बनारस का कौन सा घाट किसने बनवाया ?

सन् 1832 ईसवी के करीब बनारस के अधिकतर घाट बनकर तैयार हो चुके थे।


उनमें से कुछ यहां दिए गए है -

1) आदिकेश्वर घाट -

आदिकेश्वर घाट वरुणा और गंगा के संगम पर है। यहां संगमेश्वर और ब्रह्मेश्वर के मंदिर और घाट 18 वीं सदी के अंत में सिंधिया के दीवान ने बनवाया था।

2) मुंशी घाट -

इस घाट को नागपुर के राजा के एक मंत्री "श्रीधर मुंशी" ने बनवाया था। वे सन् 1812 ईसवी में अपने पद से अलग होकर यहां आए थे। 



उनकी मृत्यु सन् 1824 ईसवी में हुई। उन्होंने केवल " गिरिघाट " के दक्षिण में मुंशी घाट बनवाया।

3) मानमंदिर घाट -

इस घाट को 17 वीं सदी के आरंभ में अम्बर के प्रसिद्ध राजा मानसिंह ने यात्रियों के ठहरने के लिए बनवाया था।


4) मीर घाट -

इस घाट को पहले जरासंध घाट भी कहते थे। बनारस के फौजदार मीर रुस्तम अली ने सन् 1735 ईसवी में यहां एक किला और घाट बनवाए।


5) संकठा घाट -

संकठा जी के मंदिर के बगल में बेनिराम पंडित के भाई विशम्बर पंडित की विधवा, जिन्हें बनारसी  "पंडिताइन " के नाम से जानते थे।
सन् 1825 ईसवी में "पंडिताइन " के भतीजों ने घर के नीचे घाट बनवा दिया। जो अब संकठा घाट के नाम से मशहूर है।

संकठा जी का मंदिर गुहनाबाई ने बनवाया।

6) प्रयाग घाट-

दशाश्वमेध घाट के ठीक बाईं ओर स्थित इस घाट का निर्माण सन् 1778 में बालाजी बाजीराव ने करवाया था।

7) दशाश्वमेध घाट -

दशाश्वमेध घाट को बालाजी बाजीराव ने सन् 1748 ईसवी के करीब बनवाया था।

8) भोसला घाट -

यहां लक्ष्मी नारायण का मंदिर नागपुर के राजा ने 19 वीं सदी के आरंभ में बनवाया था।

9) हनुमान घाट -

 हनुमान घाट ,जिस पर रईस साधुओं का " जुना अखाड़ा" पड़ता है कहावत है -

कि इसकी सीढ़ियां बनारस के एक जुआरी नन्द दास ने जुए में जीती, अपनी एक दिन की कमाई से बनवाई थी।

10) खिड़की घाट -

इस घाट को बलवंत सिंह के इंजीनियर वैजनाथ मिस्र ने बनवाया था।

11) पंचगंगा घाट -

इस घाट को श्रीपद राव नाम के एक महाराष्ट्रीयन ने बनवाया था। 

12) ब्रह्म घाट और दुर्गा घाट -

इन घाटों को सन् 1740 ईसवी के करीब नारायण दीक्षित कायगांवकर ने बनवाया था। 


13) " राममंदिर घाट " के नीचे सीढ़ियां इसके मालिक भवानी गिरि और उनके पड़ोसी उमराव गिरि पुश्ता के झगड़ो के कारण न बन सकी ।


14) एक कहावत है कि मणिकर्णिका घाट के पास महाश्मशान घाट की स्थापना कश्मीरी मल ने की।
अपनी मां का शव कश्मीरी मल " हरिश्चंद्र घाट " ले गए ,पर वहां लेन - देन के बारे में डोमो से कुछ कहा सुनी हो गई और फिर शव को वह " मणिकर्णिका घाट " पर उठा कर ले गए और पंडो और जमींदार से जगह खरीदकर उसी पर मां का दाह संस्कार कर, वहां पर घाट बनवा दिया और डोमो का निर्ख (दाम) बांध दिया।

श्मशान घाट और डोमो का नीर्ख तय करने का श्रेय नारायण भट्ट कायगांवकर के वंशधर नारायण भट्ट को देते हैं।

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