भारत में हुई थी, 1 से 9 तक के अंको की खोज !
भास्कराचार्य प्रथम
इतिहास में दो भास्कराचार्यों की चर्चा मिलती है। भास्कराचार्य प्रथम ने ही हिन्दू दाशमिक पद्धति में लिखना आरंभ किया था। उन्होंने आर्यभट्ट की कृतियों की टिकाएं लिखीं और उनके ज्ञान को विस्तार दिया।
भास्कराचार्य प्रथम का जन्म 600 ईसवी के आस - पास हुआ था। भास्कराचार्य प्रथम सातवीं शताब्दी के गणितज्ञ थे।
हिन्दू दाशमिक क्या है -
भारत ने गणना हेतु " 9 अंकों तथा शून्य " का आविष्कार किया था। वर्तमान समय में सारा संसार जिन " 1 से लेकर 9 तक " के अंकों के सहारे " विज्ञान और गणित " आदि की गणनाएं करता है, वे भारतीय अंक ही हैं जिन्हें हिन्दू दाशमिक पद्धति कहा जाता है।
बाद में इसे " हिन्दू-अरबी अंक " , " हिन्दू अंक ", " अरबी अंक " के नामों से पुकारा जाने लगा। यूनानियों ने भी यही पद्धति अंगीकार की थी। अरबी भाषा में इन अंकों को हिन्दसा कहते हैं।
अरबी लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती है, किंतु " अरबी में अंक " बाएं से दाएं लिखे जाते हैं।
" रोमनों की अंक प्रणाली " अलग थी। भारतीयों से प्रतिस्पर्धा के चलते वे " भारतीय अंक प्रणाली " को स्वीकार नहीं करना चाहते थे लेकिन 12 वीं शताब्दी में उनको इस प्रणाली को अपनाना पड़ा।
इन अंकों के कारण ही आधुनिक " विज्ञान और उद्योग" में क्रांति हुई। आजकल हिन्दी या अंग्रेजी के जिन अंकों का प्रयोग हम करते हैं उनका प्रारंभ भारत में हुआ था।
भास्कराचार्य प्रथम की पुस्तकें
भास्कराचार्य प्रथम ने आर्यभट्टीय पर सन् 629 में " आर्यभट्टीयभाष्य " नामक टीका लिखी, जो संस्कृत गद्य में लिखी " गणित एवं खगोलशास्त्र " की " प्रथम पुस्तक " है।
आर्यभट्ट की परिपाटी में ही उन्होंने " महाभास्करीय एवं लघुभास्करीय " की नामक दो खगोलशास्त्रीय ग्रंथ भी लिखे।


Aisa kitab that math ka,🤨🤨
ReplyDeleteAap ko kis kitab ke bare me jankari chaiye,uska naam comment me mujhe likhe.
ReplyDeleteDhanyawad 🌷