भारतीय वैज्ञानिक , जिन्होंने माॅरकोनी से पहले ही रेडियो की खोज की !
जगदीश चन्द्र बोस ( 1858 - 1937 )
1895 में माॅरकोनी ने "वाॅयरलेस " के माध्यम से एक संदेश भेजा और उसे 1 मील दूरी पर रिसीवर द्वारा पकड़ा गया।
इससे 2 साल पहले के प्रेसीडेंसी कॉलेज के जगदीश चन्द्र बोस ने लगभग इसी वैज्ञानिक प्रयोग को जनता के बीच दिखाया था।
उन्होंने वायरलेस की मदद से 1 मील दूर स्थित घंटी बजाई थी। बोस ने रेडियो तरंगों और पौधों के वैज्ञानिक क्षेत्रों में मौलिक योगदान दिया। पौधों की संवेदनशीलता का उन्हें गहरा ज्ञान था।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जगदीश चन्द्र बोस का जन्म 30 नवंबर 1858 को " मैमन सिंह" , बांग्लादेश में हुआ था। उनके पिता भगवान चन्द्र बोस सरकारी अधिकारी थे। उन्हें अपनी मातृ भाषा बांग्ला और गरीब लोगों से बेहद लगाव था।
बचपन में जगदीश चन्द्र बोस एक बांग्ला माध्यम के स्थानीय विद्यालय में पढ़े।
1857 में उन्होंने कलकत्ते के सेंट जेवियर्स स्कूल में दाखिला लिया। स्कूल में वे अपने जेब खर्च के सारे पैसे पौधों और पालतू जानवरों पर लूटा देते।
1879 में उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज से विज्ञान की डिग्री प्राप्त की।
यहां उनकी भेंट भौतिकी के शिक्षक फादर लाफौंट से हुई। जगदीश इंग्लैंड जाकर इंडियन सिविल सर्विस की
परीक्षा देना चाहते थे परन्तु उनके पिता को यह बात पसंद नहीं थी कि उनका बेटा अंग्रेजो की नौकरी करे।
जगदीश डॉक्टरी सीखे इस बात पर उनके पिता राजी हो गए क्योंकि उनको लगा की डॉक्टर बनकर वो गरीबों की सेवा कर पाएंगे।
1880 में जगदीश इंग्लैंड गए , जहां पर वो जल्द ही बीमार पड़ गए।
बहुत उपचार के बाद भी उनकी काली अजार की बीमारी ठीक नहीं हुई। मेडिकल पढ़ाई के दौरान चीर फाड़ के कमरे की तेज गंध से उनकी बीमारी बढ़ने का डर था। इसलिए जगदीश को डॉक्टरी की पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
बाद में उन्हें केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के "क्राइस्ट चर्च कॉलेज " में प्राकृतिक विज्ञान सीखने के लिए दाखिला लिया। यहां उनके शिक्षक प्रसिद्ध वैज्ञानिक लॉर्ड रैले थे। जगदीश की अपने शिक्षक के साथ गहरी मित्रता हो गई।
कार्य
1885 में " जगदीश चन्द्र बोस " के भारत लौटने के बाद उनकी प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति हो गई।
परंतु यहां पर उनके साथ भेदभाव होता था। यहां अंग्रेजो के मुकाबले में भारतीयों को दो तिहाई ही तनख्वाह मिलती थी।
बोस ने इस भेदभाव का एक अनूठे तरीके का विरोध किया। उन्होंने तीन महीने तक पूरी निष्ठा से,बिना तनख्वाह के काम किया।
1887 में बोस का विवाह अबला से हो गया। फिर भी वो बिना तनख्वाह के काम करते रहे।
इससे कॉलेज प्रशासन कुछ नरम पड़ा और उन्हें पूरे काल की तनख्वाह दी गई।
प्रेसीडेंसी कॉलेज में बोस की साख एक योग्य और लोकप्रिय शिक्षक के रूप में उभरी। उन्हें भौतिकी से बेहद लगाव था और उसका जादू वे छात्रों पर सरल प्रयोगों और मॉडलों से बुनते।
बाद में उनके कई छात्र प्रसिद्ध वैज्ञानिक बने। उनमें जाने मैने भौतिकशास्त्री सत्येन्द्र नाथ बोस भी थे।
उनके सम्मान में कुछ आण्विक कण बोसाॅन के नाम से जाने जाते है।
बॉथरूम की प्रयोगशाला
बोस द्वारा प्रेसीडेंसी कॉलेज में शोधकार्य करने के सभी प्रयासों पर अंग्रेजों ने अंकुश लगा दिया।
अंत में तंग आकर बोस ने भौतिकी विभाग के गुसलखाने (बॉथरूम) में एक छोटी सी प्रयोगशाला बनाई।
यहां कम लागत के उपकरणों और यंत्रों से उन्होंने " जेनेरेशन, प्रसारण , अपवर्तक ,विवर्तक , पोलरआईजेशन और विद्युत चुम्बकीय तरंगों " पर शोध शुरू किया।
आविष्कार
आज प्रचलित माइक्रोवेव उपकरणों के कई कल पुर्जों वेवगाॅइड ,लेंस एंटेना,पोलराॅइजर , डाॅई - इलेक्ट्रिक लेन्स , प्रिज्म और डिफरैक्शन ग्रेटिंग्स की झलक हमें पहली बार उनके प्रयोगों में मिलती है।
इसमें से कई उपकरणों के वे खुद आविष्कारक थे। इनमें जुट का पोलाराईजम शामिल है। बोस डेरा गलिना में बनाए रिसीवर को 1904 में पेटेंट भी मिला।
कॉलेज में पढ़ाने के साथ बोस अपना शोध करते रहे। उन्होंने वायरलेस सिग्नलिंग की खोज में उल्लेखनीय प्रगति की।
बोस पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडियो संकेतों का पता लगाने के लिए सेमीकंडक्टर जंक्शनों का इस्तेमाल किया था।
रेडियो और सूक्ष्म तरंगों पर अध्ययन करने वाले बोस पहले भारतीय वैज्ञानिक थे।
बोस ने एक ऐसे यंत्र का निर्माण किया था, जिससे 5 मिलीमीटर से लेकर 25 मिलीमीटर तक के आकार वाली सूक्ष्म रेडियो तरंगें उत्पन्न की जा सकती थी।
नवंबर 1894 में बोस ने कलकत्ता के टाउन हॉल में अपनी रेडियो तरंगों का प्रदर्शन किया। आज का रिमोट कंट्रोल सिस्टम उनकी इसी धारणा पर आधारित हैं।
विदेशी वैज्ञानिक से तारीफ
1977 के नोबेल पुरस्कार विजेता और ट्रांजिस्टर के आविष्कारक प्रोफेसर ब्रिटन के अनुसार बोस वो पहले व्यक्ति थे। जिन्होंने सेमीकंडक्टर का उपयोग कर सबसे पहले रेडियो तरंगें पकड़ी।
1977 के एक अन्य नोबेल पुरस्कार विजेता नोविल माॅट के अनुसार बोस अपने अनुसंधान में दुनिया से 60 वर्ष आगे थे।
उन्होंने यहां तक कहा कि बोस को " एन - टाइप और पी - टाइप सेमीकंडक्टर " के मौजूद होने का पूर्वानुमान था।
बोस की रुचि वैज्ञानिक पक्ष में थी, धन कमाने में नहीं।
जगदीश चन्द्र बोस की रुचि घटनाओं के केवल वैज्ञानिक पक्ष में थी उसे पेटेंट कर उससे धन कमाने में नहीं।
जबकि उनके समकालीन माॅरकोनी की नजर उसके व्यावसायिक पक्ष पर थी।
माॅरकोनी ने तत्काल नए आविष्कार की संभावनाओं को पहचाना और वॉयरलैस उपकरण निर्माण कर उनसे खूब मुनाफा कमाया।
पौधों और जीवों के बीच समानता खोजी
जगदीश चन्द्र बोस एक शैक्षिक दौरे पर यूरोप गए , जहां उनकी भेट लॉर्ड केल्विन और फ्रिटजेरल्ड से हुई। यह लोग उस समय के अग्रणी वैज्ञानिक थे।
1857 के आस - पास बोस की रुचि में एकदम बदलाव आया। जो रिसीवर उन्होंने विकिरण ढूंढने के लिए बनाया था। वो कभी " तेज" और कभी " मंद " प्रदर्शन दिखाता था। इससे उनका कौतूहल जगा।
इसमें उन्हें मनुष्य जैसे ही " थकान " और " नई ऊर्जा " की समानता नज़र आई। उन्हें लगा जैसे रिसीवर भी आण्विक स्तर पर काम, थकान और पुनर्जीवन के चक्र से गुजर रहा हो।
इसके आधार पर बोस ने एक शोधपत्र लिखा " जीवन और अजीवन पदार्थों पर विद्युत का प्रभाव " । इस शोधपत्र पर लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया की।
इसके कई दशकों के बाद जब बायोफिजिक्स और साइबरनेटिक्स का उद्गम हुआ तो बोस की बात सही साबित हुई।
पौधों और जीवों के बीच समानता
बाद में बोस " पौधों और जीवों " के बीच समानता खोजने में जुट गए।
उन्होंने दिखाया की जीवों की तरह पौधों में भी स्नायु - तन्त्र होता है।
जीवों का स्नायु - तन्त्र किसी विद्युत धारा , ऊष्मा और रासायनिक उत्तेजना पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है।
क्योंकि विषय एकदम नया था इसलिए बोस ने खुद ही प्रयोग के लिए कई नए उपकरणों का डिजाइन और निर्माण भी किया।
उदाहरण के लिए -
पौधों की वृद्धि दर नापने का यंत्र -(क्रेसकोग्रफ )
इस उपकरण से पौधों पर रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रभावों को तेजी से नाप पाना संभव हो पाया।
पुरस्कार और उपाधियां
1915 में बोस अपनी शैक्षिक नौकरी से सेनानिवृत हुए। 1917 में उन्हें नाॅइटहुड के खिताफ से सुशोभित किया गया और वो सर जगदीश चन्द्र बोस बन गए।
उसी वर्ष अपने जन्म दिन वाले दिन बोस ने रिसर्च इस्टिट्यूट की स्थापना की। यह संस्था अंत: विषय (इंटरडिसिप्लीनेरी) अनुसंधान को समर्पित थी।
रविन्द्र नाथ ने इस संस्था का कुलगीत रचा था। 1920 में बोस रॉयल सोसायटी की फेलोशिप के लिए मनोनीत किया गया।
मृत्यु
23 नवंबर ,1937 को जगदीश चन्द्र बोस का देहांत हुआ। कुछ दिन बाद ही उनका 80 वां जन्मदिवस था।
बोस ने विज्ञान के प्रचार - प्रसार में आम लोगों के लिए ढेरों लेख लिखे। बोस के काल में राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन जोरों पर था। एक सच्चे राष्ट्रभक्त होने के नाते बोस उस समय राष्ट्रीय आंदोलन के अग्रणी नेताओं के बहुत समीप आए।







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