भारतीय वैज्ञानिक, जिन्होंने 11 वर्ष की उम्र में ही 10 वीं की परीक्षा पास की !

 चन्द्रशेखर वेंकट रमन (1888 - 1970)



प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

1) चन्द्रशेखर वेंकट रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 को तमिलनाडु के शहर तितुचापल्ली में हुआ था।


2) उनके पिता भौतिकी और गणित के व्याख्याता थे।

3) रमन की प्रारंभिक शिक्षा विशाखापट्नम में हुई। उन्होंने 11 वर्ष की उम्र में ही 10 वीं की परीक्षा पास कर ली।


4) 1902 में रमन ने प्रेसीडेंस कॉलेज में दाखिला लिया और वहां से 1904 में बीए पास किया।

इस परीक्षा में उनका पहला स्थान था और उन्होंने भौतिकी का स्वर्ण पदक भी जीता था।


5) 1907 में एमए की परीक्षा में वो सर्वश्रेष्ठ छात्र घोषित किए गए।


6) मद्रास के एक सर्जन ने उनकी जांच की, तो उन्हें इंग्लैंड जाने से मना किया।


उस सर्जन ने कहा कि " इनका शरीर वहां के कड़े मौसम को बर्दास्त नहीं कर पाएगा।"


7) रमन ने वित्त विभाग में शासकीय नौकरी कर ली। नौकरी करते हुए उन्होंने घर में ही एक छोटी सी प्रयोगशाला बनायी और वहीं प्रयोग करते रहे।


8) एक दिन काम से लौटते समय उन्हें एक साईनबोर्ड दिखायी दिया जिसपर " इंडियन एसोसिएशन फॉर कॉल्टिवेशन ऑफ साइंस " (आईएसीएस ) लिखा था।


इस संस्था के संस्थापना महेंद्र लाल ने 1879 में किया था। इसका उद्देश्य भारतीय विज्ञान को प्रोत्साहित करना था। उस समय इस संस्था का कार्य भार उनके बेटे अमृतलाल संभालते थे।

रमन हर शाम अपने दफ्तर से लौटकर वहां की प्रयोगशाला में काम करने लगे।


9) जल्द ही वो उच्च कोटि के वैज्ञानिक शोधपत्र लिखने लगे, जिसने उनकी ओर विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षित हुआ।


10) 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति सर आशुतोष मुखर्जी ने रमन को तारकनाथ पालित चेयर स्वीकार करने का निमंत्रण दिया।


11) साल 1932 में सी. वी. रमन और सूरी भगवंतम ने "क्वांटम फोटोन स्पिन " की खोज की। इस खोज से प्रकाश की क्वांटम प्रकृति के सिद्धांत को एक और प्रमाण मिला।  


विवाह

उनके रिश्तेदारों के घर उनकी भेंट 13 वर्षीय लोकसुंदरी से हुई और उन्हें वे बहुत पसंद आयी। उन्होंने अपने विवाह की बात खुद ही की। 



जब वे अपनी पत्नि से मिले तब वे कर्नाटक गीत गा रही थी जिसके बोल थे -

हे राम , तुम्हारा साथी भला कौन है ?

मृत्यु

रमन ने 1970 तक अपना वैज्ञानिक शोधकर्ता जारी रखा। हमेशा की तरह उन्होंने 2 अक्टूबर 1970 को "रमन रिसर्च इस्टिट्यूट " में महात्मा गांधी स्मृति व्याख्यान दिया। 

उसके बाद वो बीमार पड़ गए और 21 नवंबर को उनका देहांत हो गया।


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