अर्जुन का विवाह किससे कैसे हुआ ?

1) द्रौपदी -

एक बार पांचाल देश के राजा द्रुपद ने अपनी पुत्री द्रौपदी का स्वयंवर किया। 


स्वयंवर की शर्त -

"आकाश में ऐसा यंत्र टंगवा दिया गया जो चक्कर काटता रहता था। उसी के ऊपर वेधने का लक्ष्य रखा गया। द्रुपद ने घोषणा कर दी ,कि जो वीर - रत्न इस धनुष पर डोरी चढ़ाकर इन सजे हुए बाणों से घूमने वाले यंत्र के छिद्र में से लक्ष्य वेध करेगा। वहीं मेरी पुत्री को प्राप्त करेगा।"

अर्जुन ने इस असंभव से कार्य को पूर्ण किया और फिर द्रौपदी के साथ पांचों पांडवो का विवाह हुआ।

2) उलूपी -

जिस समय अर्जुन अकेले वनवास के लिए गए हुए थे। उसी दौरान वह गंगा नदी में स्नान और पूजा करके बाहर निकलने ही वाले थे, कि नागकन्या उलूपी ने अर्जुन का पैर पानी के अंदर खींचा और अपने भवन की ओर ले गई।

उलूपी ने अर्जुन से विवाह करने की इच्छा जताई। फिर अर्जुन और उलूपी का विवाह हुआ और दूसरे दिन सुबह अर्जुन हरिद्वार चले गए।
चलते समय नागकन्या उलूपी ने अर्जुन को वर दिया कि -
" किसी भी जलचर प्राणि से आपको भय नहीं होगा ,सब जलचर आपके आधीन होंगे।"

3) चित्रांगदा -

अर्जुन महेंद्र पर्वत से होकर समुद्र के किनारे चलते हुए मणिपुर पहुंचे। वहां के राजा चित्रवाहन बड़े धर्मात्मा थे। उनकी कन्या का नाम चित्रांगदा था



एक दिन अर्जुन ने चित्रांगदा को देखा और राजा को अपना पूर्ण परिचय देकर उनकी पुत्री से विवाह की इच्छा जताई।

तब राजा ने बताया कि मेरे पूर्वजों में प्रभञ्जन नाम के राजा थे। उन्होंने संतान ना होने पर, बहुत ही घोर तपस्या करके महादेव को प्रसन्न किया।

तब महादेव ने उन्हें वर दिया कि तुम्हारे वंश में सबको केवल एक ही संतान (पुत्र या पुत्री) होगी और ऐसा ही हुआ। मेरी पुत्री का विवाह मैं जब करूंगा तो, उसका पुत्र ही मेरा उत्तराधिकारी होगा।

अर्जुन ने राजा की यह शर्त मान ली। फिर चित्रांगदा और अर्जुन का विवाह हुआ और चित्रांगदा को पुत्र की प्राप्ति हुई। फिर अर्जुन ने राजा से आज्ञा लेकर वहां से प्रस्थान किया।

4) सुभद्रा -

एक बार वृष्टि भोज और अंधक वंश के यादवों ने रैवतक पर्वत पर बहुत बड़ा उत्सव मनाया। इस उत्सव में अर्जुन भी गए थे।

वहीं अर्जुन ने श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा को देखा और मोहित हो गए। उनकी मनस्थिती समझ कर श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा - कि यदि तुम सुभद्रा से विवाह करना चाहते हो तो ,सुभद्रा का हरण करके ले जाओ, क्योंकि यदि स्वयंवर हुआ तो,सुभद्रा तुम्हारा वरण करेगी या नहीं,ये नहीं पता।

तब एक दिन सुभद्रा रैवतक पर्वत पर देव पुजा करके पर्वत की प्रदक्षिणा (चक्कर लगाना) करके,जब सुभद्रा की सवारी द्वारिका के लिए जाने लगी। तब अवसर पाकर अर्जुन से सुभद्रा को बलपूर्वक रथ में बिठा लिया।



सैनिकों में हाहाकार मच गई और यह समाचार द्वारका की सूषर्मा सभा में पहुंचा।




सभी यादव युद्ध के लिए तैयार हो गए ,लेकिन श्री कृष्ण के समझाने पर सभी शांत हो गए और विवाह को मान्यता दे दी।

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