भारतीय वैज्ञानिक जिन्होंने नये प्रकार के लिक्विड क्रिस्टल की खोज की !

 शिवरामाकृष्णन चंद्रशेखर ( 1930 - 2004)




आजकल लिक्विड क्रिस्टल सभी जगह उपयोग में लाए जा रहे है - मोबाइल फोन्स से लेकर बड़े टेलीविज़न स्क्रीन में भी।

पहले वाले भारी भरकम कैथोड - रे ट्यूब अब गायब हो गए है और उनका स्थान अब लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले ने ले लिया है।

लिक्विड क्रिस्टल के क्षेत्र में विकास का अधिकांश श्रेय शिवरामाकृष्णन चंद्रशेखर को जाता है। लोग उन्हें प्यार से चंद्रा बुलाते थे।

प्रारंभिक जीवन

1) शिवरामाकृष्णन चंद्रशेखर का जन्म 6 अगस्त 1930 को कलकत्ता में हुआ था।

2) उनके पिता ब्रिटिश सरकार के लिए काम करते थे। बाद में पदोन्नति के बाद वे स्वतंत्र भारत के एकाउंटेंट जनरल बने।

3) पिता के तबादलों के कारण परिवार को अलग - अलग शहरों में जाना पड़ता था। जिससे इनकी स्कूली पढ़ाई में परेशानी होती थी।

4) चंद्रशेखर एक नामी परिवार से थे।

5) उनकी मां सीतालक्ष्मी प्रसिद्ध वैज्ञानिक और विज्ञान में नोबल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय सी. वी. रमन की छोटी बहन थी।

6) चंद्रशेखर के छोटे भाई पंचरत्नम (पंचरत्नम फेज के लिए प्रख्यात) का कम उम्र में ही देहांत हो गया था।

7) चंद्रशेखर के बड़े भाई प्रोफेसर एस. रामाशेषन भी एक बहुत प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे।

शिक्षा

1) 1951 में चंद्रशेखर एमएससी की परीक्षा में नागपुर में यूनिवर्सिटी में प्रथम आए। उन्होंने दो स्वर्ण पदक जीते और वहीं से पीएचडी की।

2) उसके बाद चंद्रशेखर बैंगलोर आये और वहां उन्होंने नयी खुली रमन रीसर्च इंस्टीट्यूट में काम शुरू किया।

3) वो अपने मामा सी. वी. रमन के पहले शोध छात्र थे।

4) विवाह के बाद चंद्रा को वजीफा मिला और वो इंग्लैंड की प्रख्यात कैविन्डिश लैबोरेट्री के शोध करने चले गए।

5) वहां उन्होंने एक्स - रे प्रकीर्णन (स्कैटरिन्ग ) में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से दूसरी डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की।

विवाह

एक दिन चंद्रा की भेंट बड़े भाई प्रोफेसर रामाशेषन के घर पर अपनी होने वाली पत्नी इला के साथ हुई। चंद्रा को उस समय छोटी सी रीसर्च ग्रांट मिलती थी।


उसमें से पैसे बचाकर उन्होंने एक मोटर साइकिल खरीदी। अपनी मोटर साइकिल पर इला को बैठाकर जब चंद्रा सैर को जाते तो वहां के रूढ़िवादी समाज में काफी हलचल रहती।

एक दुर्घटना में चंद्रा को सिर में चोट लगी जिसके कारण वह जिंदगी भर पीड़ित रहे।

क्योंकि चंद्रा और इला भिन्न भौगोलिक इलाकों से थे और अलग अलग भाषाएं बोलते थे, इसीलिए विवाह से पहले कुछ समस्याएं आयी ,लेकिन जल्द ही उनका हल निकल गया।

पुरस्कार

चंद्रशेखर को भारत की तीनों अकादमियों ने अपना सदस्य बनाया।

1) 1993 में उन्हें रॉयल सोसायटी, इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स ( लंदन ) और थर्ड वर्ल्ड एकेदमी ऑफ साइंसेज  की फेलोशिप प्रदान की।

2) 1990 - 1992 में वो इंटरनेशनल लिक्विड क्रिस्टल सोसायटी के अध्यक्ष बने और इस संस्था की पत्रिका माॅलिक्यूलर क्रिस्टल और लिक्विड क्रिस्टल को वो दशकों से ज्यादा तक संपादित करते रहे।

उन्हें कई पुरस्कार मिले -

(1) उन्हें शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार  1972 में
(2) होमी भाभा 1987 

(3) इंसा का मेघनाथ साहा मेडल 1992

(4) रॉयल मेडल 1994

(5) यूनेस्को का निल्स बोहर स्वर्ण पदक 1998

(6) भारत सरकार का पद्म भूषण सम्मान 1998

मृत्यु

7 मार्च 2004 को उनका देहांत हो गया।

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