गया।

नेहरू ने जनता के बढ़ते हुए दबाव को ध्यान में रखकर 13 अक्टूबर 1962  को कहा

"हमने सेना को हुक्म दिया है कि नेफा (अरुणाचल प्रदेश)से चीनियों को मार भगावे।"

15) पाकिस्तान और चीन के बीच राजनैतिक संबंध

सन् 1959 से पाकिस्तान और चीन के बीच सामरिक राजनैतिक संबंध स्थापित होने लगे थे।



जुल्फिकार अली भुट्टो ने इन संबंधों की पहल की थी और राष्ट्रपति अयूब खान ने इसका समर्थन किया था।



इसके परिणाम स्वरूप पाकिस्तान ने जंबू और कश्मीर का बहुत बड़ा भाग सन् 1962 में चीन को दे दिया था, जिस पर भारत के विरूद्ध 1948 में हुई लड़ाई के समय से ही पाकिस्तान का आधिपत्य था।

भारत - चीन संबंध जैसे - जैसे बिगड़ने लगे वैसे - वैसे चीन - पाकिस्तान संबंध सुधरते गये।

 सन् 1960 में चीन ने भारत के साथ सीमा संबंधी वार्ता में पश्चिमी काराकोरम  को कश्मीर की सीमा मानने से इंकार कर दिया।

दिसंबर 1962 में चीन के जिन - जियाग और पाक - अधिकृत कश्मीर के बीच सीमा तय करने के लिए दोनों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

इसके साथ ही पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन के प्रतिनिधित्व को भी समर्थन किया।

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