बनारस का,15 और 16 वीं सदी का विश्वनाथ मंदिर कैसा था ?

अकबर के शासन काल में विश्वनाथ मन्दिर बनाने का श्रेय टोडरमल और नारायण भट्ट को जाता है।

दिवाकर भट्ट ने अपनी " दानहारावली " में कहा भी है कि रामेश्वर भट्ट के पुत्र नारायण भट्ट ने वाराणसी (बनारस) में विधि पूर्वक विश्वेश्वर मन्दिर की स्थापना की थी।

 डॉक्टर आल्तेकर के अनुसार टोडरमल की सहायता से नारायण भट्ट ने सन् 1585 ईसवी के करीब यह कार्य संपादित किया।


 15 वीं सदी का विश्वनाथ मंदिर 

15 वीं सदी के विश्वनाथ मन्दिर के नक्शे के अनुसार ही टोडरमल ने मन्दिर का निर्माण करवाया।

प्राचीन मंदिर में पांच मंडप थे। इसमें से पूर्व की ओर पांचवे मण्डप की नाप 
125 × 35 फूट थी। यह रंग मंडप था और यहां धार्मिक उपदेश होते थे।



टोडरमल ने केवल मंडप की मरम्मत करवा दी। मन्दिर की कुर्सी 7 फूट और ऊंची उठाकर सड़क के बराबर कर दी गई।

16 वीं सदी का विश्वनाथ मन्दिर

16 वीं सदी का विश्वनाथ मन्दिर चौखुटा था और उसकी प्रत्येक भुजा 124 फुट की थी।

मुख्य मन्दिर बीच में 32 फुट मुरब्बे में जलघरी के अंदर था।

गर्भगृह से जुटे हुए 16 × 10 फुट के चार अंतर्गृह थे। इसके बाद 12 × 8 फुट के छोटे अंतर्गृह थे जो चार मंडपो में जाते थे।

पूर्वी और पश्चिमी मंडप में दण्डपाणि और द्वारपालों के मन्दिर थे ,शायद उनकी मूर्तियां आलो पर स्थित थी।

मन्दिर के चारों कोनों पर 12 फुट के उपमंदिर थे। नंदी मण्डप मन्दिर के बाहर था।

मन्दिर की ऊंचाई लगभग 128 फुट थी। मंडपो और मंदिरों पर शिखर थे। जिनकी अनुमानित ऊंचाई 64 से 48 फुट थी।

मन्दिर के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ था।
जिसमें अनगिनत देवी देवताओं के मन्दिर थे।

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