भारतीय गणितज्ञ हरीश चंद्र

 हरीश चंद्र (1923 - 1983 )


हरीश चंद्र गणित की एक अनजानी शाखा के "रेप्रिजेंटेशनल थ्योरी " शोध किया, उन्हें एक बहुत महत्वपूर्ण शाखा में विकसित किया। यह शाखा सामयिक गणित के विकास के लिए केंद्रीय महत्व की है।

प्रारंभिक जीवन

हरीश चंद्र का जन्म 11 अक्टूबर ,1923 को कानपुर में हुआ। उनके दादाजी अजमेर में रेलवे के एक वरिष्ठ क्लर्क थे।

वो अपने बेटे चंद्र किशोर की शिक्षा के लिए उनके पिता ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपनी पेंशन आदि ले ली।

उसके बाद उन्होंने दोबारा रेलवे में नौकरी की उससे उनकी वरिष्ठता चली गई और उन्हें निचले स्तर की नौकरी करनी पड़ी।


हरीश के पिता चंद्र किशोर का दाखिला देश के सबसे अच्छे कॉलेज  " थॉमसन इंजीनियरिंग कॉलेज " रुड़की में हुआ।


ये भारत का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज था और लोकनिर्माण संस्था के लिए सिविल इंजीनियर तैयार करने लिए शुरू किया गया था।


चंद्र किशोर धीरे - धीरे काफी ऊंचे पद पर पहुंच गए और अंत में उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग के चीफ इंजीनियर के रूप में रिटायर हुए।


अक्सर हरीश अपने पिता के साथ दूर दराज बनी नहरों को देखने जाया करते थे।


हरीश की मां सत्यगति सेठ एक जमींदार परिवार की थी। उनके परिवार में 1957 के विद्रोह के समय झांसी की रानी को अपने घर में पनाह दी थी। आभार के रूप में झांसी की रानी ने उन्हें अपनी तलवार भेंट में दी थी।


हरीश ने अपने बचपन का ज्यादातर समय अपने नाना के घर पर बिताया।

हरीश पढ़ाई में काफी तेज थे पर वे काफी बीमार भी रहते थे। वो शारीरिक तौर पर काफी कमजोर थे इसलिए उनकी कक्षा के लड़के उनका काफी मजाक भी उड़ाते थे।


नाना के घर में हरीश की रुचि शास्त्रीय संगीत में जगी। हरीश के बड़े भाई इंडियन सिविल सर्विस (आईसीएस) में नौकरी की और वो स्वतंत्र भारत के चोटी के नौकरशाह बने।

शिक्षा और विवाह

हरीश ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा कानपुर में पूरी की। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से " एचएससी " की जहां उनके परीक्षक सी. वी. रमन थे।


इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में के. एस. कृष्णन ने हरीश के नाम की सिफारिश की। इससे हरीश, इंडियन इस्टिट्यूट ऑफ साइंस, बंगलौर में होमी जहांगीर भाभा
के मार्गदर्शन में काम करने गए।


उस समय वहां सी. वी. रमन की शोहरत बुलंदी पर थी। इसलिए हरीश ने गणित की बजाए फिजिक्स ही पढ़ना ठीक समझा।


इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में हरीश को श्रीमती काले फ्रेंच सिखाती थी। वो इस बीच आईआईएससी की लाइब्रेरीयन बन गई थी। इसीलिए हरीश बंगलौर में उन्हीं के साथ रहे। बाद में हरीश का विवाह श्रीमती काले की बेटी ललिता से हो गया।


भाभा ने हरीश की प्रतिभा पहचानी और उन्हें डिराक के साथ काम करने के लिए भेजा। 

1945 में केंब्रिज यूनिवर्सिटी में डिराक के साथ काम करते समय हरीश अपनी सही रुचि समझी और फिजिक्स छोड़कर  गणित में शोधकर्ता शुरू किया।


केंब्रिज के दौरान उन्होंने वाॅल्फगैंग पाॅली के लेक्चर सुने और उनमें पाॅली की एक गलती सुझाई। उसके बाद पाॅली और हरीश जीवन भर के लिए पक्के दोस्त हो गए।


1947 में हरीश को पीएचडी मिली। उनकी थीसिस का विषय था -  "इंफाइनाइट इर्रिडयूसेबिल रिप्रेजेंटेशन ऑफ द लारेंजट ग्रुप। "

कार्य

उसी साल हरीश अमेरिका चले गए। इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज , "प्रिंसटन " हरीश ने वे काम किए। जिनकी लोग तारीफ तो कर सकते थे पर उस पर अमल नहीं।

जब डिराक "प्रिंसटन " आये तब हरीश ने उनके सहायक जैसे काम किया।


हरीश दो गणितज्ञों से बहुत प्रभावित थे - हरमन वाइल और क्लॉड चिवाली


उन्होंने  1950 - 1963 तक 13 वर्ष कोलंबिया यूनिवर्सिटी में गंभीर तर्क के सहारे गणित में शोध कार्य किया। हरीश ने गणितज्ञ अरमांड बोराल के साथ मिलकर अर्थमैटिक ग्रुप की थ्योरी रची।


1968 - 1983  मृत्यु होने तक वे इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस "प्रिंसटन " के गणित विभाग के आईबीएम के वॉन नौयमैन प्रोफेसर रहे।


भारत और इंग्लैंड के अंतिम सालों में हरीश रिलेटिविस्टक फिल्ड थ्योरी में व्यस्त रहे। उनके कार्य का उल्लेख कई शोध पत्रिकाओं ने किया।


मृत्यु

हरीश चंद्र की मृत्यु 1983 में दिल का दौरा पड़ने से हुई। उस समय प्रिंसटन में गणितज्ञ अरमांड बौरेल की 60 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक समारोह चल रहा था।

हरीश की दो बेटियां प्रेमला और देविका थी।

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