क़ुतुबमीनार के तले एक विष्णु जी का मंदिर था !
💠पुरूषोतम ओक के अनुसार भारत के दिल्ली नगर में तथाकथित क़ुतुबमीनार के तले एक सरोवर के मध्य में एक शेषशायी विष्णु जी का भव्य शिल्प बना हुआ था।
💠उस मूर्ति की विशालता का अनुमान वर्तमान मीनार की ऊंचाई और मोटाई से लगाया जा सकता है जबकि मीनार " विष्णु जी के नाभि से निकली कमल की नाल स्वरूप " है।
💠मूलतः इस नाल के सात मंजिल बने हुए थे जो "सप्त स्वर्ग" के द्योतक थे। सातवीं श्रेणी का सुवर्ण नक्काशी से सुशोभित एक संगमरमरी गुंबज रूप छत्र था।
💠उस छत्र के नीचे सातवीं श्रेणी की कमलासन पर बैठी चतुर्मुख ब्रम्हा जी की मूर्ति थी। उस ऊंचे सप्तस्वर्ग के नालस्तंभ पर बैठे ब्रम्हा जी को सृष्टि निर्माण कार्य का निरीक्षण करते दिखाये गए थे।
💠जिस अंडाकृति आलय के मध्य में वो मीनार था। वह 27 नक्षत्रों का बना सुर्य मण्डल कान्तियुक्त का द्योतक था।
💠उस नक्षत्रालय में प्रवेश दिलाने वाला भव्य आलय (द्वार) आज भी वहां खड़ा है जबकि 27 नक्षत्रों के मंदिर को नष्ट कर दिया गया, कुतुबुद्दीन ने एक अरबी शिलालेख में वही उल्लेख किया है।
💠वहां का जो विष्णु मंदिर था उसके भग्नमण्ल को कुतुबुद्दीन ने " कुबतुल इस्लाम मस्जिद कहा है। उस नक्षत्रालय द्वार को अलाई कहकर, कनिंगहेंम नाम के एक अंग्रेज पुरात्तवप्रमुख ने वह द्वार अलाउद्दीन ख़िलजी ने बनवाया ऐसी सरकारी अफवाह फैला दी।
💠महाभारत काल की राजधानी, इंद्रप्रस्थ, उस युग में समस्त वैदिक संसार की धुरी थी। दिल्ली का अर्थ " देहली " में यानि द्वार सीमा है। इसी कारण वहां शेषशायी विष्णु जी की भव्य प्रतिमा स्थापित थी।
💠उस समय उस स्थान को " विष्णुपदगिरी " और उस मीनार को विष्णु स्तंभ कहते थे।
ध्रुव स्तंभ भी इसका एक अन्य नाम था क्योंकि उसके शिखर " ज्योतिषीय निरीक्षण और अध्ययन " को किया जाता था।
उस स्तंभ के सात मंजिल राहु,केतु विरहित अन्य सात ग्रहों के द्योतक थे। इस्लामी आक्रमकारियों ने नीचे तले के विष्णु और शिखर के ब्रम्हा जी की प्रतिमाओं को नष्ट कर दिया।
छठीं मंजिल को उतार दिया,वह उतारी गई छठीं मंजिल वही हरियाली पर जोड़ कर खड़ी करा दी गई। सातवें मंजिल पर स्थित ब्रम्हा जी की मूर्ति का तो पता ही नहीं है।
💠उस मीनार के 27 नक्षत्रों के 27 झरोखें बने है।
प्रसिद्ध ज्योतिषी वराह मिहिर के नाम से वहीं पास की नगरी महरोली उर्फ मिहिरावली कहलाती है।
💠 शेषशायी विष्णु जी के ऊपर एक छोटा सेतु बना हुआ था। जिसके ऊपर चढ़कर मीनार के जीने के द्वार में प्रवेश कर भगवान विष्णु के उदर के अंदर से शिखर तक जीने से जाया जाता था।
💠उस मूर्ति की विशालता का अनुमान वर्तमान मीनार की ऊंचाई और मोटाई से लगाया जा सकता है जबकि मीनार " विष्णु जी के नाभि से निकली कमल की नाल स्वरूप " है।
💠मूलतः इस नाल के सात मंजिल बने हुए थे जो "सप्त स्वर्ग" के द्योतक थे। सातवीं श्रेणी का सुवर्ण नक्काशी से सुशोभित एक संगमरमरी गुंबज रूप छत्र था।
💠उस छत्र के नीचे सातवीं श्रेणी की कमलासन पर बैठी चतुर्मुख ब्रम्हा जी की मूर्ति थी। उस ऊंचे सप्तस्वर्ग के नालस्तंभ पर बैठे ब्रम्हा जी को सृष्टि निर्माण कार्य का निरीक्षण करते दिखाये गए थे।
💠जिस अंडाकृति आलय के मध्य में वो मीनार था। वह 27 नक्षत्रों का बना सुर्य मण्डल कान्तियुक्त का द्योतक था।
💠उस नक्षत्रालय में प्रवेश दिलाने वाला भव्य आलय (द्वार) आज भी वहां खड़ा है जबकि 27 नक्षत्रों के मंदिर को नष्ट कर दिया गया, कुतुबुद्दीन ने एक अरबी शिलालेख में वही उल्लेख किया है।
💠वहां का जो विष्णु मंदिर था उसके भग्नमण्ल को कुतुबुद्दीन ने " कुबतुल इस्लाम मस्जिद कहा है। उस नक्षत्रालय द्वार को अलाई कहकर, कनिंगहेंम नाम के एक अंग्रेज पुरात्तवप्रमुख ने वह द्वार अलाउद्दीन ख़िलजी ने बनवाया ऐसी सरकारी अफवाह फैला दी।
💠महाभारत काल की राजधानी, इंद्रप्रस्थ, उस युग में समस्त वैदिक संसार की धुरी थी। दिल्ली का अर्थ " देहली " में यानि द्वार सीमा है। इसी कारण वहां शेषशायी विष्णु जी की भव्य प्रतिमा स्थापित थी।
💠उस समय उस स्थान को " विष्णुपदगिरी " और उस मीनार को विष्णु स्तंभ कहते थे।
ध्रुव स्तंभ भी इसका एक अन्य नाम था क्योंकि उसके शिखर " ज्योतिषीय निरीक्षण और अध्ययन " को किया जाता था।
उस स्तंभ के सात मंजिल राहु,केतु विरहित अन्य सात ग्रहों के द्योतक थे। इस्लामी आक्रमकारियों ने नीचे तले के विष्णु और शिखर के ब्रम्हा जी की प्रतिमाओं को नष्ट कर दिया।
छठीं मंजिल को उतार दिया,वह उतारी गई छठीं मंजिल वही हरियाली पर जोड़ कर खड़ी करा दी गई। सातवें मंजिल पर स्थित ब्रम्हा जी की मूर्ति का तो पता ही नहीं है।
💠उस मीनार के 27 नक्षत्रों के 27 झरोखें बने है।
प्रसिद्ध ज्योतिषी वराह मिहिर के नाम से वहीं पास की नगरी महरोली उर्फ मिहिरावली कहलाती है।
💠 शेषशायी विष्णु जी के ऊपर एक छोटा सेतु बना हुआ था। जिसके ऊपर चढ़कर मीनार के जीने के द्वार में प्रवेश कर भगवान विष्णु के उदर के अंदर से शिखर तक जीने से जाया जाता था।


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