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Showing posts from September, 2020

भारतीय वैज्ञानिक शिशिर कुमार मित्रा !

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शिशिर कुमार मित्रा ( 1890 - 1963) शिशिर कुमार मित्रा  ने भारत में रेडियो विज्ञान की नीव रखी। उन्होंने (आयनोस्फीयर) पर भी बहुत शोधकार्य किया। प्रारंभिक जीवन 1)  शिशिर  का जन्म 24 अक्टूबर ,1889  में कलकत्ते  में हुआ। 2) उनके पिता जयकृष्ण  एक स्कूल शिक्षक थे और मां शरत कुमारी  डॉक्टर थी। 3)  शिशिर  के जन्म के समय उनकी मां कैम्पबेल मेडिकल स्कूल की छात्रा थी। 4) 1989  में  शरत कुमारी  को  लेडी डफरिन अस्पताल  में नौकरी मिली और  जयकृष्ण  को भागलपुर म्यूनिसिपैलिटी में क्लर्क  की नौकरी मिली। 5) 9 साल  के उम्र में उन्होंने एक गर्म हवा का गुब्बारा देखा। इसका उन पर गहरा प्रभाव पड़ा और उन्हें आगे विज्ञान पढ़ने की प्रेरणा मिली। शिक्षा  1) शिशिर  की प्रारंभिक शिक्षा भागलपुर  जिले स्कूल में हुई।  2) बाद में वो टी. एन. जे. कॉलेज  में पढ़े। 3) फाइन आर्ट्स एमए की परीक्षा के पहले उनके पिता का देहांत हो गया। 4)  शिशिर  की मां ने उन्हें कलकत्ते  के प्रेसीडेंसी कॉलेज  से बीएसस...

भारतीय वैज्ञानिक अशेष प्रसाद मित्रा के उल्लेखनीय कार्य !

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1) प्रोफेसर अशेष प्रसाद मित्रा  ने  आयनोस्फीयर  के क्षेत्र में अग्रणी शोधकार्य किया। 2) 1954  में कलकत्ता विश्वविद्यालय  से डीफिल समाप्त करने के बाद मित्रा ने दिल्ली स्थित नैशनल फिजिकल लैबोरेट्री  (एनपीएल ) में काम करना शुरू किया। 3) वहां उन्होंने रेडियो विज्ञान  का नया विभाग शुरू किया। रेडियो विज्ञान का विकास बहुत हद तक  आयनोस्फीयर  के अध्ययन से जुड़ा था।   4)  आयनोस्फीयर  पृथ्वी के ऊपरी वातावरण का वो क्षेत्र है जो रेडियो - तरंगों  को परावर्तित कर वापस भेजता है। इसी वजह से पृथ्वी की गोल सतह पर रेडियो संचार संभव हो पाता है। रॉकेटों  के आने से पहले इस ऊपरी वातावरण तक पहुंच पाना बहुत मुश्किल काम था।  आयनोस्फीयर  के बारे में हम जो कुछ थोड़ा बहुत जानते थे वो स्पेक्ट्रोस्कोपी  और पृथ्वी पर लगे वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा ही संभव हो पाया था। एस. के. मित्रा ने भारत में  आयनोस्फीयर  शोध कार्य की नींव रखी। प्रोफेसर  एस. पी .  मित्रा  ने इस काम को बहुत आगे बढ़ाया। 4)  आयनोस्फीयर ...

भारतीय वैज्ञानिक जिन्होंने आयनोस्फीयर और मौसम - बदलाव के लिए काम किया !

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  अशेष प्रसाद मित्रा ( 1927 - 2007 ) अशेष प्रसाद मित्रा  ने आयनोस्फीयर और मौसम - बदलाव  के क्षेत्र में अद्वितीय कार्य किया। उन्होंने अपने गुरु प्रोफेसर शिशिर कुमार मित्रा  ( एफआरएस) के क्षेत्र में शोध कार्य को दक्षता से आगे बढ़ाया। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 1) अशेष प्रसाद मित्रा  का जन्म 21 जनवरी 1927  में कलकत्ता  में हुआ और यहीं उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी हुई। 2) उनके पिता स्कूल में शिक्षक थे। 3) मित्रा  अपनी कक्षा में हमेशा प्रथम आते थे। 4) कलकत्ता विश्वविद्यालय  से एमएससी की पढ़ाई समाप्त करने के बाद उन्होंने प्रोफेसर शिशिर कुमार मित्रा  (एफआरएस) की प्रयोगशाला में काम शुरु किया। किताब उन्होंने 200 से अधिक वैज्ञानिक शोधपत्र के साथ - साथ कई पुस्तकें लिखी या उनका संपादन किया। जो इस प्रकार है -   1) एडवांसेज इन स्पेस एक्सप्लोरेशन (1979 ,संपादित )  2) आइनोस्फिरिक इफैक्ट्स ऑफ सोलर फ्लेर्स  3) हयूमन इंफ्लूएनसिस ऑन एटमॉस्फियर वो कई वैज्ञानिक शोध पत्रिकाओं के संपादन मंडल के सदस्य भी थे। जैसे - जेनरल ऑफ एटमॉस्फिय...

भारतीय खगोलशास्त्री एम. के. वायनू बप्पू की पसंदीदा बातें!

1) वे एक अच्छे वक्ता थे और इस कारण स्कूल में उनकी बहुत प्रशंसा होती थी। 2) अपने कॉलेज में उन्होंने विज्ञान क्लब आयोजित किया और कॉलेज पत्रिका का संपादन भी किया। 3) कॉलेज फिजिक्स एसोसिएशन के सचिव की हैसियत से उन्होंने विज्ञान के विषयों पर कई लोकप्रिय भाषण आयोजित किये। 4) वो शौकिया पेंटर भी थे और उन्हें साहित्य में भी रूचि थी। 5) उन्हें अंग्रेजी कविताओं से प्रेम था और मिर्जा गालिब उनके उनके सबसे प्रिय कवि थे। 6) कॉलेज में वो एक शानदार क्रिकेटर और टेनिस खिलाड़ी थे। 7) उनकी पसंदीदा किताब थी - " द स्पिरिट ऑफ सेंट लुई " जो प्रसिद्ध हवाबाज चाल्स लिंडबर्ग की अमर गाथा है। 8) विज्ञान और कला दोनों क्षेत्रों में वायनू के रोल मॉडल विख्यात वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा थे। 9) वायनू की कलाकृतियों को आज भी उनके द्वारा स्थापित विभिन्न वेदशालाओं में देखा जा सकता है। 10) बचपन से ही वायनू निजामिया ऑब्जरवेटरी (वेधशाला ) में दूरबीन देखी थी।

भारतीय खगोलशास्त्री एम. के. वायनू बप्पू के कार्य !

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  कार्य   1) कॉलेज में ही उन्होंने एक स्पेक्ट्रोग्राफ  का निर्माण किया। इसके लिए उन्होंने अपने सोने वाले कमरे की खिड़की से लगातार 6 रातों तक एक ' संवेदनशील ' प्लेट पर प्रकाश पड़ने दिया। 1946  में इस विषय पर उन्होंने अपना पहला शोधपत्र लिखा। 2)  1948  में एसएससी की पढ़ाई ख़त्म करने के बाद वे अपने लिए  खगोलशास्त्र  का विषय चुनना चाहते थे लेकिन भारत में इस पेशे के अवसर बहुत कम थे। 3) उसी समय इंग्लैंड  के खगोलशास्त्री सर हैरल्ड स्पेंसर जोन्स  और हारवर्ड युनिवर्सिटी  के प्रोफेसर हाॅरलो शेपली  भारत की यात्रा पर आए थे। वायनू  ने उनसे हैदराबाद  में मुलाकात की। 4)  शेपली  की मदद से  1949  में हैदराबाद सरकार द्वारा दिए वजीफे के कारण वायनू हॉरवर्ड युनिवर्सिटी  में उच्च शिक्षा के लिए जा पाए। 5)  हॉरवर्ड  आने के कुछ महीनों में वायनू  ने एक नया पुच्छल तारा  ( कॉमेट ) खोजा। 6) आकाश के सामान्य चित्रों को देखते हुए उन्हें एक फोटो - प्लेट पर कुछ अलग सा नजर आया और इस तरह  वायनू  ने अ...

भारतीय खगोलशास्त्री एम. के. वायनू बप्पू !

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एम. के. वायनू बप्पू ( 1927 - 1982)  प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 1) एम. के. वायनू बप्पू   का जन्म 10 अगस्त, 1927  को हुआ था।  2) उनका परिवार कैनानोर  का रहने वाला था लेकिन उनके पिता हैदराबाद  में "  निजामिया ऑब्जरवेटरी "  में काम करते थे।  इ सलिए  वायनू  की स्कूल और कॉलेज की शिक्षा हैदराबाद  में ही हुई। 6) 1943  में जब सर  सी. वी. रमन  ने  हैदराबाद  में कई लेक्चर दिए तब  वायनू  ने हर रोज अपनी साईकिल पर 16 किलोमीटर  की यात्रा की,जिससे की कोई भी लेक्चर ना छूटे। मृत्यु 1) एम. के. वायनू बप्पू  का 55 वर्ष की उम्र में ही बाॅयपास सर्जरी  के बाद  19 अगस्त, 1982  को देहांत हो गया। अपने मृत्यु से कुछ समय पहले ही वो " इंटरनेशनल एस्ट्राॅनामिकल यूनियन "  (आईएयू ) के अध्यक्ष पद के लिए चुने गए थे। वायनू  के सपनों वाले 234 - सेमी टेलिस्कोप  को बाद में प्रधानमंत्री राजीव गांधी  ने राष्ट्र को समर्पित किया। तभी कावालूर वेधशाला  का नाम बदलकर  वायनू  के सम्म...

नये प्रकार का लिक्विड क्रिस्टल की खोज !

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चन्द्रशेखर ने नए पदार्थ के लिए एक ऑर्गेनिक प्रयोगशाला भी स्थापित की। जल्द ही यह प्रयोगशाला अपने मौलिक शोधकार्य के कारण पूरे विश्व में लिक्विड क्रिस्टल पर अनुसंधान का एक अग्रणी केंद्र बन गई। 1977 में चंद्रशेखर जब अपने वैज्ञानिक कैरियर के शिखर पर थे। तब उन्होंने अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर एक नये प्रकार के लिक्विड क्रिस्टल की खोज की।  जो नये तरह के परमाणुओं का बना था। इन परमाणुओं का आकार चकतियों जैसा था। यह परमाणु पहले अध्ययन किए, बेलनाकार परमाणुओं से बिल्कुल भिन्न थे। इस खोज से चंद्रा  को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिली। इस खोज का समाचार "प्रमाण"  नामक वैज्ञानिक शोधग्रंथ में पहली बार  छपा।  लिक्विड क्रिस्टल  के क्षेत्र में इस निबंध का आज भी सबसे अधिक उल्लेख होता है। अब तक चकती आकार वाले लगभग 1500 परमाणुओं  को प्रयोगशालाओं में कृत्रिम तरीकों से बनाया जा चुका है उनके भौतिक और रासायनिक गुणधर्मों पर 2000 से अधिक शोधपत्र  लिखे जा चुके है। इन नये पदार्थों को नयी चुनौतियों और तकनीकों के अनुरूप ढाला जा रहा है जिसमें जेरॉक्स , सोलर सेल , ऑप्टिकल स्टोरेज डिवाइ...

भारतीय वैज्ञानिक शिवरामाकृष्णन चंद्रशेखर के कार्य

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कार्य 1) 1961  में भारत  वापस लौटने के बाद वे मैसूर यूनिवर्सिटी  के फिजिक्स विभाग के प्रमुख बने। 2) वहां फिजिक्स विभाग एक बियाबान जंगल में स्थित था। उस जमीन की मालकिन मैसूर की राजकुमारी लीलावती  थी। 3) यहां पर चंद्रशेखर की रूचि लिक्विड क्रिस्टल  में पैदा हुई। इससे पहले ये विज्ञान का एक उपेक्षित क्षेत्र था और बहुत कम वैज्ञानिक ही  लिक्विड क्रिस्टल  पदार्थों के बारे में कुछ जानते थे। 4)  चंद्रशेखर  ने बाद में इसके बारे में लिखा   " उस समय इस विषय के बारे में मेरी जानकारी बहुत कम थी। मैं इसके बारे में थोड़ा बहुत जो कुछ जानता था वो जानकारी मैंने 10 साल पहले 1930 की छपी किताबों में पढ़ी थी। " 5)  चंद्रशेखर  ने अपने शोध कार्य से विज्ञान के इस क्षेत्र की तस्वीर बदली - वो उसे ठोस स्थिति से लिक्विड की ओर ले गए।  6) ब्रिटेन  की कैंब्रिज विश्वविद्यालय कॉलेज, लंदन  में कुछ समय बिताने के बाद 1971  में  चंद्रशेखर   बैंगलौर  की रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट  में आए। वहां उन्होंने अपने कुछ पुराने छात्रों क...

भारतीय वैज्ञानिक जिन्होंने नये प्रकार के लिक्विड क्रिस्टल की खोज की !

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  शिवरामाकृष्णन चंद्रशेखर ( 1930 - 2004 ) आजकल लिक्विड क्रिस्टल  सभी जगह उपयोग में लाए जा रहे है - मोबाइल फोन्स  से लेकर बड़े टेलीविज़न स्क्रीन  में भी। पहले वाले भारी भरकम कैथोड - रे ट्यूब  अब गायब हो गए है और उनका स्थान अब  लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले  ने ले लिया है। लिक्विड क्रिस्टल  के क्षेत्र में विकास का अधिकांश श्रेय शिवरामाकृष्णन चंद्रशेखर  को जाता है। लोग उन्हें प्यार से चंद्रा  बुलाते थे। प्रारंभिक जीवन 1)  शिवरामाकृष्णन चंद्रशेखर  का जन्म 6 अगस्त 1930  को कलकत्ता  में हुआ था। 2) उनके पिता ब्रिटिश सरकार  के लिए काम करते थे। बाद में पदोन्नति के बाद वे स्वतंत्र भारत के एकाउंटेंट जनरल  बने। 3) पिता के तबादलों के कारण परिवार को अलग - अलग शहरों में जाना पड़ता था। जिससे इनकी  स्कूली पढ़ाई में परेशानी होती थी। 4)  चंद्रशेखर  एक नामी परिवार से थे। 5) उनकी मां सीतालक्ष्मी प्रसिद्ध वैज्ञानिक और विज्ञान में नोबल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय सी. वी. रमन  की छोटी बहन थी। 6)  च...

भारतीय पर्यावरणविद अनिल अग्रवाल की कुछ पर्यावरण से जुड़ी रिपोर्ट्स !

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सिटीजन रिपोर्ट्स इन्होंने  पहली सिटीजन रिपोर्ट  से संकुचित विचारधारा वाले विद्वानों और सोई जनता की आंखे खोली। रिपोर्ट ने गांव की  ढ़ लती अर्थव्यवस्था में घटते ईधन - चारे (बॉयोमास ) के दौर में महिलाओं पर पड़ते भारी बोझ की ओर ध्यान आकर्षित किया। इससे पर्यावरण और विकास के बीच के रिश्ते को समझने में मदद मिली। इस रिपोर्ट द्वारा उठाए मुद्दों पर काफी चर्चा हुई और कुछ ठोस कदम भी उठाए गए। इस किताब का कन्नड़ और हिंदी में अनुवाद प्रसिद्ध पर्यावरणविद शिवराम कारन्थ और अनुपम मिश्रा ने किया। इसके बाद इसी प्रकार की अन्य सिटीजन रिपोर्ट्स छपती रही। तीसरी रिपोर्ट  बाढ़ के विषय पर थी। चौथी रिपोर्ट  डाईन्ग विजडम में भारत में परंपरागत जल संचयन के तौर तरीकों को संकलित किया गया था। जबकि पहली दो रिपोर्ट में आंदोलनों से जुड़े कार्यकर्ताओं का सक्रिय योगदान था। अंत में रिपोर्ट सीएसई ने खुद तैयार की थी - जो सीएसई और पर्यावरण से जुड़े जमीनी आंदोलनों के बीच लुप्त होते संबंधो का प्रतीक था। स्लो - मर्डर रिपोर्ट उस समय दिल्ली की हवा बहुत प्रदूषित थी और लोगों का दम घुट रहा था। उस समय अग्रवाल ने "...

भारतीय पर्यावरणविद अनिल अग्रवाल के द्वारा लिखी किताबें, लेख और पत्रिका

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किताबें 1) अग्रवाल द्वारा लिखी किताब " द स्टेट ऑफ इंडियाज एन्वायरमेंट  : ए सिटीजन्स रिपोर्ट के छपने पर उनकी गहरी सोच का मालूम पड़ता है। इस रिपोर्ट को लिखने में उनकी सहायता पर्यावरण आंदोलनों से जुड़े तमाम सक्रिय कार्यकर्ताओं ने की।  इस किताब में भारतीय पर्यावरण के उपयोग और दुरुपयोग का पहली बार गंभीरता से आंकलन किया गया था। पुस्तक में ईमानदारी और आकर्षक तरीके से भारत के ढलते पर्यावरण की असलियत को दर्ज किया गया था। इस किताब को बहुत सराहा गया और दुनिया की सैकड़ों गंभीर पत्र - पत्रिकाओं में उनकी समीक्षाएं छपी। 2) अपनी किताब " द पॉलिटिक्स ऑफ एन्वायरमेंट "  में अग्रवाल ने जल और जमीन जैसे साधनों के समुचित दोहन के लिए संपूर्ण (हॉलिस्टिक) प्रबंध की अपील की। 3) " टुवर्ड्स ग्रीन विलेजेस "  में अग्रवाल ने विकेंद्रित ग्रामीण समुदाय के द्वारा संसाधनों के नियंत्रण की पेशकश की। लोगों की सक्रिय भागीदारी से ही पर्यावरण सुधरेगा और ग्रामीण विकास होगा सीएसई ने इसके सबूत में देश में चल रहे कई सक्रिय पर्यावरण आंदोलनों - हरियाणा में सुखोमाजरी, महाराष्ट्र में रालेगंज सिद्ध और राजस्थान म...

भारतीय पर्यावरणविद अनिल अग्रवाल

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  अनिल अग्रवाल ( 1947 - 2002 ) अनिल अग्रवाल   एक प्रमुख भारतीय पर्यावरणविद थे। उन्होंने पहली बार पर्यावरण की समस्या को गरीबों के नजरिए से देखा।   गरीबों की संख्या तेजी से बढ़ने के कारण उन पर पर्यावरण के नाश और तेजी से जंगलों की सफायी करने का आरोप लगाया जाता था। उन्होंने इन अवधारणाओं को चुनौती  दी , उनके अनुसार गरीबों का स्वार्थ, जिम्मेदारी से पर्यावरण संरक्षण के साथ जुड़ा था। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 1)  अनिल अग्रवाल  का जन्म 1947  में कानपुर  के एक व्यापारिक परिवार में हुआ। 2)  1970  में उन्होंने आईआईटी कानपुर  से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। 3) वे  आईआईटी  में छात्र संगठन के अध्यक्ष  चुने गए थे। 4) पढ़ाई खत्म करने के बाद वो बाकी छात्रों की तरह अमेरिका नहीं गए और उन्होंने " हिंदुस्तान टाइम्स "  नामक अखबार में विज्ञान संवाददाता जैसे काम किया। जल्द ही लोग उनकी लेखन शैली का लोहा मानने लगे। 5)  1970  के मध्य में वे इंग्लैंड गए और वहां "पर्यावरण  और  "ओनली वन अर्थ...

नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियन और अश्वेत व्यक्ति  !

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  चंद्रशेखर वेंकट रमन के सम्मान 1)  सर अरनेस्ट रदरफोर्ड  ने " रमन इफेक्ट" की खोज की जानकारी रॉयल सोसायटी  को दी जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने रमन  को नाइटहुड  का सम्मान दिया। 2) 10 दिसंबर   1930 में रमन को  नोबेल पुरस्कार  से सम्मानित किया गया। रमन विज्ञान के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले एशियन और अश्वेत व्यक्ति थे।  3) 1930 में, उन्होंने रॉयल सोसाइटी का ह्यूजेस पदक  प्राप्त किया। 4) 1941 में, उन्हें फ्रैंकलिन इंस्टीट्यूट द्वारा फिलाडेल्फिया  में फ्रैंकलिन पदक  से सम्मानित किया गया था। 5) 1954 में उन्हें भारत रत्न  से सम्मानित किया गया। 6) 1957 में उन्हें लेनिन शांति पुरस्कार  से सम्मानित किया गया था। रमन प्रभाव  की खोज के लिए भारत हर साल 28 फरवरी को "  राष्ट्रीय विज्ञान दिवस "  मनाता है।

भारतीय वैज्ञानिक सी. वी. रमन के कार्य !

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1) जुलाई 1933 में रमन , टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ( बाद में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ) के निदेशक नियुक्त हुए। रमन ने 15 साल इस संस्था में गुजारे। वहां विश्वस्तर का फिजिक्स विभाग स्थापित किया। उन्होंने यह तमाम वैज्ञानिकों को ट्रेनिंग और प्रेरणा दी। 2) रमन ने एक्स - रे डिफ्रैक्शन और अपने पसंदीदा विषय प्रकाश और पदार्थ के बीच अंतर्सम्बंधों पर काम शुरू किया। 3) अपने लेक्चर में वो ठोस वैज्ञानिक प्रयोग करके दिखाते। उनका लेक्चर आसमान नीला क्यों होता है ?  एक मिसाल है। 4) वो इंडियन नैशनल साइंस एकाडमी (इंसा) के संस्थापक थे। 5) रमन वाद्ययंत्रों के विज्ञान पर भी काम किया करते थे। धनुष डोर से बजने वाले वाद्ययंत्रों के कम्पन और उनकी भौतिकी पर भी उन्होंने प्रकाश डाला। 6) 1943 में उन्होंने एक कंपनी शुरू की  - " ट्रैवेन्कोर केमिकल्स एंड मैन्युफैक्चरिंग कंपनी "। 7) 1948 में रिटायर होने से पहले रमन ने बैंगलोर में " रमन रीसर्च इस्टिट्यूट " की स्थापना की। इस संस्था की विशेषता यह थी कि उसकी स्थापना के लिए सारी पूंजी निजी दाताओं से आयी। उन्होंने 1970 तक अपना वैज्ञानिक शोध जारी रखा। 8) ...

क्या था " रमन प्रभाव " जिसके लिए रमन को नोबल पुरस्कार मिला ?

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1921 में एक कॉन्फ्रेंस में भाग लेने के लिए रमन विदेश गए।  समुद्र के पानी को देखकर रमन के मन में कई प्रश्न आये ,जैसे - सागर का पानी नीला क्यों होता है ? क्या पानी आसमान के प्रतिबिंब के कारण नीला दिखता है ? रमन को लगा की सागर का नीलापन पानी और सूरज का प्रकाश अंतर्संबंध के कारण है। रमन वहां एक स्पेक्ट्रोमीटर से प्रयोग कर रहे थे। बाद में उन्होंने अलग - अलग माध्यमों में प्रकाश के बिखराव (प्रर्कीण) पर एक वैज्ञानिक शोधपत्र लिखा। भारत लौटने के बाद रमन ने इस विषय पर गंभीरता से शोध करना शुरू किया। उन्होंने प्रकाश की किरणों को भिन्न - भिन्न तरलों से गुजारा और उसके प्रभाव का अध्ययन किया। 1928 में उन्होंने स्थापित किया कि जब एक रंग का प्रकाश कोई तरल से गुजरता है तो प्रकाश के कण और तरल के परमाणु एक दूसरे के साथ टकराते है और प्रकाश को बिखराते है। तब बाहर निकलने वाली प्रकाश - किरण का रंग आने वाले प्रकाश किरण से भिन्न होता है। आने वाली किरण की अपेक्षा बाहर निकलने वाली किरण ऊंचे और नीचे स्तर की ऊर्जा की ओर सिफ्ट होती है। यही वो प्रसिद्ध " रमन प्रभाव " है जिसके कारण रमन को बाद में ...

भारतीय वैज्ञानिक, जिन्होंने 11 वर्ष की उम्र में ही 10 वीं की परीक्षा पास की !

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  चन्द्रशेखर वेंकट रमन   (1888 - 1970 ) प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 1) चन्द्रशेखर वेंकट रमन  का जन्म  7 नवंबर 1888  को  तमिलनाडु  के शहर तितुचापल्ली  में हुआ था। 2) उनके पिता भौतिकी और गणित के व्याख्याता थे। 3) रमन की प्रारंभिक शिक्षा विशाखापट्नम  में हुई। उन्होंने 11 वर्ष  की उम्र में ही 10 वीं  की परीक्षा पास कर ली। 4) 1902 में रमन  ने प्रेसीडेंस कॉलेज  में दाखिला लिया और वहां से 1904 में बीए पास किया। इस परीक्षा में उनका पहला स्थान  था और उन्होंने भौतिकी का स्वर्ण पदक  भी जीता था। 5) 1907  में एमए  की परीक्षा में वो सर्वश्रेष्ठ छात्र घोषित किए गए। 6) मद्रास  के एक सर्जन ने उनकी जांच की, तो उन्हें इंग्लैंड  जाने से मना किया। उस सर्जन ने कहा कि " इनका शरीर वहां के कड़े मौसम को बर्दास्त नहीं कर पाएगा।" 7)  रमन  ने वित्त विभाग में शासकीय नौकरी कर ली। नौकरी करते हुए उन्होंने घर में ही एक छोटी सी प्रयोगशाला बनायी और वहीं प्रयोग करते रहे। 8) एक दिन काम से लौटते समय उन्हें एक साईन...

हरीश चंद्र के सम्मान और पुरस्कार !

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  सम्मान और पुरस्कार 1) हरीश चंद्र 1957 - 58 में गुगेनहीम और 1961 - 63 के बीच स्लोन फेलो रहे। 2) 1975 में उन्हें इंडियन एकेडमी ऑफ साइन्सिस और नेशनल साइंस एकेडमी की फेलोशिप प्रदान की गई। 3) 1981 में उन्हें अमेरिकी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस की सदस्यता प्रदान की गई। 4) वो टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के सदस्य थे। 5) 1973 में उन्हें दिल्ली यूनिवर्सिटी और 1981 में येल यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्ट्रेट की उपाधि से सम्मानित किया। 6) 1954 में उन्होंने अमेरिकन मैथमेटिकल सोसायटी का कोल पुरस्कार जीता। 7) 1974 मे इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी का श्रीनिवास रामानुजन पदक जीता। 8) भारत सरकार ने उनके सम्मान में इलाहाबाद में गणित और भौतिकी में शोध करने वाली संस्था का नाम हरीश चन्द्र रीसर्च इस्तिट्यूट (एचआरआई)  रखा। अन्य बातें 1) हरीश कोई भी फालतू कागज नहीं फेकते थे और अपनी पांडुलिपियों के पिछले पन्नों पर अपना कच्चा काम करते थे। 2) उनके लेक्चर्स जिन्हें वो कोर्स के रूप में पढ़ाते थे,उसकी जबरजस्त मांग रहती थी। 3) हरीश दो चित्रकारों के बहुत प्रशंसक थे - वैन गॉग और से जान । 4) हरीश एक ब...