बनारस का विस्तार, पुराणों के अनुसार
प्राचीन वाराणसी का विस्तार काफी दूर तक था। वरना (वरुणा) के पश्चिम में राजघाट का किला है। जहां निसंदेह प्राचीन वाराणसी बसी थी;
1 मील लंबा और 400 गज चौड़ा है।
ब्रम्ह पुराण के अनुसार इस क्षेत्र का प्रमाण 5 कोस का था। उसके उत्तर में गंगा और पूर्व में सरस्वती नदी थी।
उत्तर में गंगा दो योजन तक शहर के साथ- साथ बहती थी।
दक्षिण और उत्तर में इसका विस्तार आधा योजन है।
वाराणसी का विस्तार गंगा नदी तक है।
( 1 योजन = लगभग 13 से 16 किलोमीटर होता है।)
1 मील लंबा और 400 गज चौड़ा है।
1) ब्रम्ह पुराण -
ब्रम्ह पुराण में शिव जी पार्वती जी से कहते है कि - वरना (वरुणा) और अस्सी दोनों नदियों के बीच में ही वाराणसी क्षेत्र है। उसके बाहर किसी को नहीं बसना चाहिए।
ब्रम्ह पुराण के अनुसार इस क्षेत्र का प्रमाण 5 कोस का था। उसके उत्तर में गंगा और पूर्व में सरस्वती नदी थी।
उत्तर में गंगा दो योजन तक शहर के साथ- साथ बहती थी।
2) मत्स्य पुराण -
मत्स्य पुराण के अनुसार यह नगर पश्चिम की ओर ढाई योजन तक फैला था और दक्षिण में यह क्षेत्र वरुणा में गंगा तक आधा योजन फैला हुआ था।
3) स्कन्द पुराण -
स्कन्द पुराण के अनुसार इस क्षेत्र का विस्तार चारों ओर चार कोस था।
4) लिंग पुराण -
लिंग पुराण के अनुसार "कृतिवास" से आरंभ होकर यह क्षेत्र एक - एक कोस चारों ओर फैला हुआ है। इसके बीच में " मध्मेश्वर" नामक भूमि लिंग है।
यहां से भी एक - एक कोस चारों ओर क्षेत्र का विस्तार है। वही वाराणसी की वास्तविक सीमा है। उसके बाहर विहार ना करना चाहिए।
5) अग्निपुराण -
अग्नि पुराण के अनुसार वरुणा और अस्सी नदियों के बीच बसी हुई वाराणसी का विस्तार पूर्व में 2 योजन और दूसरी जगह आधा योजन है।
दक्षिण और उत्तर में इसका विस्तार आधा योजन है।
वाराणसी का विस्तार गंगा नदी तक है।
( 1 योजन = लगभग 13 से 16 किलोमीटर होता है।)





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