सर्जरी , आयुर्वेद में कितने प्रकार की होती थी ?

सर्जरी शुरुआत से ही आयुर्वेद का एक खास हिस्सा रहा है। महर्षि चरक ने जहां चरक संहिता को काय-चिकित्सा (मेडिसिन) के एक अहम ग्रंथ के रूप में बताया है।

वहीं महर्षि सुश्रुत ने शल्य-चिकित्सा के लिए सुश्रुत संहिता लिखी। इसमें सर्जरी से संबंधित सभी तरह की जानकारी उपलब्ध है।

सर्जरी के 3 भाग बताए गए है -

1) पूर्व कर्म (प्री-ऑपरेटिव)

2) प्रधान कर्म (ऑपरेटिव)

3) पश्चात कर्म (पोस्ट-ऑपरेटिव)

इन तीनों प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए 'अष्टविध शस्त्र कर्म' (आठ विधियां) करने की बात कही गई है।

1) छेदन (एक्सिजन)-

शरीर के किसी भाग को काट कर निकालना।

2) भेदन (इंसिजन) -

किसी भी तरह की सर्जरी के लिए शरीर में चीरा लगाना।

3. लेखन (स्क्रैपिंग) -

 शरीर के दूषित भाग को खुरच कर दूर करना।

4. वेधन (पंक्चरिंग) -

 शरीर के फोड़े से पूय (पस) या दूषितद्रव लिक्विड को सुई से छेद करके निकालना।

5. ऐषण (प्रोबिंग) -

 भगंदर जैसी बीमारियों को जांचना। इसमें टेस्ट के लिए धातु के उपकरण एषणी (प्रोब) की मदद ली जाती है।

6. आहरण (एक्स्ट्रक्सन) -

 शरीर में पहुंचे किसी भी तरह के बाहरी पदार्थ को औजार से खींचकर बाहर निकालना, जैसे- गोली, पथरी या दांत।

7. विस्रावण (ड्रेनेज) -

पेट, जोड़ों या फेफड़ों में भरे अतिरिक्त पानी को सुई की मदद से बाहर निकालना।

8. सीवन (सुचरिंग) -

सर्जरी के बाद (शरीर में चोट लगने से कटे-फटे अंग और त्वचा) को वापस उसी जगह पर जोड़ देना।


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