प्रमोद कर्ण सेठी ने जयपुर - फुट क्यों बनाया ?
जयपुर फुट का इजाद एक अनूठी टीम ने किया -
एक पेशेवर सर्जन डॉ. प्रमोद कर्ण सेठी जो, " ब्रिटेन " के रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन के फेलो थे और उनके साथी रामचंद्र शर्मा ने।
रामचंद्र एक विलक्षण मिस्त्री और शिल्पी थे, जो कभी स्कूल नहीं गए थे। दोनों 30 वर्ष पहले ,पहली बार जयपुर के सवाई माधो सिंह अस्पताल में ही मिले।
तब डॉ. सेठी वहां विकलांग मरीजों के लिए बैसाखियां बना रहे थे और शर्मा कोढ़ के मरीजों को हस्तशिल्प बनाना सिखा रहे थे।
सेठी पोलियो पीड़ितों और पैर कटे मरीजों के लिए जयपुर में ही उपयुक्त ,कम कीमत वाले उपकरण बनाना चाहते थे। कृत्रिम अंग बनाने के केंद्र बहुत दूर पुणे, मुंबई में थे। जहां केवल अमीर लोग का ईलाज हो सकता था।
इसलिए सेठी अस्पताल के आंगन में ही विकलांगों के लिए कुछ स्थानीय उपकरण बनाने की सोची।
पुणे स्थित आर्मी लिंब पर एक विदेशी कृत्रिम पैर बनाता था। यह पैर बहुत भारी और कड़ा था और उसे हमेशा जूते से ढक कर रखना पड़ता था।
लोग मजबूती में इसे खरीदते ,पर जल्द ही इसे छोड़ देते। इसमें जूता सबसे बड़ी अड़चन था। भारत के लोग खेतों में, घरों में और पूजा के स्थलों पर बिना जूते के, नंगे पैर जाने के आदि थे।
यह जूता बहुत महंगा होने साथ - साथ पानी और मिट्टी के संपर्क में आकर बहुत जल्दी खराब हो जाता था।
उसमें एक और कमी थी - वो लचीला नहीं था। विदेशी पैर लगाकर लोग न तो शौचालय में और न ही पालथी मार कर बैठ सकते थे।
सेठी को श्रीलंका में बना एक डिज़ाइन अच्छा लगा। उसमें कृत्रिम पैर को रबर के पैर से ढका गया था। इसे पहनकर आम किसान पानी से भरे धान के खेतों में काम कर सकता था।
सेठी ने एक स्थानीय कारीगर से वल्कनाइज्ड रबर का एक कृत्रिम पैर का नमूना बनवाया। शुरू का पैर भारी और कड़ा था पर धीरे - धीरे उसमे सुधार हुआ। उसके खोल को हल्की स्पंज रबर से भरा गया।
बाद में एड़ी के स्थान पर माइक्रो सेल्युलर रबर लगाई और ऊपर की ओर पच्चर काट कर एक सभी दिशा में मुड़ने वाला जोड़ बनाया गया।
एक मरीज के भाई ने बाहरी रबर को बिल्कुल चमड़ी जैसा रंग दिया। तो इस प्रकार बना पहला जयपुर फुट।



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