भारतीय वैज्ञानिक शिवरामाकृष्णन चंद्रशेखर के कार्य

कार्य




1) 1961 में भारत वापस लौटने के बाद वे मैसूर यूनिवर्सिटी के फिजिक्स विभाग के प्रमुख बने।


2) वहां फिजिक्स विभाग एक बियाबान जंगल में स्थित था। उस जमीन की मालकिन मैसूर की राजकुमारी लीलावती थी।


3) यहां पर चंद्रशेखर की रूचि लिक्विड क्रिस्टल में पैदा हुई। इससे पहले ये विज्ञान का एक उपेक्षित क्षेत्र था और बहुत कम वैज्ञानिक ही लिक्विड क्रिस्टल पदार्थों के बारे में कुछ जानते थे।


4) चंद्रशेखर ने बाद में इसके बारे में लिखा

 " उस समय इस विषय के बारे में मेरी जानकारी बहुत कम थी। मैं इसके बारे में थोड़ा बहुत जो कुछ जानता था वो जानकारी मैंने 10 साल पहले 1930 की छपी किताबों में पढ़ी थी। "


5) चंद्रशेखर ने अपने शोध कार्य से विज्ञान के इस क्षेत्र की तस्वीर बदली - वो उसे ठोस स्थिति से लिक्विड की ओर ले गए। 

6) ब्रिटेन की कैंब्रिज विश्वविद्यालय कॉलेज, लंदन में कुछ समय बिताने के बाद 1971 में चंद्रशेखर बैंगलौर की रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट में आए।


वहां उन्होंने अपने कुछ पुराने छात्रों की मदद से मिलकर लिक्विड क्रिस्टल लैबोरेट्री स्थापित की जिसकी प्रसिद्धि जल्द ही दूर - दूर तक फैली ।


7) चंद्रशेखर ने कई अन्तर्राष्ट्रीय समारोहों का आयोजन भी किया जिसमें से एक 1973 में आरआरआई की रजत जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया।

1990 में आरआरआई से रिटायर होने के बाद चंद्रशेखर ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा उपलब्ध करायी एक बिल्डिंग में सेंटर फॉर लिक्विड क्रिस्टल रिसर्च की शुरुआत की।

पुस्तक

1977 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय प्रेस ने चंद्रशेखर की पुस्तक लिक्विड क्रिस्टल प्रकाशित की। 



यह इस विषय पर अनुसंधान करने वाले किसी भी छात्र के लिए बाइबल के समान है। इस किताब का रूसी और जापानी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

इस पुस्तक का संशोधित और विस्तृत संस्करण 1992 में छपा।

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