भारतीय, स्त्रीरोग विशेषज्ञ और स्टिच ( टांको ) के आविष्कारक शिरोडकर !
विट्ठल नागेश शिरोडकर ( 1899 - 1971 )
प्रारंभिक जीवन
विट्ठल नागेश शिरोडकर जन्म 27 अप्रैल, 1899 में गोवा के शिरोदा नाम के गांव में हुआ। उनका पारिवारिक नाम शिरोडकर उनके गांव के नाम पर ही पड़ा।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुबली में हुई उसके बाद उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई ग्रांट मेडिकल कॉलेज , बम्बई में पूरी की।
1923 में उन्हें एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त हुई। उन्होंने स्त्रीरोग विज्ञान (गाइनोकोलॉजी) में 1927 में एमडी की डिग्री हासिल की ।
उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वो इंग्लैंड गये। पश्चिम देशों में चिकित्सा पद्धतियों के परिचय से उन्हें बहुत लाभ हुआ। यहां उन्होंने नवीनतम सर्जरी की प्रणालियां सीखी और अनेकों प्रसिद्ध डॉक्टरों से भी मिले।
1931 में एफआरसीएस ( इंग्लैंड ) की उपाधि मिलने के बाद वो भारत लौटे और बम्बई के जे. जे. अस्पताल में स्त्री रोग विज्ञान के प्रोफेसर की हैसियत से काम करने लगे।
1940 में ग्रांट मेडिकल अस्पताल के स्त्रीरोग विभाग में शिरोडकर ने प्रोफेसर के पद पर काम शुरू किया। 1941 में वे नौरोसजी वाडिया मैटरनिटी अस्पताल के साथ जुड़े।
वो कंबाला हिल स्थित अपनी क्लीनिक में रोजाना 14 से 16 घंटे काम करते थे।
जल्द ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई और उन्हें देश विदेश में जगह - जगह लेक्चर देने के लिए बुलाया जाने लगा। वो उन पहले लोगों में से थे जिन्होंने अपने किए ऑपरेशनों की फिल्में बनायी।
एक अनुमान के अनुसार शिरोडकर को दुनिया में सबसे अधिक " टयूबोक्टमी " के ऑपरेशन करने का रिकॉर्ड हासिल है।
स्वैच्छिक गर्भपात
1950 के दशक में दूसरे तिमाही में गर्भवती स्त्री द्वारा स्वैच्छिक गर्भपात की बात एक रहस्य था। उसके लिए तमाम इलाज सुझाए गए, पर कारगर साबित नहीं हुआ।
प्रोफेसर शिरोडकर वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस समस्या का पूर्ण रूप से अध्ययन किया। उन्होंने स्त्रियों की जनेंद्रियों का गर्भ से पहले और बाद के अध्ययन किया और उनमें आये बदलाव को समझा।
बार - बार स्वैच्छिक गर्भपात की समस्या के हल के लिए शिरोडकर ने एक ऑपरेशन सुझाया।
1955 में डॉक्टर शिरोडकर ने " सर्विकल सर्कलेज " सर्जरी का उल्लेख किया। शिरोडकर ने इस ऑपरेशन के लिए कई विशेष प्रकार के उपकरणों का आविष्कार भी किया।
समय के साथ - साथ इस सर्जरी में काफी सुधार आएं। लेकिन उनका सुझाया ऑपरेशन आज भी एक मास्टर पीस है।
उन्होंने 1951 में पैरेस में सबसे पहले इस ऑपरेशन का , एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का जिक्र किया।
1956 में निपल्स , इटली के एक कॉन्फ्रेंस में शिरोडकर ने इसके बारे में विस्तार से बताया। उसी दौरान एक प्रसिद्ध हॉलीवुड अभिनेत्री का ऑपरेशन इसी तकनीक से हुआ।
शिरोडकर का तरीका हर प्रकार के गर्भपात का रामबाण इलाज नहीं था, इससे वे खुद वाकिफ थे। किन परिस्थितियों में ऑपरेशन सफल होगा और किसमें नहीं ,इसकी पूरी व्याख्या शिरोडकर ने खुद की थी।
1951 में फ्रेंच सोसायटी ऑफ गाइनोकोलॉजिस्ट के रजत जयंती समारोह के उपलक्ष में डॉ. शिरोडकर ने अपने ऑपरेशन की एक फिल्म दिखायी। इसमें उन्होंने " कैटगट" का उपयोग किया था।
लेकिन घुलनशील होने के कारण उन्हें इसका इस्तेमाल त्यागना पड़ा। उन्होंने अपनी ही तकनीक में बदलाव कर जांघ से " फैसिया लाटा " और " लिनिन " के टांकों का उपयोग कर स्वैच्छिक और आदतन गर्भपातों का इलाज किया।
यह ऑपरेशन आज दुनिया भर में शिरोडकर ऑपरेशन के नाम से जाना जाता है।
कार्य
1) शिरोडकर ने मेडिकल शोधग्रंथों में बहुत से शोध पत्र भी लिखे।
2) 1960 में अपने अनुभवों पर आधारित उन्होंने " कांट्रिब्यूशन्स टू ऑब्सटेटट्रिक्स एंड गायनोकोलॉजी " पर एक शोधपत्र लिखा।
3) 1963 और 1970 में माइग्स और स्टरगिस द्वारा संपादित " प्रोग्रेस इन गायनोकोलॉजी " के खण्ड 4 और 5 के लिए उन्होंने " इनकम्पीटेंट सर्वेक्स " पर एक - एक अध्याय लिखा।
जनेन्द्रियों के भ्रंश ( जेनायटल प्रोलैप्स ) पर उन्होंने अपने विचार 1971 में मारकस और मारकस द्वारा संपादित खण्ड " एडवासिंस इन ऑब्सटेटट्रिक्स एंड गायनोकोलॉजी " में लिखे।
उन्होंने गर्भ निरोध के लिए सरवेक्स पर एक हुड लगाने का सुझाव भी दिया।
मृत्यु
7 मार्च 1971 को विट्ठल नागेश शिरोडकर का निधन बम्बई में हो गया।
1971 में भारत सरकार ने प्रोफेसर शिरोडकर को पद्मविभूषण से सम्मानित किया।
वो गर्भपात के विषय पर भारत सरकार द्वारा गठित शांतिलाल कमेटी के सदस्य थे और फैमिली प्लैनिंग के भी सदस्य थे।
शिरोडकर मेमोरियल
1) सन् 1976 में शिरोडकर के बेटे मनोहर और उनकी पत्नि ने "डॉ वी एन शिरोडकर मेमोरियल रिसर्च फाउंडेशन " की स्थापना की जिसमें यह संस्था गरीब महिलाओं में कैंसर रोग की जांच करती है और उसके इलाज के लिए नए और सस्ते रास्ते खोजती है।




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