भारत चीन संबंध इंदिरा गांधी के शासन काल में कैसे थे ?
इंदिरा गांधी के शासन काल में भारत - चीन संबंध सुधारने के कई प्रयास किए गये। जून 1967 में चीन के नई दिल्ली स्थित दूतावास के दो अधिकारियों को गुप्तचरी के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
चीन का भारतीय चौकी पर हमला
सितंबर में चीन ने नाथू - ला में भारतीय चौकी पर हमला किया। अक्टूबर 1967 में चो - ला की चौकी पर धावा किया गया और फिर अप्रैल 1968 में नाथू - ला में चीन की सैनिक गतिविधियां देखी गई।
कई देशों द्वारा की गई चीन की आलोचना के पश्चात 1970 में चीन ने भारतीय चौकियों पर आक्रामक गतिविधियां बंद कर दी।
मई दिवस स्वागत समारोह
1970 के दौरान ही बीजिंग में मई दिवस स्वागत समारोह में भारतीय प्रभारी राजदूत का माओ - त्से - तुंग ने स्वागत करते हुए, कहा कि "भारत एक महान देश है। भारत और चीन पहले अच्छे मित्र थे और उन्हें फिर मित्र बनना चाहिए।"
भारतीय इतिहास में इस घटना को माओ - मुस्कुराहट के नाम से जाना जाता है।
26 अगस्त 1970 को भारतीय विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह ने चीन के साथ संबंध सुधारने की इच्छा व्यक्त की।
भारत सोवियत संघ मैत्री संधी
भारत सोवियत संघ मैत्री संधी, 1971 के संपन्न होने से एक सप्ताह पहले मास्को में चीन के राजदूत डी. पी. धर से तीन बार मुलाकात की।
नवंबर, 1971 में चीन ने अफ्रीकी - एशियाई "मैत्री टेबल टेनिस प्रतियोगिता " का आयोजन किया, जिसमे भारत की टीम ने भी भाग लिया।
इस तरह टूटते हुए संबंध एक बार फिर सामान्य स्थिति की ओर बढ़े,इसे पिगपाग कूटनीति का जन्म भी कहा जाता था।
बांग्लादेश संकट
चीन ने फिर 1971 में बांग्लादेश संकट के समय भारत के प्रति शत्रुता का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया। लेकिन चीन ने प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं किया।
उस समय जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान में किसी पद पर नहीं थे , लेकिन उन्हें यह आशा थी कि अगर मुजीब को प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया तो सत्ता उन्हें मिल जाएगी।
याहया खां ने बाद में खुद स्वीकार किया कि भुट्टो ने उन्हें यह कहकर गुमराह किया था कि युद्ध में चीन, पाकिस्तान के पक्ष में हस्तक्षेप करेगा।
संयुक्त राज्य अमेरिका को भी विश्वास था कि चीन हस्तक्षेप करेगा।
लेकिन अगस्त ,1971 में हस्ताक्षरित भारत - सोवियत मैत्री संधि की पृष्ठभूमि में न तो चीन ने और न ही अमेरिका ने सामने से हस्तक्षेप किया।
इसी समय बीजिंग - इस्लामाबाद की धुरी में राष्ट्रपति निक्सन और डॉ॰ हेनरी किसिंजर के प्रयासों से वाशिंगटन का भी प्रवेश हुआ ,जिससे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के समीकरण तेजी से बदलने लगे।
संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रतिनिधि ने दावा किया कि पूर्वी पाकिस्तान की समस्या पाकिस्तान का आंतरिक प्रश्न था।
उसने भारत के दृष्टिकोण को गुंडागर्दी का तर्क तक कह दिया,साथ ही उसने कुछ समय के लिए बांग्लादेश को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं बनने दिया।
इन सबके बावजूद इंदिरा गांधी ने जनवरी 1972 में यह आशा व्यक्त की कि चीन - पाकिस्तान धुरी के होते हुए भी अंत में भारत - चीन संबंधों में सुधार अवश्य होगा।
भारत के प्रति गलत प्रचार
15 दिसंबर ,1972 को राज्य सभा के तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह भारत - चीन संबंधों की समीक्षा करते हुए नये संबंध स्थापित करने पर बल दिया।
भारत ने जब मई 1974 में राजस्थान के पोखरन में शांतिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु - परीक्षण किया। तब चीन ने यह प्रचार करना शुरू किया कि भारत अपने छोटे पड़ोसियों को डरा रहा है।
सिक्किम का भारतीय संघ में विलय
इसी तरह जब 1974 - 75 में सिक्किम कि जनता ने अपने शासक चोंग्याल के विरूद्ध विद्रोह कर सिक्किम को भारतीय संघ में विलय करने की प्रार्थना की।
तब चीन ने भारत पर विस्तारवादी होने का आरोप लगाया। चीन ने यह भी आरोप लगाया कि भारत, मास्को की सहायता से एक विशाल भारतीय साम्राज्य की स्थापना का प्रयास कर रहा है।
इंदिरा गांधी ने इसके जवाब में कहा कि " चीन ने तिब्बत में जो कुछ किया। उस पृष्ठभूमि में उसे सिक्किम के विषय में कुछ भी बोलने का अधिकार हो ही नहीं सकता। "
न्यूनतम कर्मियों के द्वारा दोनों देशों के दूतावास कार्य करते रहे थे। लेकिन 1962 - 74 की अवधि में राजदूत स्तर पर भारत - चीन संबंध निलंबित ही रहे थे।
इंदिरा गांधी की पहल
इंदिरा गांधी ने चीन के साथ संबंधों को सामान्य करने की पहल करते हुए ,अप्रैल 1976 में श्री के. आर. नारायणन को भारत का राजदूत नियुक्त किया।
जुलाई 1976 में चीन ने भारत में श्री चेन - चन - युन को राजदूत नियुक्त किया।
चीन के संस्थापक और वरिष्ठ नेता माओ - त्से - तुंग का सितंबर 1976 में निधन हो गया और उनके जगह पर हुआ - कुओ - फेंग चीन के राष्ट्रपति बनाये गये।
फेग के खिलाफ विरोध करने वाले चार उच्चस्तरीय नेताओं को बंदी बना लिया गया।
जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार
भारत में भी मार्च 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी जिसने यह घोषणा की कि वह अपनी विदेश नीति में ' सच्चे अर्थों में ' गुट निरपेक्षता की नीति का पालन करेगी।
तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 12 फरवरी, 1979 को चीन की यात्रा की। वाजपेयी की यात्रा के समय ही चीन ने अपने पड़ोसी वियतनाम पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण के विरूद्ध रोष प्रकट करते हुए वाजपेयी, 17 फरवरी को भारत लौट आए।
चीन ने वाजपेयी की इस यात्रा के दौरान में अपनी ओर से न तो कश्मीर का प्रश्न उठाया, न ही सिक्किम के भारत में विलय पर चर्चा की। इस यात्रा के बाद नागा और मिजो विद्रोहियों को चीन से प्राप्त हो रही सहायता समाप्त हो गई। भारत विरोधी प्रचार में भी कमी आई।
जबकि वाजपेयी ने अपनी ओर से सिक्किम के विलय के प्रश्न पर भारत का दृष्टिकोण स्पष्ट किया, लेकिन चीन ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।
विदेश मंत्री वाजपेयी ने अपने चीन यात्रा को " टोही मिशन " की संज्ञा दी और कहा कि इससे एशिया में नये शक्ति संतुलन की शुरुआत हो सकती है। वाजपेयी की यह यात्रा सीमा समस्या को छोड़कर , लाभदायक रही।
इंदिरा जी की सत्ता में वापसी
जनता सरकार द्वारा जो पहल की गई थी, इंदिरा जी ने फिर 1980 में सत्ता में आने पर उसका उपयोग किया। भारत - चीन संबंध सुधारने के प्रयास जारी रहे।
हुआ - गुओ - फेंगमई 1980 में " युगोस्लाविया " के राष्ट्रपति मार्शल टीटो के अंतिम संस्कार के अवसर पर बेलग्रेड में इंदिरा जी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री हुआ - गुओ - फेंग से भेंट की।
चीनी विदेश मंत्री हुआंग - हुआ ने जून 1981 में भारत की यात्रा की और सीमा विवाद सहित सभी प्रकार के संबंधों को सामान्य करने के लिए राजी हो गए।











Comments
Post a Comment