प्राचीन भारत के पांच खोजकर्ता !
आज हम अपने आस - पास कुछ बहुत ही जटिल आविष्कार देखते है, वो नए नहीं है। प्राचीन भारत के ऋषि, मुनियों ने इस ज्ञान की खोज पहले ही कर ली थी।
परमाणुशास्त्र, बीमारियों, नक्षत्रों से लेकर विमान शास्त्र (ऐरोप्लेन) तक की खोज कर ली गई थी और वो आज के मुकाबले काफी उन्नत तकनीक के भी थे।
उनमें से कुछ यहां है -
1) आचार्य कणाद -
आचार्य कणाद " परमाणुशास्त्र " के जनक माने जाते हैं।
आज के दौर में अणु विज्ञानी " जॉन डाल्टन " से भी हजारों साल पहले आचार्य कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।
न्यूूटन ने 1686 में गति का नियम प्रतिपादित किया था और
आचार्य कणाद ने 600 बीसी में " गति के नियमों " को स्थापित कर दिया था यानी न्यूटन से करीब 2500 साल पहले। ऐसे में स्पष्ट है कि गति के सिद्धांत के जनक न्यूटन नहीं बल्कि आचार्य कणाद थे।
आज के दौर में अणु विज्ञानी " जॉन डाल्टन " से भी हजारों साल पहले आचार्य कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।
न्यूूटन ने 1686 में गति का नियम प्रतिपादित किया था और
आचार्य कणाद ने 600 बीसी में " गति के नियमों " को स्थापित कर दिया था यानी न्यूटन से करीब 2500 साल पहले। ऐसे में स्पष्ट है कि गति के सिद्धांत के जनक न्यूटन नहीं बल्कि आचार्य कणाद थे।
2) आचार्य चरक -
" चरक संहिता " जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ और त्वचा चिकित्सक भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने " शरीर विज्ञान, गर्भ विज्ञान, औषधि विज्ञान " के बारे में गहन खोज की।
आज के दौर की सबसे ज्यादा होने वाली " डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग " जैसी बीमारियों के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले उजागर की।
3) ऋषि भारद्वाज -
ऋषि भारद्वाज अंतरिक्ष वैज्ञानिक थे।
आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया।
वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ऋषि भारद्वाज ने विमान शास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।
4) गर्ग मुनि -
गर्ग मुनि " नक्षत्रों के खोजकर्ता " माने जाते हैं यानी सितारों की दुनिया के जानकार। यह गर्ग मुनि ही थे, जिन्होंने " श्रीकृष्ण एवं अर्जुन " के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ।
कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस्या थी।
इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनि ने पहले बता दिए थे।






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