भारतीय पर्यावरणविद अनिल अग्रवाल

 अनिल अग्रवाल ( 1947 - 2002 )


अनिल अग्रवाल  एक प्रमुख भारतीय पर्यावरणविद थे। उन्होंने पहली बार पर्यावरण की समस्या को गरीबों के नजरिए से देखा।

 

गरीबों की संख्या तेजी से बढ़ने के कारण उन पर पर्यावरण के नाश और तेजी से जंगलों की सफायी करने का आरोप लगाया जाता था।


उन्होंने इन अवधारणाओं को चुनौती  दी , उनके अनुसार गरीबों का स्वार्थ, जिम्मेदारी से पर्यावरण संरक्षण के साथ जुड़ा था।


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

1) अनिल अग्रवाल का जन्म 1947 में कानपुर के एक व्यापारिक परिवार में हुआ।


2) 1970 में उन्होंने आईआईटी कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की।


3) वे आईआईटी में छात्र संगठन के अध्यक्ष चुने गए थे।


4) पढ़ाई खत्म करने के बाद वो बाकी छात्रों की तरह अमेरिका नहीं गए और उन्होंने " हिंदुस्तान टाइम्स " नामक अखबार में विज्ञान संवाददाता जैसे काम किया।

जल्द ही लोग उनकी लेखन शैली का लोहा मानने लगे।


5) 1970 के मध्य में वे इंग्लैंड गए और वहां "पर्यावरण और "ओनली वन अर्थ" की लेखिका से संपर्क किया।


सीएसई

पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय अनुभव प्राप्त करने के बाद अग्रवाल 1980 को शुरुआत में दिल्ली वापस आए और वहां उन्होंने " सेंटर फॉर साइंस एंड  एन्वायरमेंट" (सीएसई ) स्थापित की।



सीएसई ने अक्सर बड़े - बड़े कॉरपोरेशन के लिए आवाज उठाई और सरकार को सही नियम कानून बनाने और उसे लागू करने के लिए बाध्य किया।


लोगों की सक्रिय भागीदारी से ही पर्यावरण सुधरेगा और ग्रामीण विकास होगा।


सीएसई ने इसके सबूत के तौर पर देश में चल रहे कई सक्रिय पर्यावरण आंदोलनों - हरियाणा में सुखोमाजरी, महाराष्ट्र में रालेगंज सिद्ध और राजस्थान में तरुण भारत संघ के अनुभवों को दर्ज किया इन आंदोलनों ने जल - जमीन के मुद्दों पर समग्र रूप से काम किया था।


राजीव गांधी

राजीव गांधी  ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने कैबिनेट के सदस्यों और वरिष्ठ नौकरशाहों के लिए अग्रवाल द्वारा विशेष बैठकें आयोजित की। इससे राजनेताओं में पर्यावरण और विकास के मुद्दों के प्रति एक सकारात्मक संजीदगी आयी।


अंत में रिपोर्ट सीएसई ने खुद तैयार की थी - जो सीएसई और पर्यावरण से जुड़े जमीनी आंदोलनों के बीच लुप्त होते संबंधो का प्रतीक था।


पुरस्कार

1) आईआईटी कानपुर ने उन्हें डिस्टिंग्युशिड एल्मुनस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।


2) 1987 में संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण कार्यक्रम ने उन्हें ग्लोबल 500 रोल ऑफ हॉनर में सम्मानित किया।


3) भारत सरकार ने पर्यावरण और विकास के उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।


मृत्यु

अनिल अग्रवाल काफी लंबे समय तक दमे से ग्रसित रहे और 1994 के बाद कैंसर से , जिसका असर केवल दिमाग और आंखों पर होता है।

अन्तिम क्षणों में अस्पताल के पलंग पर लेटे हुए भी वो अपने अभियान की योजना बनाते रहे।

2 जनवरी 2002 में 54 वर्ष की उम्र में देहरादून में उनका देहांत हो गया।


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