भारत की पहली महिला मानवशास्त्री और पुणे में स्कूटर चलाने वाली पहली महिला
इरावती कर्वे (1905 - 1970)
प्रारम्भिक जीवन
इरावती का जन्म 15 दिसंबर 1905 को हुआ था। उनके पिता का नाम गणेश करमरकर था। वे "बर्मा" में काम करते थे।इनका नाम "बर्मा" की प्रसिद्ध नदी इरावती के नाम पर रखा गया था।
शिक्षा
इरावती को हुजूर पागा बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा गया।
स्कूल में उनकी एक सहेली थी, शकुंतला परांजपे जो - फरग्युसन कॉलेज के प्रिंसिपल रैंगलर परांजपे की बेटी थी। शकुंतला की मां को इरावती पहली नजर में ही भा गई और उन्होंने इरावती को अपनी दूसरी बेटी जैसी पाला।
अपने नए घर में इरावती को बहुत ही बौद्धिक माहौल मिला और बहुत सारी आकर्षक पुस्तकें पढ़ने को मिली।
इरावती ने "फरग्युसन कॉलेज " में दर्शनशास्त्र का अध्ययन कर 1926 में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
फिर 1926 में मिली डिग्री से वो बंबई यूनिवर्सिटी में समाज विज्ञान के प्रमुख प्रोफेसर जी. एस. घुरये के मार्गदर्शन में काम कर पाई।
विवाह
इसी बीच इरावती का विवाह दिनकर धोंडो कर्वे से हुआ। दिनकर एक रसायन शास्त्री थे। उनके पिता प्रसिद्ध समाजसेवी महर्षि कर्वे थे। महर्षि कर्वे ने विधवाओं की शादी और महिलाओं की शिक्षा का बीड़ा उठाया था।
एक प्रगतिशील परिवार में विवाह के कुछ फायदे तो कुछ नुकसान हुई थे। वैसे तो महर्षि कर्वे महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे,पर यह नियम उनके निजी परिवार पर लागू नहीं होती थी।
उच्च शिक्षा
जब इरावती को उच्च शिक्षा के लिए जर्मनी जाने का मौका मिला तो महर्षि कर्वे ने उसका विरोध किया।
विरोध के बावजूद इरावती 1928 में जर्मनी की कैसर विल्हेल्म इंस्टीट्यूट फॉर एंथ्रोपालौजि में पीएचडी करने गयी।
उनके शोध का विषय था - " द नॉर्मल एसिमिटरी ऑफ द हयूमन स्कल ।"
पति का सहयोग
इरावती और दिनकर को लगा की समाजसेवा उनके बस की नहीं इसलिए उन्होंने अध्ययन और शोध के क्षेत्र को चुना।
दिनकर रसायन के प्राध्यापक थे। बाद में वे फरग्युसन कॉलेज के प्रिंसिपल बने।दिनकर ने इरावती की पूरी सहायता की।
दिनकर ने घर गृहस्थी की काफी जिम्मेदारी संभाली जिससे इरावती अपना शोध कार्य कर पायी।
इरावती के स्कूटर में तेल भरना और उनके पर्स में पैसे रखना भी दिनकर का ही काम था।
इरावती पुणे में स्कूटर चलाने वाली पहली महिला थी।
वह मांग में सिंदूर नहीं भरती और ना ही मंगलसूत्र पहनती थी।
किताब
स्कूल में उन्होंने संस्कृत सीखी जो उस समय के छात्रों के लिए अनिवार्य था।
इरावती के पिता ने उन्हें भंडारकर ओरियंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित " महाभारत के 18 " भेंट किए। जो इरावती को बहुत पसंद आया।
इसी महाभारत पर आधारित बाद में अपनी मौलिक कृति " युगांत " लिखी। इसे 1967 में साहित्य अकादमी मराठी की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक के रूप में पुरस्कृत किया।
इस पुस्तक में महाभारत के आदरणीय पात्रों और वीरों की तीखी समीक्षा की गई है।
कार्य
जर्मनी से वापस आने के बाद इरावती ने 1931 - 36 के बीच बंबई की एसएनडीटी यूनिवर्सिटी में रजिस्ट्रार पद पर काम किया।
1939 में इरावती ने डेक्कन कॉलेज में रीडर के पद पर समाजशास्त्र सिखाना शुरू किया और वही से रिटायर हुयी।
इरावती अपने एम.ए . के सुपरवाइजर प्रोफेसर जी. एस. घुरये के शोध से बहुत प्रभावित थी।
इरावती की पुरातत्व उत्खनन और अन्वेषण में विशेष रुचि थी।
इरावती ने कुल मिलाकर अंग्रेजी में 102 लेख और किताबें लिखीं। इरावती ने मराठी में भी 8 किताबें लिखीं।
उन्होंने भौतिक मानवशास्त्र और पुरातत्व विषयों पर काम किया और पाषाण युग के कंकालों का उत्खनन किया।
जाति व्यवस्था , लोकगीत, कहानियों और मौखिक परंपराओं को भी लिपिबद्ध किया।
साप्ताहिक बाजारों और बांध से उजड़े लोगों का उनके द्वारा किया सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण आज भी महत्वपूर्ण है।
कैलाश मल्होत्रा
बाद में इरावती के एक छात्र कैलाश मल्होत्रा ने धननगर और नंदीवाली - पशुपालन से जुड़ी दो जनजातियों का सर्वेक्षण कर मनुष्य द्वारा पर्यावरण पर पड़े प्रभाव को दिखाया।
मृत्यु
इरावती कर्वे की मृत्यु 11 अगस्त 1970 को पुणे में हुई थी।




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