प्राचीन काल में सिक्कों का नाम क्या - क्या था ? भाग - 1
1) वैदिक साहित्य में निष्क शब्द से सोने का सिक्का प्रसिद्ध था।
2) ब्राह्मण ग्रंथों में शतमान शब्द का भी प्रयोग सिक्कों के लिए मिलता है। उस सिक्के की तौल सौ ( शत ) रत्ती के बराबर माना जाता था। समय के साथ उसके चौथाई भाग को पाद के नाम से पुकारने लगे।
3) प्राचीन समय में तांबे के सिक्के को " कर्षायण" कहते थे, क्योंकि उसकी तौल कर्ष (बीज का नाम) के द्वारा निकाला जाता था।
4) अष्टाध्यायी में शतमान तथा रुप्य आदि शब्द सिक्कों के लिए प्रयोग किए जाते रहे है।
5) कौटिल्य अर्थशास्त्र में चाणक्य ने कई तरह के नामों का उल्लेख सिक्कों के लिए किया है। चांदी के सिक्कों के लिए पुण्ण या धरण शब्द बार - बार इस्तेमाल किए गए है।
कौटिल्य ने मासक नाम के सिक्कों का उल्लेख किया गया है। मासक शब्द से तौल का भी अनुमान किया जाता है की यह मुद्रा एक मासा तौल में था। अर्द्ध मासक भी तैयारी किया जाता था।
7) आठवां भाग वाले सिक्कों को " काकिनी" कहते थे। इस तौल के सिक्के कम संख्या के तैयार किए जाते थे लेकिन उनके बराबर " काकिनी" तथा अर्द्धकाकिनी का प्रचार था।
कौड़ी के चलन के कारण ऐसे छोटे तौल के सिक्के कम संख्या में तैयार किए जाते थे।
8) तांबे के सिक्के को कर्षापण कहे जाते थे वही पाली भाषा में जातक और पिटक ग्रन्थों में कहापन के नाम से विख्यात हुए।
9) भारत में यूनानी शासकों के सिक्के " अर्द्ध द्रम " कहे जाते थे।
10) नासिक के लेख (पहली सदी) में नहपान के जमाता उपवदत्त ने चांदी के सिक्कों के लिए कर्षापण तथा सोने के सिक्कों के लिए सुवर्ण का उल्लेख मिलता है।
11) रोम राज्य के सोने के सिक्कों को दिनेरियस (Denarius) कहे जाते थे उन्ही के नाम परगुप्त सम्राटों ने दिनार रखा।
12) गांगेयदेव और चंदेल राजाओं ने कुछ सोने के सिक्के तैयार किए थे ,जिनका तौल यूनानी द्रम (62 ग्रेन) के बराबर था। इसलिए वे सुवर्ण द्रम के नाम से विख्यात थे।
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