भारतीय वैज्ञानिक अशेष प्रसाद मित्रा के उल्लेखनीय कार्य !
1) प्रोफेसर अशेष प्रसाद मित्रा ने आयनोस्फीयर के क्षेत्र में अग्रणी शोधकार्य किया।
2) 1954 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से डीफिल समाप्त करने के बाद मित्रा ने दिल्ली स्थित नैशनल फिजिकल लैबोरेट्री (एनपीएल ) में काम करना शुरू किया।
3) वहां उन्होंने रेडियो विज्ञान का नया विभाग शुरू किया। रेडियो विज्ञान का विकास बहुत हद तक आयनोस्फीयर के अध्ययन से जुड़ा था।
4) आयनोस्फीयर पृथ्वी के ऊपरी वातावरण का वो क्षेत्र है जो रेडियो - तरंगों को परावर्तित कर वापस भेजता है। इसी वजह से पृथ्वी की गोल सतह पर रेडियो संचार संभव हो पाता है।
रॉकेटों के आने से पहले इस ऊपरी वातावरण तक पहुंच पाना बहुत मुश्किल काम था।
आयनोस्फीयर के बारे में हम जो कुछ थोड़ा बहुत जानते थे वो स्पेक्ट्रोस्कोपी और पृथ्वी पर लगे वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा ही संभव हो पाया था।
एस. के. मित्रा ने भारत में आयनोस्फीयर शोध कार्य की नींव रखी। प्रोफेसर एस. पी. मित्रा ने इस काम को बहुत आगे बढ़ाया।
4) आयनोस्फीयर पर शोधकार्य हमेशा उस काल में उपलब्ध तकनीकों पर निर्भर रहा है। 60 के दशक में इस ऊपरी वातावरण की जांच परख रॉकेटों के साथ भेजे उपकरणों के जरिए की गई।
5) 70 के दशक में सैटलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट (साईट) कार्यक्रम के अंतर्गत रेडियो किरणों द्वारा इस क्षेत्र का अध्ययन किया गया।
6) 80 के दशक में हीलियम के गुब्बारों और रॉकेट्स के जरिए इस ऊपरी क्षेत्र के बारे में तमाम जानकारी जुटाई गई।
7) 90 के दशक में सैटलाइट और राॅडार के जरिए पृथ्वी की सतह से 1000 किलोमीटर ऊपर के क्षेत्र का अध्ययन हुआ।
इसमें उस क्षेत्र के भौतिक गुणधर्म - घनत्व और तापमान के साथ - साथ अन्य बहुत से मापदंडों का अध्ययन हुआ।
8) इंटरनेशनल ज्योफिजिकल ईयर 1957 - 58 और इंटरनेशनल क्वाइट सन ईयर 1964 - 65 में मित्रा ही भारतीय टीम की प्रेरक शक्ति थे।
9) 1970 में मित्रा ने ट्रोपो - स्फीयर क्षेत्र में रेडियो शोधकार्य का प्रारंभ किया, जिससे भारत की रेडियो संचार क्षमता का बहुत फायदा पहुंचा।
उन्होंने इंटरनेशनल रेडियो एंड ज्योफिजिकल वार्निंग सेन्टर की स्थापना की जिससे की भारत समेत मध्य और दक्षिण - पूर्व एशिया में संभावित भूकंपों की जानकारी पहले ही मिल जाए।
उन्होंने इसी तरह रेडियो फ्लेर डिटेक्शन सेन्टर भी स्थापित किया।
10) 1982 - 86 में एनपीएल के निदेशक और 1986 - 91 तक सीएसआईआर के डायरेक्टर जनरल के पद पर काम किया।
वो एशियाई क्षेत्र में मानसून स्टडी प्रोग्राम के प्रमुख भारतीय संचालक थे।
11) 90 के दशक में मनुष्य की क्रियाओं द्वारा दुनिया के पर्यावरण में आए बदलाव के अध्ययन पर मित्रा का प्रमुख बल रहा।
12) ओजोन परत , वातावरण का रसायनशास्त्र और भारत में ग्रीन हाउस गैसों को मापने के लिए उनके अद्वितीय शोधकार्य का अंतर्राष्ट्रीय असर हुआ।
1990 के शुरु में यू एस इंवारमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी ने आरोप लगाया कि भारत में धान के खेतों से 38.4 मिलियन टन "मीथेन गैस " निकलती है जो पृथ्वी के तापमान के बढ़ने का एक प्रमुख कारण है।
मित्रा ने इसे सफेद झूठ बताया और अपने ठोस वैज्ञानिक अध्ययन से दिखाया कि भारतीय धान के खेतों में केवल 4 मिलियन टन ही मीथेन निकलती है!
और पश्चिम के देश प्रति व्यक्ति भारत की तुलना में 9 गुना ज्यादा ग्रीन हाउस गैसें पैदा करते है। उन्होंने भारत को भी कोयला जलने और दुकानों ,घरों में लगे जेनरेटरों और कृषि उत्पादन में लगे डीज़ल इंजनों द्वारा प्रदूषण से आगाह किया।
13) मित्रा की इच्छा थी कि साउथ एशियन एसोसिएशन फॉर रीजनल को - ऑपरेशन ( सार्क ) के तत्वाधान में एक ऐसा नेटवर्क खड़ा हो जो इन देशों में होने वाले प्रदूषण और मौसमी बदलाव की प्रामाणिक जानकारी एकत्रित करें और भारत इसकी स्थापना की अगुवाई करें।
मौसम संबंधी जानकारी एकत्रित करने के लिए प्रयोगशालाएं स्थापित करने का उन्होंने सुझाव दिया। इस शोधकार्य में मित्रा भारतीय सेना को भी शामिल करना चाहते थे क्योंकि सेना पूर्वी हिमालय की ऊंचाई पर स्थित उन क्षेत्रों में काम करती थी।
जहां वैज्ञानिक नहीं जाते थे। उनका पक्का विश्वास था कि अच्छी नीतियों के लिए सही और उच्च कोटि की जानकारी अनिवार्य थी।
उनके अनुसार इंटर - गवरमेंटल पेनल ऑन क्लामेट चेंज (आईपीसीसी) अपने शोध में बहुत पीछे था। वो चाहते थे कि भारत प्रदूषण और गैस निकासी पर खुद ठोस शोधकार्य करें और मौसम - बदलाव के मुद्दे पर उपयुक्त नीतियां बनाए।
14) 1999 में मित्रा ने भारत, यूरोप, माल्डिव और अमेरीका के 200 से भी अधिक वैज्ञानिकों के साथ मिलकर 6 हफ्ते का एक अभूतपूर्व वैज्ञानिक अध्ययन किया।
इसमें उन्होंने हवा में एरोसोल के बहुत सूक्ष्म कणों का मौसम पर पड़े प्रभाव को समझा।
15) मित्रा दुनिया के उन तीन अग्रणी वैज्ञानिकों में से थे जिन्होंने इंडियन ओशन इक्सपेरिमेंट (इंडोएक्स ) में भाग लिया।
इस प्रयोग को भारतीय महासागर में किया गया। जहां पर अंटार्कटिक से आयी शुद्ध हवा भारतीय महाद्वीप से आई प्रदूषित हवा से मिलती थी।
भारतीय महासागर इस अनूठे प्रयोग के अध्ययन की एक विशाल प्रयोगशाला बनी।
वैज्ञानिकों को भारत के क्षेत्रफल से सात गुना बड़ी एक गहरी धुंध उत्तरी भारतीय महासागर में दिखाई पड़ी। इस धुंध से बादलों के बनने और वर्षा की मात्रा पर गंभीर परिणाम हो सकते थे।
मित्रा ने चेतावनी दी थी कि एरोसोल के सूक्ष्म कणों से वर्षा और कृषि ऊपज पर प्रभाव पड़ सकता है और दमा हुई बढ़ सकता है।
16) मित्रा ने पानी के संरक्षण पर विशेष बल दिया और भविष्य में देशों के बीच पानी को लेकर युद्ध होने की संभावना से इंकार नहीं किया।
वो कम वर्षा वाले इलाकों में अधिक पानी चूसने वाले गन्ने जैसी फसलों को प्रोत्साहित करने वाली संकीर्ण नीतियों के आलोचक थे।


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