क्या था " रमन प्रभाव " जिसके लिए रमन को नोबल पुरस्कार मिला ?
1921 में एक कॉन्फ्रेंस में भाग लेने के लिए रमन विदेश गए।
समुद्र के पानी को देखकर रमन के मन में कई प्रश्न आये ,जैसे -
सागर का पानी नीला क्यों होता है ?
क्या पानी आसमान के प्रतिबिंब के कारण नीला दिखता है ?
रमन को लगा की सागर का नीलापन पानी और सूरज का प्रकाश अंतर्संबंध के कारण है। रमन वहां एक स्पेक्ट्रोमीटर से प्रयोग कर रहे थे।
बाद में उन्होंने अलग - अलग माध्यमों में प्रकाश के बिखराव (प्रर्कीण) पर एक वैज्ञानिक शोधपत्र लिखा।
भारत लौटने के बाद रमन ने इस विषय पर गंभीरता से शोध करना शुरू किया। उन्होंने प्रकाश की किरणों को भिन्न - भिन्न तरलों से गुजारा और उसके प्रभाव का अध्ययन किया।
1928 में उन्होंने स्थापित किया कि जब एक रंग का प्रकाश कोई तरल से गुजरता है तो प्रकाश के कण और तरल के परमाणु एक दूसरे के साथ टकराते है और प्रकाश को बिखराते है।
तब बाहर निकलने वाली प्रकाश - किरण का रंग आने वाले प्रकाश किरण से भिन्न होता है। आने वाली किरण की अपेक्षा बाहर निकलने वाली किरण ऊंचे और नीचे स्तर की ऊर्जा की ओर सिफ्ट होती है।
यही वो प्रसिद्ध " रमन प्रभाव " है जिसके कारण रमन को बाद में नोबेल पुरस्कार मिला।
उनकी खोज से विश्व स्तर वैज्ञानिक शोध में तेजी आई। उनके शोध से अलग - अलग वस्तुओं के ढांचों के अध्ययन में बहुत मदद मिली।


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