भारतीय वैज्ञानिक रूचि राम साहनी भाग - 1
रूचि राम साहनी ( 1863 - 1948 )
प्रारंभिक जीवन
रूचि राम साहनी का जन्म 5 अप्रैल , 1863 को डेरा इस्माइल खान नाम के एक छोटे शहर में हुआ था। यह शहर अब पाकिस्तान में है।5 - 6 साल की उम्र में उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए एक दुकान में भेज दिया गया।
कई जहाजों के सिंधु नदी में डूब जाने के कारण उनके पिता का तबाह हो गया।
शिक्षा और नौकरियां
रूचि राम का दाखिला चर्च के मिशन स्कूल में करा दिया गया। स्कूल के तीन छात्रों द्वारा ईसाई धर्म अपनाने के बाद स्कूल बंद हो गया।
फिर मंडी में बिके अनाज के पैसों के दान से एक सामूहिक स्कूल शुरू किया।
15 साल की उम्र में रूचि राम ने मिडिल स्कूल परीक्षा में सर्वप्रथम उत्तीर्ण हुए और उन्होंने झंग स्थित हाई स्कूल में दाखिला लिया। कुछ ही दिनों बाद उनके पिताजी की तबीयत बिगड़ी जिससे उन्हें वापस आना पड़ा।
250 किलोमीटर की यह यात्रा उन्होंने बैलगाड़ी, नाव , ऊंटगाड़ी और फिर पैदल तय की।
1879 में उनके पिता का देहांत हो गया। परिवार पर आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी ,फिर भी रूचि राम ने अपनी पढ़ाई जारी रखी।
1884 में रूचि राम ने गवरमेंट कॉलेज लाहौर में बी. ए. की परीक्षा युनिवर्सिटी में प्रथम स्थान प्राप्त करके पास की।
आर्थिक कारणों के चलते रूचि राम ने कलकत्ते के मौसम विभाग में नौकरी की। प्रोफेसर ओमन ने उन्हें नौकरी के साथ - साथ " कलकत्ते " के प्रेसिडेंसी कॉलेज से एम. ए. की डिग्री हासिल करने की सलाह दी।
कुछ समय बाद रूचि राम का तबादला मौसम विभाग के मुख्यालय शिमला में हुआ। यहां वे दैनिक और मासिक मौसम रिपोर्ट बनाते थे।
एक बार उन्होंने बंगाल की खाड़ी में आने वाले तूफान की भविष्यवाणी की और बहुत से जहाजों को नष्ट होने से बचाया।
1887 में साहनी ने गवरर्मेंट कॉलेज लाहौर में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर विज्ञान पढ़ाना शुरू किया।
बाद में वो केमिस्ट्री डिपार्टमेंट के अध्यक्ष बने। वो अपने लेक्चर्स को विज्ञान के मॉडल और प्रयोगों द्वारा लोकप्रिय बनाते है।
एक ब्रिटिश प्रोफेसर साहनी की लोकप्रियता से जलते थे और उन्होंने रूचि राम को काफी परेशान किया।
अंत में साहनी ने नौकरी छोड़ दी और केमिकल बनाने की फैक्ट्री शुरू की ,जो जल्द ही बंद करनी पड़ी।
साहनी और रदरफोर्ड
1914 में साहनी डॉ. फाजन्स के साथ " रेडियो धर्मिता " के उभरते क्षेत्र में शोध करने के लिए जर्मनी गए। लेकिन वहां पहुंचने के तुरन्त बाद प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया और उन्हें इंग्लैंड भागना पड़ा।
इंग्लैंड में साहनी को प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री लॉर्ड रदरफोर्ड और निल्स बोहर के साथ काम करने का मौका मिला।
उन्होंने रदरफोर्ड के साथ संयुक्त रूप से अल्फा कणों के स्कैटरिंग पर दो शोधपत्र लिखे। युद्ध की वजह से इंग्लैंड में भी स्थिति खराब होने के कारण उन्हें जल्द ही भारत वापस लौटना पड़ा।
लौटने के बाद साहनी ने पंजाब साइंस इंस्टीट्यूट (पी एन आई) के मुख्य सचिव का पद संभाला। इस संस्था की स्थापना प्रोफेसर ओमन ने की थी। इस संस्था का उद्देश्य पूरे पंजाब में विज्ञान का प्रचार प्रसार - लोकप्रिय भाषणों, प्रयोगों ,और लालटेन के स्लाइडस द्वारा करना था।
भारत में बने उपकरण
स्कूल और कॉलेजों में प्रयोगशाला का अभाव था और उस जमाने में सभी उपकरण विदेशों से आयात किए जाते थे। 1888 में उन्होंने अपने ही घर में विज्ञान उपकरण बनाने की एक वर्कशॉप स्थापित की।
उसके लिए उन्होंने रेलवे के एक तकनिशियन अल्ला बख्श को नियुक्त किया। यहां बने विज्ञान के उपकरणों को स्कूलों में या तो मुफ्त में या फिर लागत कीमत में दे दिया जाता था। जिससे कि छात्रों और शिक्षकों में विज्ञान के प्रयोग करने की प्रवृत्ति बढ़े।
बाद में इस वर्कशॉप में एक खराद - मशीन (लेथ) लगी और धीरे - धीरे उसकी ख्याति उच्च कोटि के वैज्ञानिक उपकरण निर्माता के रूप में फैली।
1906 में कलकत्ता में लगी एक औद्योगिक प्रदर्शनी में इन विज्ञान के मॉडल्स को स्वर्ण पदक मिला। प्रतियोगिता के जजों की टीम में प्रोफेसर जगदीश चंद्र बोस भी थे।
वैज्ञानिक उपकरणों की प्रदर्शनी
1983 में प्रोफेसर साहनी को सामाजिक कार्यकर्ता नामजोशी ने एक कॉन्फ्रेंस के लिए पुना बुलाया। साहनी ने इस मौके पर अपने द्वारा बनाए सभी वैज्ञानिक उपकरणों की प्रदर्शनी लगाई।
तीन लोगों की एक उच्च स्तरीय समिति को इस प्रदर्शनी पर अपनी सिफारिशें पेश करने को कहा गया।
ये सारे उपकरण लाहौर या भारत में बने है। इस बात पर सदस्यों को यकीन ही नहीं हुआ।
उन्हें उपकरण इंग्लैंड निर्मित लगे। समिति को लगा की (पी एस आई) बाद में उस पर भारतीय वारनिश पोतकर उन्हें मेड इन इंडिया जैसा रूप दिया है। समिति को यह विश्वास ही नहीं हुआ कि इतने बढ़िया वैज्ञानिक उपकरण भारत में आधे दाम पर बनाए जा सकते थे।
1918 में साहनी गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर में कैमेस्ट्री के वरिष्ठ प्रोफेसर के पद से रिटायर हुए।
तभी उनका संपर्क महात्मा गांधी से हुआ और उसके बाद वो सक्रिय रूप से राष्ट्रीय आंदोलन में जुड़े। वो लाहौर से प्रकाशित होने वाले अखबार ट्रब्यून के ट्रस्टी थे। वो दयाल सिंह कॉलेज और लायब्रेरी के भी संस्थापक थे।
परिवार में भी थे कई विशेषज्ञ
रूचि राम साहनी के तीन बेटे और पांच बेटियां थी। उनके पुत्र बीरबल साहनी प्रसिद्ध जीवाश्म विशेषज्ञ थे और एफ आर एस से नवाजे जाने वाले पहले भारतीय वनस्पतिशास्त्री थे।
अपनी आत्म कथा सेल्फ रेवेलेशन्स ऑफ एन ऑक्टोजिनेरियन में रूचि राम ने अपने जीवन के संघर्षों का विस्तृत वर्णन किया है।
उनके पोते प्रोफेसर अशोक साहनी , पंजाब विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग में प्रसिद्ध भू - वैज्ञानिक थे।
उनकी पोती प्रोफेसर मोहिनी मलिक ने आईआईटी कानपुर में छात्रों की कई पीढ़ियों को तर्कशास्त्र के नुस्खे सिखाएं।




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