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बंगाल के राजा शशांक के सिक्के और कुछ अन्य सिक्कें !

1) उत्तरी बंगाल गौड़ में उस समय शशांक नामक राजा राज करता था। मालवा के एक गुप्त सरदार के कहने पर इसने "मौखरि राज्य" पर आक्रमण कर राज्यवर्धन को मार डाला। 2) शशांक एक प्रतापी राजा था जिसके सिक्के गौड़ से मिले है जिनपर उसने अपने धार्मिक चिन्ह को प्रधान स्थान दिया है। वह शैवमत को मानने वाला था और बौद्धों का घोर शत्रु था। उसने गुप्तों के सुवर्ण सिक्कों के ढंग पर सोने का सिक्का चलाया था। 3) इन सिक्कों के आगे के भाग पर शिव जी की बैठी मूर्ति , नंदी के शरीर पर झुका हुआ दाहिना हाथ उठाए अंकित है। चंद्रमा की आकृति। गुप्त लिपि में दाहिनी ओर श्री श नीचे जय लिखा है। राज लक्ष्मी कमलासन पर बैठी है, हाथ में कमल दोनों तरफ से हाथी पानी फेंक रहे है। सातवीं सदी के मध्य भाग तक गौड़ में शशांक का राज्य था।  शक राजा के चांदी के सिक्के और कुछ अन्य सिक्के 1) विनोन और स्पलहोर दोनों के सिक्के दो प्रकार के है - पहले प्रकार के सिक्के चांदी के बने हुए और गोलाकार है। इन पर एक ओर घोड़े पर सवार राजा की मूर्ति और दूसरी ओर हाथ में वज्र लिए ज्यूपिटर की मूर्ति मिलती है। दूसरे प्रकार के सिक्के तांबे के बने हुए और चौ...

हुण वंश के सिक्के ! भाग -3

1) तोरमाण के पुत्र मिहिर ने भी इन्हीं शैली के सिक्के प्रचलित किए, लेकिन उसके सिक्के तांबे के है।  शसैनियन ढंग के सिक्के सबसे छोटे है और उन पर आगे के भाग पर वैसी ही पगड़ी और सिर है। पीछे के भाग पर अग्नि कुण्ड (यज्ञ देवी) तथा रक्षक दिखाई पड़ता है। 2) इनके दूसरे सिक्के भी मिले है जो शसैनियन ढंग के बने है लेकिन आगे के भाग पर " श्री मिहिर: " लिखा है और पीछे के भाग पर अग्नि कुण्ड के बदले में नंदी की मूर्ति है।  उसके ऊपरी भाग में और नीचे "जयतु वृष " लिखा है। 3) पेशावर के प्रांत में मिहिर के जो सिक्के मिले है वह सब कुषाणों के अनुकरण पर तैयार किया गया थे।  जिसके आगे के भाग पर राजा की खड़ी मूर्ति और "शाही मिहिर कुल " लिखा है और पीछे के भाग पर सिंहासन पर लक्ष्मी की मूर्ति है। 4) मिहिर के तीसरे प्रकार के सिक्के सब से बड़े आकार के है। ये भी उत्तरी पश्चिमी प्रांत में मिलते है। जिसके आगे के भाग पर घोड़े पर सवार राजा की मूर्ति और पिछले भाग में मिहिर कुल का नाम अंकित है। पृष्ठ भाग पर लक्ष्मी जी की मूर्ति है। 

हुण वंश के सिक्के ! भाग -2

" तोरमाण " के कुछ ऐसे भी सिक्के मिले है जिन पर "शाही जुबुल " लिखा है। ये सिक्के एफथलाइट चिन्ह के कारण ही हुण सिक्के कहे जाते है। लेकिन भारत में आने के कारण उन्होंने पहलवी भाषा के बदले में ब्राह्मी लिपि और संस्कृत भाषा का प्रयोग किया।  मध्य भारत में उन्होंने चांदी और तांबे के सिक्के गुप्त शैली का अनुकरण कर तैयार किया गया था।  "तोरमाण " के चांदी के इस ढंग के सिक्के मिलते है जिन पर आगे के ओर राजा का सिर, तिथि और गुप्त लिपि में " वजिता वनिरवनिपति: श्री तोरमाण लिखा है और पीछे के भाग पर पंखयुक्त मोर की आकृति है। यह सिक्का मध्य भारत शैली के गुप्त सिक्को का अनुकरण है। इसी सिक्के पर हुण सरदार के "तोरमाण " का नाम लिखा मिलता है। 

हुण वंश के सिक्के ! भाग -1

हुण एक विदेशी जाति थी जिसने स्कंदगुप्त के समय में गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण किया था। यह जाति मध्य एशिया से अफगानिस्तान तथा पंजाब को जीतकर गुप्त सीमा पर आ गए।  सन् 480 ई॰ के बाद (स्कंदगुप्त की मृत्यु के पश्चात्) इनका राज्य मध्य भारत , मालवा, पंजाब में विस्तृत हो गया। स्वतंत्र शासक होने के नाते हुण सरदारों - तोरमाण और मिहिरकुल ने सिक्के तैयार कराए। हुण सरदार ने काबुल प्रांत को जीतकर शसैनियन शैली को अपनाया।  उन सिक्कों पर आगे के भाग पर शसैनियन ढंग के भद्दे सिक्के अर्द्ध शरीर और ब्राह्मी के कुछ अक्षर है और पीछे के भाग पर सिक्के के बीच में एक लकीर ब्राह्मी लिपि में "तोर" लिखा मिलता है।

द्वितीय कुमारगुप्त के सिक्के !

नरसिंह के बाद इनका पुत्र द्वितीय कुमार गुप्त राज्य का स्वामी हुआ। इन्होंने एक ही प्रकार (धनुर्धरांकित) का सिक्का चलाया। जिसके आगे के भाग पर राजा की मूर्ति और पीछे के भाग पर पद्मासन पर बैठी लक्ष्मी जी की मूर्ति है। इन सिक्कों पर दो प्रकार के लेख भी मिलते है। उसके एक विभाग में बाएं हाथ के नीचे कु तथा लेख महाराजाधिराज श्री कुमार गुप्त क्रमादित्य: और दूसरे विभाग में लक्ष्मी की मूर्ति के साथ "श्री क्रमादित्य: " लिखा है।

नरसिंह गुप्त के सिक्के !

 पुरगुप्त के बेटे नरसिंह गुप्त के केवल सोने के सिक्के तैयार किए जो कला की दृष्टि से बड़े और तौल में 146 - 148 ग्रेन है। इन सिक्कों में मिश्रण होने से शुद्ध सोने का अभाव है। इन सिक्कों के आगे के भाग पर धनुषधारी राजा की मूर्ति हाथ के नीचे न और र मिलता है। सिक्के पर जयति नरसिंह गुप्त: लिखा है। सिक्के के पृष्ठ भाग पर बैठी देवी की मूर्ति है और वालादित्य लिखा है।

पुरगुप्त के सिक्के !

स्कंदगुप्त के बाद स्कन्द गुप्त के सौतेले भाई पुरगुप्त ने थोड़े समय तक राज्य किया। पुरगुप्त और इनके वंशजों ने भारी तौल (सुवर्ण) के सिक्के तैयार कराए।   " धनुर्धरांकित वाला सिक्का " लोक प्रिय था। इन लोगों ने भी ऐसा ही सिक्का प्रचलित किया। इसके आगे के भाग पर पुर और पीछे के भाग पर श्री विक्रम: लिखा है। ब्रिटिश संग्रहालय में प्रकाशदित्य नाम के सिक्के मौजूद है। ये भी सिक्के पुरगुप्त के माने जाते है। इसकी तौल 146 ग्रेन है। इस पर आगे के भाग पर अशवरूढ राजा की मूर्ति , तलवार से सिंह को मार रही है। गरुणध्वज बना है। पीछे के भाग पर बैठी देवी की मूर्ति है और प्रकाशदित्य लिखा है।

स्कंदगुप्त के चांदी के सिक्के !

स्कंदगुप्त के चांदी के सिक्कों पर आगे के भाग पर राजा के आधे शरीर का चित्र और पीछे की ओर गरुण या नंदी या वेदि की आकृति। परम भागवत महराजाधीराज श्री स्कंदगुप्त क्रमादित्य: लिखा है।  इन सिक्कों के आगे के भाग पर राजा का चित्र और ब्रह्मी अक्षर में तिथि लिखी है।  पीछे के भाग पर पंख फैलाए मोर की आकृति, गुप्तलिपी में " वनिता वनिवनिपति जयति दिवं स्कन्द गुप्तो याम " लिखा है।

स्कंदगुप्त के सिक्के ! भाग - 2

2) राज लक्ष्मी वाला सिक्का -  इस सिक्के के आगे के भाग पर बाएं तरफ वस्त्राभूषण से सुसज्जित धनुष बाण धारी राजा की मूर्ति दाहिनी ओर कोई देवी हाथ में वस्तु लिए खड़ी है। दोनों के बीच में गरुणध्वज है। सिक्के के पीछे के भाग पर कमल लिए बैठी देवी की मूर्ति है और श्री स्कन्दगुप्त: लिखा है।

स्कंदगुप्त के सिक्के ! भाग - 1

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कुमार गुप्त के बाद उसका पुत्र स्कन्दगुप्त सिंहासन पर बैठा।  स्कंदगुप्त  दो प्रकार के सिक्के तैयार कराये। पहले सिक्कों का तौल 132 ग्रेन और दूसरे भारतीय सुवर्ण तौल 144 ग्रेन था।  1) धनुर्धरांकित वाला सिक्का -  इस सिक्के के आगे के भाग पर धनुष बाण लिए खड़ी राजा की मूर्ति , बाएं हाथ के नीचे स्कन्द गुप्त का नाम और जयति महितलां सुधन्वी तथा गरुड़ध्वज मिलता है।  पीछे के भाग पर पद्मासन पर बैठी तथा कमल लिए लक्ष्मी जी की मूर्ति है और " श्री स्कन्दगुप्त: " लिखा है। सुवर्ण सिक्का -  इसी प्रकार का सुवर्ण तौल 146 ग्रेन जिसके आगे के भाग पर जयति दिवं श्री क्रमादित्य: लिखा है। पीछे के भाग पर राजा की उपाधि क्रमादित्य: लिखा है।

कुमार गुप्त के चांदी के सिक्के ! भाग -2

 2) मध्य देशीय सिक्के - मध्य देशीय सिक्के पर आगे के भाग पर राजा का अर्ध शरीर ब्राह्मी अंक में तिथि और पीछे के भाग पर गरुण के बदले पंख फैलाए मोर चारों ओर वीजिता वनित वनिपति: कुमार गुप्तो दिव जयति लिखा है।

कुमार गुप्त के चांदी के सिक्के ! भाग -1

चंद्रगुप्त द्वितीय ने चांदी का सिक्का चलाया लेकिन कुमार गुप्त ने विभिन्न ढंग के अगणित संख्या में सिक्के तैयार कराये थे ,गुजरात और काठियावाड़ में अपने पिता की तरह ,लेकिन मध्य प्रदेश में नए ढंग के चांदी के सिक्के प्रचलित किये। ये दोनों पश्चिमी और मध्य देशीय के नाम से पुकारे जाते है। कुछ सिक्के विशुद्ध चांदी के नहीं है। तांबे पर चांदी का पानी डाला गया है। राजकोष में चांदी के कमी के कारण ऐसा सिक्का तैयार किया गया था।  1) पश्चिमी ढंग का सिक्का -   इसके आगे के भाग पर राजा का अर्ध शरीर और ब्राह्मी अंक में तिथि लिखी है। पीछे के भाग पर गरुण की मूर्ति है और गुप्त लिपि में " परम भागवत महाराजाधिराज श्री कुमार गुप्त: महेंद्रा दिन्य: " लिखा है।

कुमारगुप्त प्रथम के नवे प्रकार का सिक्का ! भाग - 7

 7) कुमादित्य वाला सिक्का - इस प्रकार का सिक्का अद्वितीय माना जाता है। इस पर किसी राजा का व्यक्तिगत नाम नहीं मिलता है। इसलिए यह कुमार गुप्त का चलाया सिक्का है यह कहना गलत होगा। स्कन्दगुप्त मिलती के सिक्कों पर विक्रमादित्य की पदवी मिलतीहै। संभव है सकता है कि यह सिक्का स्कंदगुप्त ने चलाया हो। इसका एक ही सिक्का मिला है। जिसके आगे के भाग पर छत्र धारी सेवक (बौना ) के साथ राजा की आकृति मिलती है तथा पीछे के भाग पर खड़ी सनाल कमल लिए लक्ष्मी की मूर्ति और लेख विक्रमादित्य: पाया जाता है।

कुमारगुप्त प्रथम के नवे प्रकार का सिक्का ! भाग - 6

6) राजा रानी वाला सिक्का -  इस ढंग का सिक्का सबसे पहले चंद्रगुप्त प्रथम ने चलाया था। उसे कुमार देवी वाला सिक्का कहते है। कुमार गुप्त का एक ही सिक्का मिला है जिसपर राजा रानी अंकित है। अंतर यह है कि इस सिक्के के आगे के भाग पर राजा रानी का नाम नहीं है। रानी राजा को कुछ भेंट करती दिखाई पड़ती है। सिक्के के पीछे के भाग में लक्ष्मी जी की मूर्ति है। उस ओर श्री कुमार गुप्त: लिखा है।

कुमारगुप्त प्रथम के नवे प्रकार का सिक्का ! भाग - 5

 5) विणांकित सिक्का - गुप्त कालीन सिक्कों में गत कई वर्ष से विणांकित सिक्का केवल समुद्रगुप्त के समय का मिलता है। लेकिन नए ढंग में कुमार गुप्त प्रथम का भी वीणा वाला सिक्का मिला है जो राजा के संगीत प्रेम को दर्शाता है। इसकी बनावट समुद्रगुप्त के सिक्के से मिलती जुलती है। इस सिक्के के आगे के भाग पर राजा सिंहासन (पर्येक) पर बैठा है और दाहिने हाथ से वीणा बजा रहा है। बैठने का ढंग और वेष भूषा समुद्र गुप्त वाले सिक्के से मिलती जुलती है। पीछे के भाग पर सनाल कमल लिए पर्येक पर बैठी लक्ष्मी की मूर्ति है। इस सिक्के पर श्री कुमार गुप्त: लिखा मिलता है। यह आकृति समुद्र गुप्त वाले सिक्के से अलग है।

कुमारगुप्त प्रथम के नवे प्रकार का सिक्का ! भाग - 4

 4) छत्र वाला सिक्का - सबसे पहले चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने छत्र वाला सिक्का तैयार कराया था। लेकिन कुमार गुप्त प्रथम का कोई भी ऐसा सिक्का भरतपुर के वयाना के ढ़ेर से पहले नहीं मिला था। यह सिक्का चंद्रगुप्त द्वितीय के सिक्के से मिलता जुलता है। इस सिक्के के आगे के भाग पर तलवार पर हाथ रखे राजा खड़ा है। दाहिने हाथ से अग्नि में आहुति छोड़ रहा है । पीछे बौना छत्र लिए खड़ा है। पीछे के भाग पर दाएं हाथ में नाल लिए खड़ी देवी की आकृति पायी जाती है।

कुमारगुप्त प्रथम के नवे प्रकार का सिक्का ! भाग - 3

 3) गैंडा वाला सिक्का - इस ढंग का कुमार गुप्त का सिक्का मिला है। इसकी संख्या अधिक नहीं है लेकिन कला की दृष्टि से यह बहुत ही सुन्दर है।  इसके आगे के भाग पर घोड़े पर सवार राजा बरछें से गैंडा को मार रहा है। जो घोड़े के पैरों के तले पड़ा है। गैंडा की मूर्ति सिर मोड़ कर मुंह खोले खड़ी है। गैंडा के सींग , कान, आंख बहुत सजीव दिखायी पड़ते है। सिक्के के आगे कुमार गुप्त: लिखा मिलता है। पीछे के भाग पर मगर पर गंगा खड़ी है और उनके पीछे छत्र लिए एक बालक खड़ा है।  इस सिक्के पर लिखा लेख स्पष्ट नहीं है।

कुमारगुप्त प्रथम के नवे प्रकार का सिक्का ! भाग - 2

  2) गजारोही सिंह मारने वाला - इन सिक्कों की बनावट , कला और दृश्य में गजारोही सिक्के से समता पायी जाती है लेकिन अंतर यह है कि आगे के भाग में हाथी के पैर तले सिंह पड़ा हुआ  है। बाकी बातें वैसी ही है। इस सिक्के के आगे की ओर राजा हाथी पर बैठा है। उसके पीछे छत्र ताने महावत है। नीचे सिंह की आकृति है जिसको हाथी पैर से दबा रहा है और वह सिर घुमाकर हाथी के पैर काटने के लिए तत्पर है। सिक्के भी के पीछे के भाग में कमल पर लक्ष्मी खड़ी है। उसके दाएं ओर पद्म और बाएं ओर शंख रखा है।

कुमारगुप्त प्रथम के नवे प्रकार का सिक्का ! भाग - 1

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इन सिक्कों के अलावा भरतपुर से कुमार गुप्त प्रथम के कई नए प्रकार के सिक्के मिले है जिनका वर्णन इस प्रकार है। 1) गजारोही सिक्का - यह सिक्का अलभ्य समझा जाता है। इन सिक्कों के एक ओर अलंकार से विभूपित हाथी पर सवार राजा की मूर्ति और पीछे छत्र लिए नौकर की मूर्ति बनी है गोलाई में कुमार गुप्त: लिखा है।  सिक्के के दूसरी ओर लक्ष्मी देवी की  मूर्ति है।

कुमारगुप्त प्रथम के आठवें प्रकार का सोने का सिक्का!

 8) प्रताप नाम वाला सिक्का -  इस सिक्के के आगे के भाग पर बीच में एक पुरूष की मूर्ति दोनों ओर दो स्त्रियां खड़ी है। स्त्री पुरुष के बीच (दोनों तरफ मिलाकर) कुमार गुप्त लिखा है। पीछे के भाग पर बैठी देवी की मूर्ति है और श्री प्रताप लिखा है।

कुमारगुप्त प्रथम के सातवें प्रकार का सोने का सिक्का!

7) सातवें प्रकार का मोर वाला सिक्का - यह सिक्का बहुत सुंदर है। राजा और कार्तिकेय का नाम कुमार होने के कारण दोनों ओर राज मूर्ति अंकित है। सिक्के के अग्र भाग पर वस्त्राभूषण के साथ राजा खड़े होकर मोर को फल खिला रहा है। लेख जयति स्वभूमौ गुणराशि महेंद्र कुमार:। पिछे के भाग पर मोर पर बैठे हुए कार्तिकेय की मूर्ति है और इस पर महेंद्र कुमार: लिखा है।

कुमारगुप्त प्रथम के छठे प्रकार का सोने का सिक्का!

  6) व्याघ्र मारने वाला सिक्का - इस सिक्के के आगे के भाग पर भारतीय वेष में धनुष बाण द्वारा व्याघ्र को मारते राजा की मूर्ति ,लेख श्रीमान व्याघ्र बल पराक्रम: कुमार गुप्त प्रथम का यह सिक्का अभी तक अलभ्य समझा जाता था। लेकिन वर्तमान बयाना की देर से ऐसे व्याघ्र मारने वाले अनेक सिक्के मिले है जिन पर राजा के नाम का पहला अक्षर कु लिखा मिलता है। पिछे के भाग पर खड़ी देवी की मूर्ति बाएं हाथ में कमल दाहिने से मोर को फल खिला रही है लेख कुमार कुप्तोधिराजा।

कुमारगुप्त प्रथम के पांचवे प्रकार का सोने का सिक्का!

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5) सिंह मारने वाला - सिक्के के आगे के भाग पर भारतीय वेष में खड़ी राजा की मूर्ति, सिंह को धनुष बाण से मार रहा है। अनेक प्रकार के लेख १) साक्षादिव नरसिंहो सिंह महेंदो जयंय निशाम  २) क्षितिपति रजित महेन्द्र: कुमार गुप्तो दिवं जयति ३) कुमार गुप्तो विजयी सिंह महेन्द्रो दिवं जयति  ४) कुमार गुप्तो युधि सिंह विक्रम: ५) बयाना के ढेर में कुछ ऐसे सिक्के मिले है जिन पर कुमार गुप्त भूवि सिंह विक्रम: खुदा है।  अन्य सिक्कों पर उपयुक्त लेख पाए जाते है। पीछे के भाग पर सिंह पर बैठी अंबिका देवी की मूर्ति लेख श्री महेंद्र सिंह या सिंह महेंद्र:।

कुमारगुप्त प्रथम के चौथे प्रकार का सोने का सिक्का!

  4) अश्वरूढ़ वाला सिक्का - चौथे प्रकार के सिक्के पर एक ओर घोड़े पर सवार राजा की मूर्ति, धनुष बाण लेख विभिन्न प्रकार के है। १) पृथिवी तलां - दिवं जयत्य जित:  २) क्षिति पति रजितो विजयी महेन्द्र सिंहो दिवं जयति ३) क्षिति पति - कुमार गुप्तो दिवं जयति ४) गुप्त कुल- व्योम शशि जयत्य जेयो जित महेन्द्र: ५) गुप्त कुलामल चंद्रो महेंद्र क्रमाजितो जयति  इस तरह के सिक्के ढाई सौ के लगभग पाए जाते है। उनमें गुप्त कुल व्योम शशि का लेख अधिक पाया जाता है। यह बहुत प्रसिद्ध लेख लगता है। फिर उसके बाद क्षिति पति रजितो का इस्तेमाल किया गया है। तीसरे गुप्त कुलामल चन्द्र और अंत में पृथ्वीतलम का इस्तेमाल मिलता है। बयाना के सिक्कों में विशेषता यह है कि पिछे के भाग पर लक्ष्मी जी मोर को खिलाती हुई दिखलाई गई है। कुछ सिक्के ऐसे भी मिले है जिसके पिछे के भाग पर लक्ष्मी सींक की बनी हुई तिपाई (मचिया) पर बैठी है। अप्रभाग में समानता है।

कुमारगुप्त प्रथम के तीसरे प्रकार का सोने का सिक्का!

 3) अश्वमेध सिक्का - इसे कुमार ने अश्वमेध यज्ञ के स्मारक में तैयार कराया। समुद्रगुप्त के अश्वमेध सिक्के से इसमें भिन्नता मिलती है। कुमार के अश्वमेध सिक्के पर घोड़े का चित्र कई तरह से विभूषित है। इसकी बनावट श्रेष्ठ है। यह सिक्का 124 ग्रेन तौल में है। इस सिक्के के एक ओर यूप के समीप दाहिनी ओर सुसज्जित घोड़ा (लेख साफ नहीं)। सिक्के के दूसरी ओर वस्त्राभूषणों से सजी चंवर लिए महिषी की मूर्ति लेख श्री अश्वमेध महेंद्र:  कुमार गुप्त प्रथम का अश्वमेध सिक्का बहुत कम पाया गया है लेकिन बयाना कि ढेर में इस ढंग के चार सिक्के मिले है। उसको देखने से पता चलता है कि एक ढंग के सिक्के कुमार गुप्त ने दो बार अश्वमेध यज्ञ करवाया था, पर अलंकार से विभूषित घोड़ा यूप के बाएं खड़ा है। वृत में लेख खुदा है, लेकिन केवल कुमार पढ़ा जाता है।

कुमारगुप्त प्रथम के दूसरे प्रकार का सोने का सिक्का!

 2) कृपाण वाला सिक्का -  इस सिक्के के आगे के भाग पर भारतीय वस्त्राभूषण पहने राजा खड़ा आहुति दे रहा है। एक हाथ में तलवार और दूसरे में "गरुणध्वज " , लेख गामवजिन्य सुचरितै: कुमार गुप्ततो दिवं जयति राजा के हाथ के नीचे नाम नहीं मिलता जैसा पिछले कुषाण सिक्कों की नकल पर समुद्र गुप्त ने चलाया था। सिक्के के पीछे के भाग पर पद्मासन पर बैठी लक्ष्मी जी की मूर्ति , लेख श्री कुमार गुप्त: ।

कुमारगुप्त प्रथम का पहले प्रकार सोने का सिक्का!

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  कुमारगुप्त प्रथम के 9 प्रकार के सोने के सिक्के मिलते है। कुमारगुप्त के सिक्के तौल में 124 से 126 ग्रेन तक के पाए गए है। 1) धनुर्धरांकित वाला सिक्का - अलग - अलग तरह से राजा का नाम लिखने या नाम के नए होने के कारण कुमार गुप्त प्रथम के सिक्कों में कई भेद पाया जाता है। नाम लिखने का ढंग एक सा नहीं है। एक जगह पर " कुमार " राजा के हाथ के नीचे लिखा मिलता है। दूसरे सिक्कों पर केवल " कु " लिखा पाया जाता है। तीसरे ढंग में राजा का नाम कुमार या " कु " कुछ भी नहीं मिलता।  इसके अलावा सिक्कों के आगे के भाग पर पांच तरह के लेख पाए जाते है। धनुष बाण धारण किए हुए राजा की मूर्ति मिलती है तथा कुछ इस प्रकार के लेख मिलते है - १) विजिता वनिर वनि पति: कुमार गुप्तो दिवं जयति  २) जयति महित लां - ३) परम महाराजाधिराज श्री कुमार गुप्त: ४) महाराजाधिराज श्री कुमार गुप्त: ५) गुणेशो महीतलां जयति कुमार गुप्त: सिक्के के पिछे के भाग पर पद्मासन पर बैठी हाथ में कमल लिए लक्ष्मी की मूर्ति और गुप्त लिपि में लेख "श्री महेंद्र:" मिलता है।

चन्द्र गुप्त द्वितीय के तांबे के सिक्के !

  चंद्रगुप्त के तांबे के सिक्कों पर एक ओर श्री विक्रम: या श्री चंद्र: या केवल चन्द्र मिलता है और दूसरी ओर गरुण का चित्र महाराजा चंद्रगुप्त: या श्री चन्द्रगुप्त: या चन्द्र गुप्त या केवल गुप्त लिखा मिलता है।

चंद्रगुप्त द्वितीय के चांदी के सिक्के !

चन्द्रगुप्त द्वितीय ने गुप्त मुद्रा में चांदी का सबसे पहले समावेश किया। क्षत्रपों के अनुकरण के कारण उन पर आगे के भाग में राजा के अर्ध शरीर की मूर्ति ब्राह्मी अंक में तिथि खुदी मिलती है (गुप्त संवत् से उस तिथि का संबंध है) पीछे के भाग में मेरु पर्वत के स्थान पर गरुण की आकृति , दो प्रकार के लेख गुप्त लिपि में  १) परम भागवत महाराजाधिराज श्री चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य  २) श्री गुप्त कुलस्य महाराजाधिराज श्री चंद्रगुप्त विक्रमांकस्य मिलते है।

चन्द्रगुप्त विक्रमादित के छठे प्रकार के सोने के सिक्के !

  6) चक्र विक्रम वाला सिक्का - चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का छठे प्रकार का एक सिक्का देर से मिला जो सबसे विचित्र ढंग का है। इसको देखने से पता चलता है कि भगवान् विष्णु विक्रमादित्य की त्रैलोक्य का राज्य भेंट कर रहे है।  इसमें सिक्के के आगे के भाग पर गदा युक्त भगवान् विष्णु (तीन प्रभामंडल से युक्त) की आकृति , उसके बायी ओर (एक प्रभामंडल युक्त) राजा खड़ा है। विष्णु तीन गोलाकार वस्तु राजा को भेंट कर रहे है। कोई लेख नहीं मिलता है। पीछे के भाग पर बाएं हाथ में सनाल कमल लिए लक्ष्मी खड़ी है। उनके दाएं हाथ के नीचे शंख है। लेख चक्र विक्रम: पाया जाता है। इस सिक्के से ज्ञात हो जाता है कि (शंख गदा पद्मआदि युक्त) भगवान विष्णु को उपासना चन्द्रगुप्त द्वितीय करता था।

चन्द्रगुप्त विक्रमादित के पांचवे प्रकार के सोने के सिक्के !

5) पांचवे प्रकार अश्वारूढ़ राजा वाला सिक्का को चंद्रगुप्त द्वितीय ने ही तैयार करवाया। इस प्रकार के सिक्के का प्रचार उनके पुत्र कुमार ने अधिक किया। इसके आगे के भाग पर अश्वारूढ़ राजा की मूर्ति गुप्त लिपि में परमभागवत महराजाधिराज श्री चन्द्र गुप्त: लिखा है।  सिक्के के पीछे के आसन पर बैठी कमल लिए देवी की मूर्ति अजित विक्रम: लिखा है।

चन्द्रगुप्त विक्रमादित के चौथे प्रकार के सोने के सिक्के !

 4) सिंह युद्ध बाला - इसमें राजा की अवस्था सिंह की दशा और लेख के कारण भेद पाए जाते है। चित्र से राजा के शरीर का गठन तथा बलिष्ट भुजाएं है। बयाना के सिक्कों में राजा सिंह को कुचलते हुए या युद्ध करते हुए दिखाया गया है।  सिक्के के आगे उष्णीस तथा अन्य वस्त्राभूषण से सुसज्जित राजा की खड़ी मूर्ति , धनुष बाण से सिंह को मार रहा है। कभी तलवार का चित्र मिलता है और चार प्रकार के लेख  १) नरेंद्र चन्द्र : प्रथितदिवं जयस्य जेयो भुवि विक्रम: २) नरेंद्रसिंह चन्द्र गुप्त: पृथिवी जित्वा दिवं जयति ३) महाराजाधिराज श्री चन्द्र गुप्त: ४) देव श्री महाराजाधिराज श्री चन्द्र गुप्त: खुदे है। सिक्के के पृष्ठ भाग पर लक्ष्मी सिंह पर बैठी है सिंह चन्द्र: या श्री सिंह विक्रम: या सिंह विक्रम: लिखा है।

चन्द्रगुप्त विक्रमादित के तीसरे प्रकार के सोने के सिक्के !

 3) पर्यक्क वाला सिक्का - इस सिक्के के आगे के भाग पर भारतीय वेष में राजा  पर्यक्क पर बैठा है, दाहिने हाथ में कमल है ऐसे सिक्कों पर तीन प्रकार के लेख मिलते है। अ) देव श्री महाराजाधिराज श्री चन्द्र गुप्तस्य  ब) वही परंतु पर्यक्क के नीचे रुपकृति लिखा है  स) परम भागवत महाराजाधिराज श्री चन्द्र गुप्त: पीछे के भाग पर सिंहासन पर बैठी हुई लक्ष्मी जी की मूर्ति और श्रीविक्रय: या विक्रमादित्यस्थ लिखा है।

चन्द्रगुप्त विक्रमादित के दूसरे प्रकार के सोने के सिक्के !

2) छत्र वाले सिक्के -  इनके आगे के भाग पर आहुति देते खड़ी राजा की मूर्ति, बाएं हाथ में तलवार , उसके पीछे बौना नौकर छत्र लिए और चारों ओर दो प्रकार के लेख खुदे मिलते है महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त: अथवा क्षितिमव जित्य सुचरितै: दिवं जयति विक्रमादित्य: है। पीछे के भाग पर कमल पर लक्ष्मी जी की खड़ी मूर्ति बनायी गयी है।

चन्द्रगुप्त विक्रमादित के पहले प्रकार के सोने के सिक्के !

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 चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने छ: प्रकार के सोने के सिक्कों का निर्माण कराया था -  1) धनुर्धरांकित -  इस सिक्के का सम्राट ने अधिक प्रचार किया। इस सिक्के के आगे के भाग में धनुष बाण लिए खड़ी राजा की मूर्ति , गरुड़ ध्वज , बाएं हाथ के नीचे और चारों ओर गुप्त लिपि में रूद्र देव श्री महाराजधिराज श्री चन्द्र गुप्त: लिखा है। पीछे के भाग पर पद्मासन पर बैठी लक्ष्मी की मूर्ति , राजा की उपाधि श्री विक्रम: लिखा है।

काचगुप्त का सोने का सिक्का !

1) चन्द्रगुप्तम नाटक , हर्षचरित्र , काव्य मीमांस्त्रा श्रृंगार प्रकाश और संजन ताम्रपत्र के आधार पर रामगुप्त (वास्तविक नाम काचगुप्त) का राज्य काल निर्णय किया गया है। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य से पहले थोड़े समय तक काचगुप्त का शासन रहा। 2) समुद्रगुप्त के सिक्के की तरह एक सोने का सिक्का मिला है जिस पर " काच " लिखा है। उसे ही काचगुप्त वाला सिक्का माना जाता है।  3) काचगुप्त का एक ही प्रकार का सिक्का मिलता है। जिसमें एक ओर राजा की खड़ी मूर्ति (समुद्र की तरह वस्त्र पहने) चक्र युक्त ध्वजा लिए और अग्नि में दाहिने हाथ से आहुति देते दिखलायी गयी है। राजा के बाएं हाथ के नीचे गुप्त लिपि में काच और चारों ओर उपगीति छंद में"काचो गाम विजित्य दिवं कर्मभिरूतमैर्जयति " लिखा है। 4) पीछे की ओर पुष्प लिए खड़ी देवी की मूर्ति है और उसके पीछे "सर्व राजोच्छेता " लिखा है।  इसकी तौल 118 ग्रेन है।

समुद्रगुप्त के छठे प्रकार के सिक्के !

छठे प्रकार का अश्वमेध वाला सिक्का है जो अश्वमेध यज्ञ के स्मारक में तैयार किया गया था। समुद्र ने अन्य प्रांतों पर दिग्विजय कर इसे तैयार कराया। प्रयाग की प्रशस्ति में इस दिग्विजय का विस्तृत विवरण पाया जाता है। इसमें अग्र भाग में पताका के साथ यज्ञ यूप में बंधे अश्वमेध घोड़े की मूर्ति है। वहां गोल दायरे में उपगिती छंद में "राजाधिराज पृथ्वि विजित्वा दिवं जयत्या हुत वाजिमेध " लिखा हुआ है। पीछे के भाग में हाथ में चंवर लिए प्रधान महिषी की मूर्ति है। महिषी के पीछे " अश्वमेध पराक्रम: " लिखा मिलता है।

समुद्रगुप्त के पांचवे प्रकार के सिक्के !

  पांचवा सिक्का राजा के संगीत से प्रेम की घोषणा करता है। राजा आगे के भाग की ओर खाट पर बैठा है। हाथ में वीणा लिए हुए राजा की मूर्ति उसके चारों ओर महाराजाधिराज भी समुद्र गुप्त: लिखा है। यह वीणा वाला सिक्का कहा जाता है। इसमें किसी प्रकार का अनुकरण नहीं है। यह सर्वथा भारतीय ढंग का सिक्का है केवल इसकी तौल 115 ग्रेन है जो रोम की तौल के करीब बराबर है। भरतपुर देर में इस प्रकार के छोटे और बड़े कई सिक्के मिले है जो संगीत प्रेम की व्यापकता को सिद्ध करता है।

समुद्रगुप्त के चौथे प्रकार के सिक्के !

चौथे प्रकार के सिक्का इसमें राजा धनुष बाण लिए हुए व्याघ्र को मारते हुए चित्रित किया गया है। राजा भारतीय वेष में है। बाएं हाथ के नीचे व्याघ्र पराक्रम लिखा हुआ है। राजा का नाम समुद्र गुप्त: लिखा है। परन्तु बयाना देर से व्याघ्र मारते हुए कई अनमोल सिक्के मिले है।  किसी सिक्के में राजा समुद्र गुप्त लिखा है तो दूसरे में अग्र और पृष्ठ दोनों भागों पर व्याघ्र पराक्रम: ही अंकित है। इसमें कुषण सिक्कों का अनुकरण नहीं मालूम पड़ता। सभी बातें भारतीय है। तौल 118 ग्रेन।

समुद्रगुप्त के तीसरे प्रकार के सिक्के !

तीसरे प्रकार के एक ओर ध्वजा के बदले में परशु लिए राजा की मूर्ति और दाहिनी ओर एक बालक की मूर्ति है। पहले सिक्कों की तरह अक्षर के नीचे अक्षर लिखकर राजा का नाम खुदा है। मूर्ति के चारों ओर पृथ्वी छंद में कृतांत परशुर्जयत्यजित राज जेता जित: लिखा है। पीछे के भाग में नालयुक्त कमल लिए सिंहासन पर बैठी लक्ष्मी (देवी) की मूर्ति है। उनकी दाहिनी ओर कृतांत परशु: , लिखा है।  भरतपुर के बयाना देर में इस प्रकार के कई सिक्के मिले है, जिसमें समुद्र या पदवी का केवल प्रथम अक्षर कृ लिखा मिलता है।

समुद्रगुप्त के दूसरे प्रकार के सिक्के !

  दूसरे प्रकार के सिक्के में भी आगे के भाग में धनुष बाण धारण किए राजा की मूर्ति और गरुण ध्वज दिखलाया गया है। बाएं हाथ के नीचे राजा का नाम और मूर्ति के चारों ओर गुप्त में " अप्रतिरथो विजिस्य क्षिति सुचरितै: दिवं जयति" लिखा है। पीछे के भाग में सिंहासन पर बैठी हुई लक्ष्मी की मूर्ति तथा अप्रतिरथ: मिलता है।

समुद्ररगुप्त के सोने के पहले प्रकार के सिक्के !

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  समुद्रगुप्त के कई प्रकार के सोने के सिक्के मिले हैं। उन पर विभिन्न प्रकार की मूर्तियां और संस्कृति के सुंदर छंदवद्ध (पद्यानुमक) लेख है। पहले प्रकार के सिक्के - 1) समुद्रगुप्त के पहले प्रकार के सिक्कों पर गरुण ध्वज है। अप्रभाग की ओर - कोट (लम्बे ढंग से) टोपी, पायजामा और घुटने तक खिंचाव जूता पहने हुए और बहुत सारे आभूषण पहने समुद्रगुप्त खड़ा है। 2) बाएं हाथ में गरुण ध्वज चित्र है। दाहिने हाथ से अग्नि में आहुति डाल रही है (निर्मित होकर पूजा करने का ढंग विदेशी ईरानी है)।  3) राजा के बाएं हाथ के नीचे नाम लिखा है। राज मूर्ति के चारों ओर उपगीति छंद में "समरथ विनीत विजयो जित रिपुजितो दिवं जयति।"  4) पिछे के भाग में सिंहासन पर लक्ष्मी जी की मूर्ति है। देवी का पूरा शरीर वस्त्र - आभूषणों से सुसज्जित है।  5) बाएं हाथ में कार्नकोपिया और दाहिने में नाल बना है। ६) इस राजा की पदवी पराक्रम खुदा है और कुछ व्यर्थ चिन्ह या कुषाण सिक्कों के ग्रीक अक्षर मिलते हैं।  7) ये सभी सिक्के 124 ग्रेन के हैं। 8) ये सिक्के ग्रीक अक्षरों के स्थान पर ब्राह्मी वर्ण (गुप्त लिपि) का प्रयोग किया और ...

चन्द्रगुप्त प्रथम के सिक्के !

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  चन्द्रगुप्त प्रथम का एक ही प्रकार का सिक्का मिला है यह सिक्का चन्द्र के लिच्छवी राज पुत्री कुमार देवी के साथ विवाह के स्मारक में तैयार किया गया था। अप्रभाग पर चन्द्र गुप्त प्रथम टोपी कोट, पायजामा और आभूषण पहने खड़ा है। उसी के समीप वस्त्र आभूषणों से सुसज्जित कुमार देवी का चित्र है। राजा रानी को अंगूठी भेंट रहा है। बाई ओर चन्द्र गुप्त  और दाहिनी ओर "श्री कुमार देवी " लिखा है। पीछे की तरह सिंह वाहिनी लक्ष्मी का चित्र है। हाथ में नाल युक्त कमल लिए बैठी है। पैर के नीचे कमल है और लिच्छवय: लिखा है।

प्राचीन काल में सिक्कों का नाम क्या - क्या था ? भाग - 3

1) इलावृहदारण्यक उपनिषद् में याज्ञवल्क्य ऋषि को दान देते समय ' पाद ' का नाम आता है कि ' पाद ' सिक्के का नाम था। यह नाम पाणिनि के समय तक व्यवहार में खाया जाता था। पाणिनि किसी वस्तु को एक शतमान में खरीदने पर " शतमानम्" का नाम देते है। 2) सुवर्ण और शतमान सिक्कों के चौथाई (पाद = , पाव) भाग को पाद का नाम दिया था। विनिय पिठक में इसका प्रमाण मिलता है कि - पंचमासको पादो होति - पांच मासे को पाद कहते है,(उस समय शतमान बीस मासे का माना जाता था)। 3) ईसा पूर्व 8 सौ वर्ष में लिखित तैतरीय संहिता के आधार पर कृष्णनल (बीज, रत्ती के नाम से प्रसिद्ध) को नियमित तौल माना था और उसी के प्रमाण पर आज तक सोने चांदी आदि धातुओं के तौलने के लिए रत्ती का प्रयोग किया जाता है।

प्राचीन काल में सिक्कों का नाम क्या - क्या था ? भाग - 2

7) आठवां भाग वाले सिक्कों को " काकिनी " कहते थे। इस तौल के सिक्के कम संख्या के तैयार किए जाते थे लेकिन उनके बराबर " काकिनी" तथा अर्द्धकाकिनी का प्रचार था। कौड़ी के चलन के कारण ऐसे छोटे तौल के सिक्के कम संख्या में तैयार किए जाते थे। 8) तांबे के सिक्के को कर्षापण कहे जाते थे वही पाली भाषा में जातक और पिटक ग्रन्थों में कहापन के नाम से विख्यात हुए।  9) भारत में यूनानी शासकों के सिक्के " अर्द्ध द्रम " कहे जाते थे।  10) नासिक के लेख (पहली सदी) में नहपान के जमाता उपवदत्त ने चांदी के सिक्कों के लिए कर्षापण तथा सोने के सिक्कों के लिए सुवर्ण का उल्लेख मिलता है। 11) रोम राज्य के सोने के सिक्कों को दिनेरियस (Denarius) कहे जाते थे उन्हीं के नाम परगुप्त सम्राटों ने दिनार रखा। 12) गांगेयदेव और चंदेल राजाओं ने कुछ सोने के सिक्के तैयार किए थे ,जिनका तौल यूनानी द्रम (62 ग्रेन) के बराबर था। इसलिए वे सुवर्ण द्रम के नाम से विख्यात थे।

प्राचीन काल में सिक्कों का नाम क्या - क्या था ? भाग - 1

1) वैदिक साहित्य में निष्क शब्द से सोने का सिक्का प्रसिद्ध था। 2) ब्राह्मण ग्रंथों में शतमान शब्द का भी प्रयोग सिक्कों के लिए मिलता है। उस सिक्के की तौल सौ ( शत ) रत्ती के बराबर माना जाता था। समय के साथ उसके चौथाई भाग को पाद के नाम से पुकारने लगे। 3) प्राचीन समय में तांबे के सिक्के को " कर्षायण" कहते थे, क्योंकि उसकी तौल कर्ष (बीज का नाम) के द्वारा निकाला जाता था। 4) अष्टाध्यायी में शतमान तथा रुप्य आदि शब्द सिक्कों के लिए प्रयोग किए जाते रहे है। 5) कौटिल्य अर्थशास्त्र में चाणक्य ने कई तरह के नामों का उल्लेख सिक्कों के लिए किया है। चांदी के सिक्कों के लिए पुण्ण या धरण शब्द बार - बार इस्तेमाल किए गए है। कौटिल्य ने मासक नाम के सिक्कों का उल्लेख किया गया है। मासक शब्द से तौल का भी अनुमान किया जाता है की यह मुद्रा एक मासा तौल में था। अर्द्ध मासक भी तैयारी किया जाता था। 7) आठवां भाग वाले सिक्कों को " काकिनी" कहते थे। इस तौल के सिक्के कम संख्या के तैयार किए जाते थे लेकिन उनके बराबर " काकिनी" तथा अर्द्धकाकिनी का प्रचार था। कौड़ी के चलन के कारण ऐसे छोटे तौल के सिक्...

कुषण वंशिय राजा वासुदेव के सोने के सिक्के !

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  वासुदेव के सोने के सिक्कों पर केवल महादेव की और नाना की मूर्ति मिलती है। इन सब सिक्कों पर एक ओर अग्नि की वेदी के सामने खड़े हुए शिरस्त्राण और चर्म पहने हुए राजा की मूर्ति और दूसरी ओर महादेव अथवा नाना की मूर्ति है।

कुषण वंशिय राजा वासुदेव के तांबे के सिक्के !

  वासुदेव के तांबे के सिक्के - वासुदेव के तांबे के सिक्कों पर दूसरी ओर महादेव की मूर्ति और दूसरे प्रकार के सिक्कों पर उनके बदले में सिंहासन पर बैठी हुई देवी की मूर्ति है।

कुषण वंशिय राजा हुविष्क के सोने के सिक्के !

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हुविष्क के सोने के सिक्कों पर एक ओर राजा का मस्तक चार अलग - अलग प्रकार से अंकित है और उन पर यूनानी अक्षरों तथा प्राचीन पारसी भाषा में राजा का नाम और उपाधि दी है -    शाहंशाह हुविष्क कुषण = राजाधीरज कुषणवंशी हुविष्क।

कुषण वंशिय राजा हुविष्क के तांबे के सिक्के !

  हुविष्क के तांबे के सिक्के - 1) पहले प्रकार के सिक्कों पर हाथी पर सवार हाथ में शूल और अंकुश लिए हुए और सिर पर मुकुट पहने हुए राजा की मूर्ति है। 2) दूसरे प्रकार के सिक्कों पर एक ओर खाट या सिंहासन पर बैठे हुए राजा की मूर्ति है।   3) तीसरे प्रकार के सिक्कों पर ऊंचे आसन पर बैठे हुए और मुकुट पहने हुए राजा की मूर्ति है। 4) चौथे प्रकार के सिक्कों पर एक ओर दक्षिण की तरफ मुंह करके राजा बैठा हुआ है। 5) पांचवें प्रकार के सिक्कों पर एक ओर आसन पर बैठे हुए और बाहें ऊपर उठाए हुए राजा की मूर्ति है।

कुषण वांशिय राजा विमकदफिस के सिक्के ! - भाग - 2

ये सब सिक्के डबल स्टेटर (Double Stater) कहलाते है। इन पर एक ओर यूनानी अक्षरों में Basileus Ooemo Kadphises और दूसरी ओर खरोष्ठी अक्षरों में - " महरजसरजतिस सर्वलोक ईश्वरस महिश्वरसविम कठ्फिसस "लिखा है। स्टेटर कहलाने वाले सोने के सिक्के छोटे सिक्कों पर एक ओर राजा का मस्तक और दूसरी ओर हाथ में त्रिशूल लेकर खड़े हुए शिव की मूर्ति है। तौल में इससे आधे और सोने के सबसे छोटे सिक्कों पर एक ओर चौकोर क्षेत्र में राजा का मुख और दूसरी ओर वेदी पर त्रिशूल है।

कुषण वांशिय राजा विमकदफिस के सिक्के ! - भाग - 1

कुयुलकदफिस के पुत्र येन - काउ - चिड़ - ताई वा विमकदफिस के राजस्वकाल से संभवतः कुषण राजा लोग सोने के सिक्के बनवाने लगे थे।  विमकदफिस के सोने के सिक्के मिलते है। ऐसे सोने के सिक्के - 1) पहले प्रकार के सिक्कों पर एक ओर राजा शिरस्त्राण और बहुत बड़ा परिच्छेद पहनें हुए खाट पर बैठा है और दूसरी ओर महादेव हाथ में त्रिशूल लिए बैल के पास खड़े है। 2) दूसरे प्रकार के सिक्कों पर एक ओर राजा मुकुट और शिरस्त्राण पहनें हुए मेघ पर बैठा है और दूसरी ओर महादेव पहले की तरह बैल के पास खड़े है। 3) तीसरे प्रकार के सिक्कों पर एक ओर चौकोर क्षेत्र में राजा का मस्तक है।

कुषण वंशिय राजा कुयुलकदफिस के तांबे के सिक्के ! भाग - 2

  तांबे के इन सब सिक्कों पर जिस यूनानी भाषा का व्यवहार हुआ है, वह बहुत ही अशुद्ध है। कदफिस को Kadphizou अथवा kadaphes लिखा है। खरोष्ठी अक्षरों में कदफिस के नाम के पहले या पीछे "कुषणयवुगस ध्रमठदिस " लिखा है।  इन सब सिक्कों पर कदफिस का नाम अलग - अलग तरह से लिखा है - 1) महरयसरयरयस देवपूत्रस कुयुलकरकफसस  2) कुयुलकरकपस महरयस रबति रयस 3) महरजस महतस कुषण कुयुलकफस 4) महरजस रजतिरयस कुयुलकफस  5) (महरजस रजतिरजस ) कुजुकसस कुषण यवुगस ध्रमठिदशा ।

कुषण वंशिय राजा कुयुलकदफिस के तांबे के सिक्के ! भाग ,- 1

कुषण वंशिय राजा कुयुलकदफिस के नाम 6 प्रकार तांबे के सिक्के - 1) पहले प्रकार के सिक्कों पर एक ओर हेरमय का मस्तक और दूसरी ओर खड़े हुए हरक्यूलिस की मूर्ति है। इन दोनों ओर कुयुलकदफिस का नाम और उपाधि है। इस तरह के सिक्के सब प्रकार से हेरमय और कुयुलकदफिस दोनों के नामों वाले सिक्को के समान है। केवल यूनानी अक्षरों में हेरमय के नाम और उपाधि के बदले में कुयुलकदफिस का नाम और उपाधि दी है। 2) दूसरे प्रकार के सिक्कों पर एक ओर शिरस्त्राण पहनें हुए राजा का मस्तक और दूसरी ओर माकिदिन देश की पैदल सेना की मूर्ति है। 3) तीसरी प्रकार के सिक्के रोम के सम्राट आगस्टस के सिक्कों के समान है। उन पर एक ओर आगस्टस का मस्तक और दूसरी ओर उच्चासन पर बैठे हुए राजा की मूर्ति है। 4) चौथे प्रकार के सिक्कों पर एक ओर सांड और दूसरी ओर ऊंट की मूर्ति है 5) पांचवें प्रकार के सिक्कों पर एक ओर आगस्टस का मस्तक और दूसरी ओर यूनान देश की विजया देवी की मूर्ति है। 6) छठे प्रकार के सिक्कों पर एक ओर अभय या वरद आसन से बैठे हुए बुद्ध की और दूसरी ओर ज्यूपिटर की मूर्ति है।