भारतीय पर्यावरणविद अनिल अग्रवाल के द्वारा लिखी किताबें, लेख और पत्रिका
किताबें
1) अग्रवाल द्वारा लिखी किताब " द स्टेट ऑफ इंडियाज एन्वायरमेंट : ए सिटीजन्स रिपोर्ट के छपने पर उनकी गहरी सोच का मालूम पड़ता है।
इस रिपोर्ट को लिखने में उनकी सहायता पर्यावरण आंदोलनों से जुड़े तमाम सक्रिय कार्यकर्ताओं ने की।
इस किताब में भारतीय पर्यावरण के उपयोग और दुरुपयोग का पहली बार गंभीरता से आंकलन किया गया था। पुस्तक में ईमानदारी और आकर्षक तरीके से भारत के ढलते पर्यावरण की असलियत को दर्ज किया गया था।
इस किताब को बहुत सराहा गया और दुनिया की सैकड़ों गंभीर पत्र - पत्रिकाओं में उनकी समीक्षाएं छपी।
2) अपनी किताब " द पॉलिटिक्स ऑफ एन्वायरमेंट " में अग्रवाल ने जल और जमीन जैसे साधनों के समुचित दोहन के लिए संपूर्ण (हॉलिस्टिक) प्रबंध की अपील की।
3) " टुवर्ड्स ग्रीन विलेजेस " में अग्रवाल ने विकेंद्रित ग्रामीण समुदाय के द्वारा संसाधनों के नियंत्रण की पेशकश की।
लोगों की सक्रिय भागीदारी से ही पर्यावरण सुधरेगा और ग्रामीण विकास होगा सीएसई ने इसके सबूत में देश में चल रहे कई सक्रिय पर्यावरण आंदोलनों - हरियाणा में सुखोमाजरी, महाराष्ट्र में रालेगंज सिद्ध और राजस्थान में तरुण भारत संघ के अनुभवों को दर्ज किया इन आंदोलनों ने जल - जमीन के मुद्दों पर समग्र रूप से काम किया था।
पत्रिका
1) अनिल अग्रवाल ने पर्यावरण के मुद्दे पर एक पाक्षिक पत्रिका " डाउन टू अर्थ " की शुरुआत की।
2) इसमें " गोबर टाइम्स " नामक एक बहुत सुंदर बच्चों के लिए छोटी पत्रिका भी होती थी।
लेख
1989 में अनिल अग्रवाल ने " ग्लोबल वार्मिग इन अनइक्वल वर्ल्ड " पर एक लेख लिखा।
उसमें उन्होंने दिखाया को गरीबों की आजीविका से जुड़े उत्सर्जन (एमिशंस) धनी देशों की विलासता मिलिट्री औद्योगिक कॉम्प्लेक्स से निकली जहरीली गैसों से बिल्कुल भिन्न है।
पश्चिम के मुल्कों ने हमेशा प्रदूषण कर्ताओं को पुरस्कार दिया है और उसके मुक्तभोगियों को सजा दी है। पश्चिमी देश हमेशा भारत और चीन जैसे विकासशील देशों को ग्लोबल वार्मिग के लिए दोषी ठहराते है और उन्हें अपना घर साफ करने की हिदायत दी
अग्रवाल ने पर्यावरर्णीय औपनिवेशिकवाद करार दिया और पश्चिमी देशों से ग्रीनहाउस गैसों की जिम्मेदारी को स्वीकार करने का आग्रह किया।
महानगरों और वायुमंडल द्वारा सोखी गई ग्रीनहाउस गैसों को कार्बन - सिंक कहते है। कार्बन - सिंक को वर्तमान में देशों द्वारा छोड़ी ग्रीनहाउस गैसों के अनुपात को बांटना सही नहीं है।
अग्रवाल के अनुसार न्यायपूर्ण पद्धति में दुनिया के हर इंसान को कार्बन - सिंक में बराबरी का हिस्सा मिलना चाहिए।


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