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Showing posts from August, 2020

पंचशील समझौता क्या है और कब हुआ ?

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पंचशील समझौता कोरिया युद्ध  के बाद भारत  और चीन  के बीच एक व्यापक व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरु हुई। इसके मुताबिक  भारत  और  चीन  के तिब्बत  क्षेत्र के बीच वाणिज्य और अन्य संबंधों के विषय में  भारत - चीन  संधि पर  29 अप्रैल, 1954  को हस्तक्षेप किए गए। यह समझौता  8 वर्षों  के लिए किया गया। इसके अंतर्गत  भारत  ने  तिब्बत  में अपने विशेष  बहिर्देशीय अधिकार  त्याग दिए और  तिब्बत  पर चीन की संप्रभुता स्वीकार कर ली। तिब्बत  को चीन का " एक प्रदेश मानते " हुए तिब्बत के उ यातुंग  एवं ग्यागट्सी  क्षेत्रों में अपनी सेनाएं तैनात करने का अधिकार छोड़ दिया। सीमा पर व्यापार और तीर्थ यात्राओं के विषय में नियम निर्धारित करना स्वीकार कर लिया। इसी समझौते में पंचशील  के पांच सिद्धांतों का भी उल्लेख किया गया। वाणिज्य समझौतो पर हस्ताक्षर होने के बाद ,  जून 1954  में चीन के प्रधानमंत्री चाऊ - एन - लाई  भारत की यात्रा पर आए। फिर अक्टूबर 1954   में नेह...

नेहरू ने चीन के कारण सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यता गवायी !

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1950  के दशक के मध्य में शीतयुद्ध के कारण जब चीन  और अमेरिका  का वैचारिक विरोध किया था।  अमेरिका  ने भारत  के लिए  सुरक्षा परिषद् में स्थायी सीट  का प्रस्ताव किया था। अमेरिका  नहीं चाहता था कि  सुरक्षा परिषद्  में साम्यवादी वर्चस्व कायम हो। इसलिए चीन  के जगह  भारत  को  सुरक्षा परिषद्  की स्थायी सीट का प्रस्ताव दिया था।  अमेरिका  की सोच थी कि ऐसा करके वह  भारत  को अपने पक्ष में कर सकेगा। भारत तथा चीन के बीच गतिरोध भी बना रहेगा। लेकिन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू  ने चीन की मित्रता और एशियाई एकता की कीमत पर अमेरिका का यह प्रस्ताव मानने से मना कर दिया। जिसके कारण भारत ने सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य होने का मौका गंवा दिया। क्या है सुरक्षा परिषद् ? संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 24 अक्टूबर 1945  में की गई थी। संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्य इसके चार्टर में तय किए गए हैं। इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा  बनाए रखना और राष्ट्रों के बीच मित्रत...

चीन ने क्यों और कब दी भारत को धमकी !

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  भारत को चीन की धमकी भारत पाकिस्तान युद्ध , 1965  के दौरान ही  16 सितंबर  , 1965  को चीन  ने भारत  को एक चेतावनी दी। जिसमें  भारत  से कहा गया कि  "वह भारत - सिक्किम - चीन सीमा पर स्थित 56 सैनिक प्रतिष्ठानों को तुरन्त हटा ले,क्योंकि चीन के अनुसार उनका निर्माण भारत ने अवैध रूप से किया था।" चीन  ने कहा कि अगर  भारत  ने  तीन दिन  में ऐसा नहीं किया तो उसको गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। चीन  के इस चेतावनी से चिंतित  सिवियत संघ  और अमेरिका  ने  चीन  को चेतावनी देते हुए कहा कि वह स्थिति को और गंभीर ना बनाए। भारत का जवाब प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री  ने  चीन  को स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि उनके द्वारा लगाए गए आरोप निराधार है और  भारत  ने सिक्किम - चीन  सीमा की अनदेखी नहीं की है। बाद में 23 सितंबर ,1965  को भारत - पाकिस्तान   के बीच युद्ध विराम हो गया, तो  पीकिंग रेडियो  ने एक नाटकीय घोषणा करते हुए कहा कि  " भारतीय स...

चीन सरकार पर त्रिसुत्रीय प्रस्ताव क्या था ?

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26 अक्टूबर , 1962  को चीन की सरकार द्वारा एक त्रिसुत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया,जो इस प्रकार था - 1) भारत और चीन दोनों देशों के युद्ध विराम - रेखा को वास्तविक नियंत्रण रेखा के रूप में स्वीकार करें और इस रेखा से सेनाओं को अपनी - अपनी ओर  20 किलोमीटर तक हटा ले। 2) यदि भारत न माने तो भी चीन अपनी नियंत्रण रेखा से 20 किलोमीटर उत्तर की ओर हटा लेगा ,बशर्ते दोनों देश सीमा रेखा का सम्मान करें। 3) दोनों प्रधानमंत्री समस्या के निदान के लिए बातचीत शुरू करें। भारत ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार किया भारत  ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कहा कि वह 1962  वाली यथास्थिति स्वीकार करें। यह सुझाव चीन  को स्वीकार्य नहीं था। यह प्रस्ताव  20 अक्टूबर ,1962  को नेफा  और लद्दाख  दोनों क्षेत्रों में भीषण आक्रमण कर महत्वपूर्ण चौकियों पर कब्जा करने के बाद प्रस्तुत किया गया था। इस प्रस्ताव के  भारत  द्वारा अस्वीकार करने के बाद 15 नवंबर, 1962  को  चीन  ने फिर  नेफा  और  लद्दाख  दोनों में क्षेत्रों में बड़े स्तर पर धावा बो...

भारत चीन का कोलंबो प्रस्ताव क्या था जो कभी लागू नहीं किया जा सका ?

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  कोलंबो प्रस्ताव 10 दिसंबर,1962 को , श्रीलंका की प्रधानमंत्री सिरिमाओ भंडारनायके ने कोलंबो में 6 गुटनिरपेक्ष देशों - श्रीलंका, बर्मा, मिस्र, इंडोनेशिया, घाना और कोलंबो, का एक सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में पारित प्रस्तावों को लेकर श्रीमती भंडारनायके ने दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों से बातचीत की। जो इस प्रकार है - 1) कोलंबो सम्मेलन इस बात का अनुभव करता है कि वर्तमान युद्ध विराम का समय भारत - चीन विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के लिए उपयुक्त है। 2) चीन पश्चिमी क्षेत्र में अपनी चौकियां 10 किलोमीटर पीछे हटा ले। जैसे कि चीनी प्रधानमंत्री चाऊ - एन - लाई ने गत 21 और 24 नवंबर ,1962 को प्रधानमंत्री नेहरू को भेजे पत्र में खुद प्रस्तावित किया था। 3) यह सम्मेलन भारत सरकार से अपील करता है कि वह अपनी वर्तमान सैनिक स्थिति बनाए रखें। 4) सीमा विवाद का अंतिम समाधान होने तक चीन द्वारा खाली किया गया क्षेत्र असैनिक क्षेत्र हो , जिसकी निगरानी दोनों पक्षों द्वारा नियुक्त गैर सैनिक चौकियां करें। 5) पूर्वी नेफा क्षेत्र में दोनों सरकारों द्वारा मान्य वास्तविक नियंत्रण रेखा , युद्ध विराम रेखा का काम करे...

भारत - चीन संबंध आजादी के बाद कैसे थे ?

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  हिंदी चीनी भाई भाई का युग 1947 में भारत  की आजादी तथा  1949  में साम्यवादी दल द्वारा  "चीन की मुक्ति "  से एशिया और विश्व में एक नये युग का आरंभ हुआ।  भारत  को  आजादी के साथ ही एशिया से यूरोपीय प्रभुत्व का भी अंत हो गया। दोनों देशों की आजादी के बाद के दौर में दोनों देशों के नेताओं ने एक दूसरे की आकांक्षाओं और नीतियों की ठोस और वास्तविक समझ के बिना ही  हिंदी - चीनी भाई भाई के युग को बढ़ावा दिया। उनकी एकता का आधार दोनों देशों की साम्राज्यवाद - विरोधी सोच थी, लेकिन जैसे ही दोनों बड़े देश अपने शासन की वास्तविकताओं से रूबरू हुए ,उनकी यह एकता और दोस्ती सतही और क्षणिक सिद्ध हुई। चीन में भारतीय राजदूत पणिक्कर कोमिंतांग सरकार  के समय चीन  में भारतीय राजदूत के पद पर सरदार के. एम. पणिक्कर   काम कर रहे थे। के. एम. पणिक्कर    अंत में 1949 में उन्हीं को दुबारा भारतीय राजदूत बनाकर चीन भेजा गया। पणिक्कर के प्रयत्नों से भारत और चीन के बीच अच्छी दोस्ती की शुरुआत हुई।    पणिक्कर  ने बताया कि चीनी क्रांति  एशि...

आजादी से पहले कैसे थे भारत और चीन के संबंध ?

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  1) आजादी से पहले भारत और चीन संबंध  भारत और चीन  के बीच प्रत्यक्ष संबंध 1927  में हुआ, पददलित राष्ट्रों के ब्रुसेल्स सम्मेलन  में हुआ। इस सम्मेलन में भारतीय और चीन प्रतिनिधियों की संयुक्त बयान निकला गया था जिसमें कहा गया था कि " पश्चिमी साम्राज्यवाद से एशिया की मुक्ति के लिए भारत और चीन का सहयोग बहुत जरूरी है।" इसी बयान में  चीन  ने ब्रिटिश  शासकों द्वारा भारतीय सेनाओं के प्रयोग की निन्दा भी की। चीन  के प्रति भारत को अपार सहानुभूति थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने कई प्रस्तावों को स्वीकार करके चीन के प्रति ब्रिटिश नीति की आलोचना की। 2) चीन दिवस और भारत  1931  में जब  जापान  द्वारा मचुरिया  पर आक्रमण किया गया तो  चीन  के प्रति सहानुभूति दिखाने के लिए "चीन दिवस"  मनाया गया और  भारत  में जापानी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन  भी चलाया गया। जब 1937  में  चीन - जापान  युद्ध शुरू हुआ तो  भारत  ने फिर से  चीन  के प्रति अपनी सहानुभूति दिखाई। 3) नेहरू ...

भारत चीन सीमा विवाद भाग - 2

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  9) चीन का, लद्दाख के एक जिले पर कब्जा और भारत का विरोध जुलाई 1958  में  चीन  ने भारत के लद्दाख  में स्थित  खुरनाक  जिले पर अधिकार कर लिया । सितंबर 1958  में चीनी सैनिकों ने नेफा  लोहितमण्डल में घुसपैठ शुरू कर दि।  भारत सरकार  को जब अक्टूबर 1958  में अक्साई चीन  सड़क के निर्माण और  नेफा  में घुसपैठ का पता चला तब उसने विरोध के रूप में दो पत्र चीन को लिखे। लेकिन इसके बावजूद चीन की अतिक्रमण प्रतिक्रिया जारी रही और उसने  भारत - तिब्बत  सीमा पर  लैयथल  और सांगाचो - माला  में बाहरी सैनिक चौकियां स्थापित कर ली। 10) चीन का पत्र द्वारा भारत कब्जे का दावा 23 जनवरी 1959  को चाऊ  एन - लाई एक पत्र में लिखकर पहली बार भारत के हजारों वर्गमील प्रदेश  पर अपना दावा प्रस्तुत किया। चाऊ  एन - लाई  ने लिखा " भारत और चीन के बीच कभी भी सीमाओं का निर्धारण नहीं हुआ है और तथाकथित  सीमायें चीन के विरूद्ध कीये गये साम्राज्यवादी षड्यंत्र का परिणाम है।सीमा के प्रश्न को पहले चीन ...

भारत चीन सीमा विवाद भाग - 1

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1) भारत - चीन सीमा कहां तक है ? भारत - चीन  के बीच लगभग  दो हजार मील  लंबी सीमा है। इस सीमा रेखा को समझौतों तथा प्रशासकीय व्यवस्थाओं से नियमित किया गया है। इसके अलावा  भारत - चीन " प्राकृतिक सीमा रेखा " भी इतनी स्पष्ट है कि दोनों देशों की वास्तविक सीमाओं के विषय में किसी को कोई भी शक हो ही नहीं सकता है। समस्त  भारत - चीन  सीमा को सामान्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है - भूटान के पूर्व की सीमा ,उत्तर प्रदेश, हिमाचल और पंजाब से लगती मध्य सीमा और चीन के तिब्बत एवं सिक्यांग प्रदेशों से जम्बू - कश्मीर को अलग करने वाली पश्चिमी सीमा। 2) भारत चीन सीमा विवाद भारत - चीन  सीमा - विवाद मुख्य रूप से उत्तर - पूर्व   में  मैकमोहन रेखा  और उत्तर- पश्चिम में लद्दाख से संबंधित है। मैकमोहन रेखा  (MC Mohan Line)  उत्तर - पूर्व  में भारत चीन सीमा विभाजन करती है। यह  भूटान  के पूर्व में दोनों देशों की सीमा रेखा है। भारत  ने सदैव ही इस रेखा को वैध रूप से निर्धारित सीमा माना है, लेकिन चीन ने हमेशा उसकी साम्राज्यवादी...

कैलाश मानसरोवर से जुड़ी कुछ खास बातें ! भाग - 2

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16) जैन धर्म में कैलाश पर्वत को अष्टपद कहते है और ऐसा माना जाता है कि जैन धर्म के गुरु ऋषभ देव जी को यहीं पर ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। 17) कैलाश पर्वत का चक्कर लगाने को बौद्ध और जैन धर्म में खोरा और हिन्दू धर्म में परिक्रमा कहते है। 18) ऐसा माना जाता है कि 12 बार परिक्रमा करने से इस जन्म के सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है और 108 बार परिक्रमा कर लेने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। 19) पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय हासिल की थी। युधिष्ठिर के राजसूयी यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी। 20) कैलाश मानसरोवर झील की ऊंचाई समुद्री तट से 14,850 फुट पर है, इसकी बाहरी परिधि 85 किलोमीटर है।  इसकी अधिकतम गहराई लगभग 300 फीट है और ये करीब 200 वर्ग मील क्षेत्र को घेरती है। 21) यहां एक राक्षस ताल है जो करीब 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। रावण ने यहां पर शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे राक्षस ताल या रावण ताल ...

कैलाश पर्वत पर चढ़ना क्यों मुमकिन नहीं है ?

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कैलाश पर्वत की ऊंचाई 6638 मीटर है कैलाश पर्वत का स्लोप (कोण) 65 डिग्री से भी ज्यादा होने के कारण इस पर चढ़ाई करना मुश्किल है। जबकि माउंट एवरेस्ट का स्लोप 40 - 60 तक है। यह भी एक कारण है जिसकी वजह से पर्वतारोही कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाते हैं। कैलाश पर्वत पर रिसर्च करने वाले एक अंग्रेज अफसर ह्यू रतलिज और कर्नल विल्सन ने कैलाश पर्वत पर पर्वतारोहण को बिल्कुल असंभव बताया।                        ह्यू रतलिज ह्यू रतलिज के ने 1926 में अपनी डायरी में लिखा था। कर्नल आर. सी. विल्सन पर्वतारोही जैसे ही मुझे लगा कि मैं एक सीधे रास्ते से कैलाश पर्वत पर चढ़ सकता हूं, भयानक बर्फबारी ने रास्ता रोक दिया और चढ़ाई को असंभव बना दिया।                 कर्नल विल्सन कुछ पर्वतारोही जिन्होंने कैलाश पर्वत पर चढ़ने का प्रयास किया है उनका कहना कुछ इस प्रकार है - सरगे सिस्टियाकोव, रूसी पर्वतारोही (2007) जब मैं पर्वत के बिल्कुल पास पहुंच गया , मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा। मैं उस पर्वत के बिल्कुल सामने था। जिस...

कैलाश मानसरोवर से जुड़ी कुछ खास बातें ! भाग - 1

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  1) कैलाश पर्वत एक काले पत्थर की चट्टान है। इसकी ऊंचाई 22 हजार फुट या 6638 मीटर  है। 2) कैलाश पर्वत की ऊंचाई माउंट एवरेस्ट से कम है फिर भी आज तक कोई भी इस पर नहीं चढ़ सका है। ऐसा कहा जाता है कि एक बौद्ध गुरु मिलारेपा एक ऐसे अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने कैलाश पर्वत पर चढ़ने में कामयाबी हासिल की थी। 3) कैलाश पर्वत जैन ,बौद्ध और हिन्दू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है। 4) ध्‍यान से सुनने पर यहां डमरू और ऊं की ध्‍वनि सुनाई देती है। इस ध्‍वनि का स्रोत आज तक कोई नहीं जान पाया है। 5) रसिया के वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार कैलाश पर्वत मानव द्वारा निर्मित पर्वत है जो कई आस - पास बने पिरामिडों का मुख्य केंद्र है। इनकी संख्या 100 के करीब मानी गई है। 6) कैलाश पर्वत के सामने वाले चार भाग सोना ,रूबी , नीले रंग के पत्थरों और स्फटिक से बने है। 7) यहां दिशा सूचक (कंपास) काम नहीं करता है। ऐसा माना जाता है कि यहां चारो दिशायें मिलती है। 8) यहां से चार नदियों का उदगम होता है। सतलज, सिंधु , घाघरा और ब्रह्मपुत्र नदी है। ये नदियां कैलाश पर्वत के चार अलग - अलग भागों से आती है। 9) ऐसी मान्यता है कि सब...

वराह मिहिर एक महान भारतीय विद्वान कौन थे ?

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वराह मिहिर (जन्म, माता - पिता) वराह मिहिर  का जन्म  499 ईसवी  उज्जैन के समीप कपिथा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम   आदित्यदास  था। उनका नाम मिहिर  रखा गया था, जिसका अर्थ   सूर्य  होता है, क्योंकि उनके पिता सूर्य के उपासक थे। इनके भाई का नाम भद्रबाहु था।  पिता ने  मिहिर  को   भविष्य शास्त्र  पढ़ाया था।  वराह मिहिर  की भविष्यवाणी   मिहिर  ने " राजा विक्रमादित्य द्वितीय " के पुत्र की मृत्यु 18 वर्ष की आयु में होगी, इसकी सटीक भविष्यवाणी कर दी थी।  इस भविष्यवाणी के कारण  मिहिर  को राजा " राजा विक्रमादित्य द्वितीय " ने बुलाकर उनकी परीक्षा ली और फिर उनको अपने दरबार के रत्नों में स्थान दिया। इस तरह  "  विक्रमादित्य द्वितीय "  के नौ रत्न हो गए थे। मिहिर से वराह कैसे जुड़ा ? मिहिर  ने " खगोल और ज्योतिष शास्त्र " के कई सिद्धांतों को गढ़ा और देश में इस विज्ञान को आगे बढ़ाया। इस योगदान के चलते राजा  "  विक्रमादित...