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महिला स्वतन्त्रता सेनानियों को मिली सजाएं ?

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भारत की स्वतन्त्रता में महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और जिनके कारण कई महिलाओं को कड़ी सजा और जुर्मानों का भुक्तान करना पड़ा था। जिनमें से ज्यादातर महिलाओं का नाम भी बहुत कम लोग जानते है। सत्यप्रकाश गुप्ता की पुस्तक स्वाधिनता आन्दोलन और महिला सहभागिता में इसके बारे में जानकारी मिलती है। जो यहां है -  1) रानी राजेंद्र कुमारी - 1) सन् 1930 में ढाई साल के बच्चे के साथ 6 महिने तक जेल में रही। 2) सन् 1932 भारतीय दण्ड संहिता की धारा  143/188  के 21 ऑर्डिनेंस के अन्तर्गत 1 वर्ष की कैद और 60 रुपए का जुर्माने की सजा सुनाई। 3) सन् 1933 में कॉन्ग्रेस आन्दोलन के सिलसिले में फौजदारी कानून संशोधन अधिनियम की धारा 17(1) क्रिमिनल लॉ के अंतर्गत 28 अगस्त ,1933 को 6 माह की कैद और 50 रुपए के जुर्माने की सजा मिली। 4) सन् 1934 में फौजदारी कानून संशोधन अधिनियम की धारा 87 के  अंतर्गत 6 माह की कैद और 100 रुपए जुर्माना।   2) श्रीमती सरयू देवी -  1) सन् 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेंगे के कारण भारत प्रतिरक्षा कानून के धारा 129 के अंतर्गत 6 माह कैद की सजा मिली। 2) स...

बीना दास से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण तिथियां !

1) 24 अगस्त ,1911 - जन्म बीना दास का जन्म ब्रिटिश कालीन बंगाल के कृष्णानगर में हुआ था। इनके पिता बेनी माधव दास एक अध्यापक और मां का नाम सरला दास था।  2) 1937 में -  कॉन्ग्रेस की सरकार बनने के बाद कई राजबंदीयों के साथ बिना दास को भी रिहा कर दिया गया। 3) 6 जनवरी ,1932 -  अपने कॉलेज के दीक्षांत समारोह में अंग्रेज गर्वनर स्टैनली जैक्सन पर पांच गोलियां चलायी और उसी समय उनकी गिरफ्तारी भी हो गई। केवल एक दिन की कार्यवाही के बाद बिना दास को नौ वर्ष की सजा हुई। 4) 1942 - भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्सा लेने के कारण उन्हें जेल में डाल दिया गया। 5) 1946 से 1951 -   तक वे बंगाल विभाजन सभा की सदस्य रही।  6) 1947 - जतिंशचंद्र भौमिक और बिना दास ने विवाह कर लिया। 7) 26 दिसम्बर ,1986 - ऋषिकेश में इनका निधन हो गया।

भीकाजी कामा से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण तिथियां !

1) 24 सितंबर,1861 को बम्बई (मुम्बई) में इनका जन्म, एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। 2) 1885 में इनकी शादी रूस्तम कामा से हुई। 3) 1902 में वो लंदन चली गई। 4) 1904 में मैडम भीकाजी की भेंट श्यामजी कृष्णवर्मा से हुई। 5) 1907 में सरदार सिंह राणा के सहयोग से उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज तैयार कराया। 22 अगस्त ,1907 को जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में आयोजित 7 वीं अंतरराष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में इस ध्वज को फहराया था।  6) 1896 में मुंबई में प्लेग की बीमारी के दौरान बीमारों की सेवा की और बाद में खुद भी इस बीमारी से ग्रस्त हो गई, ईलाज के बाद वे स्वस्थ हो गई। 7) 3 अगस्त, 1936 में बम्बई (मुम्बई) के अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद मैडम भीकाजी का निधन हो गया। 8) 26 जनवरी,1962 को उनके नाम का भारतीय डाक टिकट जारी किया गया।

मैडम भीकाजी कामा एक महिला क्रांतिकारी भाग - 2

  विवाह भीकाजी के ससुर बम्बई के प्रसिद्ध प्रोफ़ेसर खुरशेदजी रूस्तम कामा थे। उनके पति का नाम रूस्तम कामा था, वे पेशे से एक वकील थे। 3 अगस्त, 1885 को इन दोनों का विवाह हुआ था।  1896 में जब बंबई में प्लेग महामारी फैली तब भीकाजी ने उनकी पूरी सेवा की।  1901 में भीकाजी रोगग्रस्त हो गई और डॉक्टर ने उन्हे विदेश जाकर ईलाज कराने की सलाह दी। 

मैडम भीकाजी कामा एक महिला क्रांतिकारी भाग - 3

  क्रांतिकारी गतिविधियां इटली के महान क्रांतिकारी मेजिनी  के विचारों से वे काफ़ी प्रभावित थी। लंदन में उन दिनों सरोजिनी नायडू, श्यामजी कृष्ण वर्मा और सरदार सिंह जी रेवाभाई राणा आदि भारतीय रह रहे थे।  सबसे पहले एच. एस. हिंडमैन ने कांग्रेसी नेताओं द्वारा अपनायी गयी नीतियों का विरोध किया। मैडम कामा ,श्यामजी कृष्ण वर्मा और सरदार सिंह जी रेवाभाई राणा भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ब्रिटिश कमेटी से असंतुष्ट थे।  श्यामजी कृष्ण वर्मा लंडन में भारतीय क्रांति को पोषित कर रहे थे। उन्होंने 1905 में " द इंडियन सोशियोलॉजिस्ट " नामक अंग्रेज़ी मासिक पत्रिका निकाली। मैडम कामा इस पत्रिका के लिए लिखती थी।  1 जुलाई,1905 इंडियन हाउस  का उदघाटन किया गया था। 1909 में इन्होंने वंदे मातरम् पत्र का प्रकाशन भी किया और इसके संपादक लाला हरदयाल थे। इन्होंने मदन लाल ढींगरा की याद में  मदन तलवार  नामक पत्रिका भी बर्लिन में चलायी। मृत्यु 13 अगस्त 1936 को मुंबई में उनका निधन हो गया।

मैडम भीकाजी कामा एक महिला क्रांतिकारी भाग - 1

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  प्रारंभिक जीवन इनका पूरा नाम मैडम भीकाजी रुस्तम कामा था। भीकाजी का जन्म 24 सितंबर 1861 को बम्बई (मुम्बई ) के एक संपन्न पारसी परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सोराबजी फ्रामजी पटेल और मां का नाम जीजाबाई था। सोराबजी उस समय के प्रसिद्ध व्यापारी थे। भीकाजी के कुल 9 भाई बहन थे।  एलेक्जेंड्रा गर्ल्स एजुकेशनल इंस्टिट्यूशन से भीकाजी ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पायी। भीकाजी क्रिकेट में भी दिलचस्पी रखती थी। 

यंत्र सर्वत्र पुस्तक किसने लिखी ?

 यन्त्र सर्वत्र नामक पुस्तक (जिसका एक भाग वैमानिक प्रकरण) भी है।  यह वैमानिक प्रकरण 8 अध्यायों , 100 अधिकरणों और 500 सूत्रों में महर्षि भरद्वाज ने रचा था। जिसमें विमानों को कैसे बनाया जाय, इसकी पूरी जानकारी चित्रों द्वारा दी गई है।   रामायण का पुष्पक विमान इसी का एक उदाहरण है। राजा भोज " समराड़ग्ण सूत्रधार" में भी पारे से उड़ने वाले विमान के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। युक्तिकल्पतरु  में भी विमान की चर्चा आती है। इसमें गैस, बिजली, चुंबक ,वायु आदि कई प्रकार के विमानों के बारे में बताया गया है। इसमें बताए गए तरीके आधुनिक विमान से मिलते है।  इस पुस्तक में " रुक्मा विमान " का जिक्र है , जिसमें एक व्यक्ति के बैठने की जगह होती थी। वैमानिक प्रकरण में आने वाले आचार्यों के नाम - नारायण मुनि , शौनक , गर्ग , वाचस्पति , चक्रयणी, धुंडीनाथ , विश्वनाथ , गौतम , लल्ल , विश्वंभर , अगस्त्य , बुडिल , गोभिल , शाकटायन , अत्रि , कपर्दी , गालव , अग्निमित्र , वाताप , सांब , बोधानंद , भरद्वाज , सिद्धनाथ , ईश्वर , आश्वलायन , व्यास , पराशर , सिद्धकोठ , अंगिरा , विसरण , ...

अभिज्ञान शकुंतलम किसने लिखा है ?

 अभिज्ञान शकुंतलम को कालिदास ने लिखा है। यह एक प्रसिद्ध नाटक है। इसमें दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कहानी को बताया गया है।

अर्थशास्त्र को सबसे पहले किसने प्रकाशित किया ?

 अर्थशास्त्र को सबसे पहले 1909 में मैसूर राज्य के ग्रंथशाला के अध्यक्ष श्रीयुत शामशास्त्री ने प्रकाशित कराया और इसका अंग्रेज़ी भाषा में भी अनुवाद किया। 

चाणक्य के कितने नाम है ?

 चाणक्य को विष्णुगुप्त,कौटिल्य , वात्स्यायन , मल्लनाग , वराणक , कात्यायन , पक्षिलस्वामी , अंगल और द्रमील भी कहा जाता है।

चरक संहिता किसने और कब लिखी ?

 चरक संहिता चरक ने लिखा है। इसमें 120 अध्याय को 8 भागों में विभाजित किया गया है। इसे लगभग 2400 वर्ष पूर्व लिखा गया। इसमें सभी तरह के रोग और उनसे जुड़ी आयुर्वेदिक दवाओं की जानकारी मिलती है। चरक संहिता में शरीर के सभी अंगों के लिए लगभग 2000 दवाओं के बारे में बताया गया है और 1 लाख पौधो और जड़ी बूटियों का दवाओं के रुप में प्रयोग के बारे में जानकारी दी गई है। 

किसने लिखी थी कामसूत्र ?

 कामसूत्र पुस्तक ऋषि वात्स्यायन ने लिखा है। इसमें कामसूत्र को कई अधिकरणों में बांटा गया है। वात्स्यायन ऋषि आजीवन ब्रह्मचारी रहे।

भृगु संहिता किसने लिखी ?

 " भृगु संहिता " महर्षि भृगु द्वारा रचित एक अदभुत ज्योतिषीय ग्रंथ है।  जिससे किसी भी इंसान के तीनों जन्मों का फल निकाला जा सकता है। इस पुस्तक के द्वारा मनुष्य के भूत, भविष्य और वर्तमान की जानकारी मिलती है।

लीलावती का अनुवाद विदेशी पर्शियन भाषा में किसने किया ?

 सन् 1547 में लीलावती का पर्शियन भाषा में अनुवाद " फैजी" ने किया। सन् 1816 में लीलावती  पुस्तक का अंग्रेज़ी में प्रथम अनुवाद टेलर महाशय ने किया और दुसरा अनुवाद कौलब्रूक ने 1817 में किया।

अर्थशास्त्र की रचना किसने की ?

 अर्थशास्त्र (पुस्तक) की रचना चाणक्य (कौटिल्य) ने की है। यह एक संस्कृत में लिखा ग्रंथ है। अर्थशास्त्र को लगभग  321 BC से 300 BC के बीच में लिखा गया था।  अर्थशास्त्र में 15 अधिकरण , 180 प्रकरण,150 अध्याय  और 350 करिकाएं ( श्लोक) है।

लीलावती पुस्तक किसने लिखी ?

 लीलावती की रचना भास्कराचार्य द्वितीय ने की है। यह पुस्तक सिद्धान्तशिरोमणि का ही एक भाग है। इसे लीलावती या पाटी गणित भी कहा जाता है। लीलावती अंकगणित और महत्त्वमान (क्षेत्रफल, घनफल आदि) का ग्रंथ है।  

रावण संहिता किसने लिखी ?

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रावण संहिता रावण द्वारा लिखा , संस्कृत का एक ग्रंथ है।  यह पुस्तक पाँच खंडों में विभाजित हैं। जिसके पहले खंड में रावण के जीवन के बारे में पूरी जानकारी दी गई है।  दूसरे खंड में शिव जी की उपासना से जुड़ी बातों,जैसे पंचाक्षरी साधना लिंग उपासना आदि के बारे में बताया गया है। तीसरे खंड में तंत्र मंत्र साधना से जुड़े रहस्यों की जानकारी मिलती है। तंत्र का एक भाग आयुर्वेद से संबंधित होता हुआ भी ,उससे बिल्कुल अलग होता है। चौथे खंड में इसी की जानकारी प्राप्त होती है। इसमें नवजात शिशुओं और उसके माताओं के सही स्वास्थ के भी नुस्खे दिए गए है। पांचवां खंड ज्योतिष से जुड़ा हैं। इस खंड में ऐसी चीजों की जानकारी शामिल नहीं की गई है जो भृगु संहिता में मिलती है। 

अष्टांगहृदयम् किसने लिखी है ?

 अष्टांगहृदयम् को वाग्भट ने लिखा है। इसमें रोगों और उनके उपचारों के बारे में जानकारी मिलती है।

सुश्रुत संहिता किसने लिखी ?

 महर्षि सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता की रचना की है। इसमें चिकित्सा, चिकित्सा में प्राचीन काल में उपयोग में लाए गए औजार और शल्य चिकित्सा से सम्बन्धित जानकारियां मिलती है।

हनुमान चालीसा की रचना किसने की ?

 तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा की रचना की है। 

वेद कितने है ?

 वेद चार है - 1) ऋग्वेद 2) यजुर्वेद 3) अथर्ववेद  4) सामवेद 

पुराण कितने है ?

 18 पुराण होते है -  1) शिव पुराण          2) अग्नि पुराण 3) मत्स्य पुराण       4) भविष्य पुराण 5) गरुण पुराण        6) स्कंद पुराण 7) पद्म पुराण          8) विष्णु पुराण 9) वायु पुराण          10) भागवत पुराण 11) नारद पुराण      12) मार्कण्ड पुराण 13) लिंग पुराण     14) ब्रह्मवैवर्त पुराण 15) वराह पुराण       16) वामन पुराण 17) कूर्म पुराण         18) ब्रह्माण्डपुराण

रामचरित्रमानस की रचना किसने की ?

 रामचरित्रमानस तुलसीदास जी ने लिखा था। इसे तुलसीदास जी ने विक्रम संवत् 1631 में (1573 ईसवी) में शुरू किया और विक्रम संवत् 1633 में (1575 ईसवी) में पूरा किया।

रामायण की रचना किसने की ?

रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने रामचन्द्र जी के जीवन काल में ही की थी। इसके 7 काण्ड है। 1) बालकाण्ड   2 ) अयोध्याकांड   3) अरण्यकाण्ड 4) किष्किंधा काण्ड 5) सुंदर काण्ड 6 ) युद्ध काण्ड  7) उत्तर काण्ड

महाभारत के रचयिता कौन थे ?

महाभारत को श्री वेदव्यास जी ने लिखा था। वेदों का वर्गीकरण करने के कारण उनको ये नाम मिला था। उनका जन्म का नाम "कृष्णद्वैपायन " था।  वेदव्यास जी महाराजा शांतनु की दुसरी पत्नि सत्यवती और पराशर ऋषि (पराशर ऋषि सत्यवती के पहले पति थे) के संतान थे। 

पांडवों के पुत्रों की मृत्यु कैसे हुई ?

अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु महाभारत युद्ध में चक्रव्युह भेदने के समय में हो गई थी। द्रौपदी के पांचों पुत्रों ( प्रतिविन्ध्य,सुतसोम ,श्रुतरकीर्ति, शतानिक, श्रुतकर्मा  ) को  महाभारत का युद्ध जीतने के बाद, शिविर में विश्राम करते समय अश्वथामा ने क्रोधवश सोते समय सभी की हत्या कर दी थी। भीमसेन और हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच की मृत्यु महाभारत के युद्ध के दौरान कर्ण के  हाथों हुई थी। अर्जुन और उलूपी के पुत्र इडावन‌् को महाभारत युद्ध के दौरान  अलंबुष  ने मार डाला,अलंबुष ने इडावन का सर धड़ से अलग कर दिया था।

लाक्षागृह प्रकरण के बाद पांडव कब तक छिपे रहे

 लाक्षागृह से बचकर निकलने के बाद कुन्ती और पांचों पांडव एक ब्राह्मण परिवार के साथ रहे। फिर  द्रौपदी के स्वयंवर के बाद, पांचों पांडवों का विवाह द्रौपदी से हुआ और ये समाचार सुनकर धृतराष्ट्र ने विदुर जी को उन्हे वापस हस्तिनापुर लाने के लिए भेजा। द्रोपदी को साथ लेकर सभी हस्तिनापुर लौट आए।

7 दिसंबर को क्या खास है ?

1) हैदर अली की मृत्यु   (7 दिसंबर,1782) हैदर अली की मृत्यु 7 दिसम्बर, 1782 में हुई थी। आरनी की विजय के बाद उसकी कमर में एक फोड़ा निकल आया, जिसके कारण उन्हें अरकाट लौट आना पड़ा। यहां आकर उन्हें पता चला कि इस फोड़े का कोई उपचार नहीं है। बाद में इसी कारण से हैदर अली की मृत्यु हो गई। इनके शव को मैसूर की राजधानी श्रीरंगपट्टम के लाल बाग में दफन किया गया। 2) आर्म्ड फोर्सेस फ्लैग डे (7 दिसंबर ) भारत की आजादी के बाद 1949 में यह फैसला लिया गया था कि भारत की आर्म्ड फोर्सेस को यदि कोई नुकसान हो जाता है तो ऐसी परिस्थिति के लिए एक फंड होना चाहिए। जिसमें आम जनता भी अपनी मर्जी से जितना चाहे धनराशि का योगदान दें सकती है। इस धनराशि का उपयोग युद्ध में मारे गए या घायल हुए सैनिकों के परिवार की मदद के लिए,सैनिक कल्याण बोर्ड के माध्यम से खर्च की जाती है।  3) जतिंद्रनाथ मुखर्जी उर्फ बाघा जतिन का जन्म (7 दिसम्बर,1879) जतिंद्रनाथ मुखर्जी का जन्म उस समय के अविभाजित बंगाल के नादिया जिले के कुष्टिया नामक स्थान पर हुआ था।  इनकी मृत्यु 10 सितंबर, 1915 में हुई थी।

कुछ पुरुष क्रांतिकारियों के नाम भाग - 2

36) अल्लुरी सीताराम राजू 37) शचिंद्रनाथ सान्याल 38) मौलाना महमूद हसन 40) मन्मठनाथ गुप्त 41) मथुरा सिंह 42) बलवंत सिंह 43) लाला हरदयाल 44) ऊधम सिंह 45) करतार सिंह सराभा 46) मदन लाल ढींगरा 47) अम्बा प्रसाद 48) राजगुरू  50) राम प्रसाद " बिस्मिल 51) वीर सावरकर 52) राजा महेंद्र प्रताप 53) शंभूनाथ आजाद 54) नंदगोपाल 55) परमानंद 56) शचींद्रनाथ बक्शी 57) लाला हनुमत सहाय 58) विष्णु गणेश पिंगले 59) मुकुंदीलाल " भारतवीर" 60) मेवासिंह  61) बतासिंह धामियां  62) सोहन लाल पाठक 63) भूपेंद्रनाथ दत्त 64) असफाकउल्ला खान 65) वासुदेव चापेकर 66) दामोदर चापेकर 67) विनायक आप्टे 68) महादेव विनायक रानाडे 69) खंडेराव साठे 70) बालकृष्ण चापेकर 71) गंगाधर तिलक 72) लाला लाजपत राय

कुछ प्रसिद्ध महिला क्रान्तिकारियों के नाम भाग - 1

  1) कनकलता भरुआ 2) भीकाजी कामा 3) तारारानी श्रीवास्तव 4) मूलमति 5) लक्ष्मी सहगल 6) कमलादेवी चटोपाध्याय 7) कित्तूर रानी चेन्नम्मा 8) सुचेता कृपलानी 9) कस्तूरबा गांधी 10) प्रीतीलता वादेदार  11) विजयलक्ष्मी पंडित  12) स्वरूप रानी नेहरू 13) अरुणा आसफ अली 14) भीमाबाई होलकर 15) झलकारी बाई 16) पार्वती देवी 17) बिना दास 18) उदा देवी 19) दुर्गावती वोहरा 20) सरोजिनी नायडू 21) मतांगिनी हजारा 22) बेगम हजरत महल 23) लक्ष्मी बाई 24) अरुणा आसफ अली 25) रानी ईश्वर कुमारी 26) उर्मिला देवी शास्त्री  27) मीरा दत्त 28)कमलादास गुप्ता 29) अजीजन बाई  30) शांति घोष  31) सुनीति चौहान 32) रेनू सेन 33) रानी गिडालू ( गाइडिन्ल्यू ) 34) क्षिरोदा सुंदरी चौधरी 35) दुकड़ी बाला  36) रानी अवंती बाई 37) प्रकाशवती पाल 38) इंदुमती सिंह 39) सुशीला मित्र 40) लाडो रानी जुल्सी 41) कुमारी मैना 42) सत्यवती

कुछ प्रसिद्ध महिला क्रान्तिकारियों के नाम भाग - 2

43) बैजबाई 44) प्रतिभा भद्र 45) ननीबाला देवी 46) विमल प्रतिभा देवी 47) जमुना बाई 48) हेलेना दत्त 49) दुर्गाबाई देशमुख 50) मणि बेन बल्लभ बाई पटेल  51) वनलता दास गुप्ता 52) वनलता सेन चक्रवर्ती 53) सुशीला मोहन 54) सावित्री देवी  55) सरस्वती बाई लोधी 56) चारू  57) चौहान रानी 58) हरिशरण कौर 59) सरोजदास नाग 60) चारू शीला 61) माया घोष 62)बेला मित्रा 63)शोभा रानी दत्त 64)जिंदा कौर 65) नेली सेन गुटा  66) लीला नाग  67) सहोदताबाई राय 68) सुहासिनी गांगुली 68) मातंगिनी हजारा 69) मार्ग्रेड कॉन्जेस 70) सरला देवी चौधरानी  71) अमानबाई (अमनबी)  80) महारानी तपस्विनी  81) देवी चौधरानी 82)शन्नो देवी  83)कल्पना दत्त  84)कल्याणी दास  85)उज्जवला मजूमदार 86) शास्त्री देवी

कुछ पुरुष क्रांतिकारियों के नाम भाग - 1

1) अवध बिहारी  2) बसंत कुमार विश्वास  3)खुशीराम  4) मास्टर अमीरचंद्र  5) वासुदेव बलवंत फडके  6) अनंत लक्ष्मण कनहेर  7) कृष्णजी गोपाल करवे  8) गणेश दामोदर सावरकर 9)बाग जातिन 10) कुशल कोनवार 11) सूर्य सेन (मास्टर दा) 12) अनंत सिंह 13)श्री अरबिंदो घोष 14) रश बेहारी बोस 15) उबायदुल्ला सिंधी 16) जोगेश चंद्र चटर्जी 17) बायकुन्था शुक्ला 18) अंबिका चक्रवर्ती 19) बादल गुप्ता 20) दिनेश गुप्ता 21) बेनॉय बसु 22) बरींद्र कुमार घोष 23) उल्लास दत्ता  24) हेमचंद्र कनुनगो 25) बसवाना सिंह (सिन्हा) 26) भावभूषण मित्र 27) वीर भाई कोटवाल 28) ओम प्रकाश विज 29) भगत सिंह 30) चंद्रशेखर तिवारी " आजाद" 31) खुदीराम बोस 32) प्रफुल्ल चाकी 33) रोशन सिंह 34) अजीत सिंह 35) सुखदेव थापर

विदेशी भूमि पर भारतीयों के अखबार और संस्थाएं

1) तारकनाथ दास  " फ्री हिन्दुस्तान " नामक अखबार निकालते थे, और " समिति" नामक संस्था के प्रधान भी थे। इस संस्था से सारंगधर दास,जी. डी. कुमार,शैलेंद्र बोस ,लस्कर और ग्रीन नामक एक अमेरिकी भी जुड़े थे। 2) रामनाथ पूरी ने 1908 में ओकलैंड में "हिन्दुस्तान एसोसिएशन " नाम की एक संस्था बनायी और "सर्कुलर ऑफ फ्रीडम" नाम से एक अख़बार भी निकाला। 3) जी. डी. कुमार ने बैंकोवर में " स्वदेशी सेवक " नाम से अखबार निकाला। 4) सुंदर सिंह ने " आर्य " नामक अखबार निकाला। 5) रहीम और आत्माराम ने बैंकोवर में "यूनाइटेड इण्डिया लीग " का गठन किया। 6) लाला हरदयाल ने सैन फ्रांसिसको में "हिंदुस्तानी स्टूडेंट्स एसोसिएशन" नाम की एक संस्था गठित की। 7) 1913 में एस्टोरिया की "हिंदुस्तानी एसोसिएशन" की गठन हुआ। करीम बक्श, नवाब खान, बलवंत सिंह , केसरी सिंह और करतार सिंह सराभा इसके सदस्य थे। 8) ठाकुर दास और उनके मित्रो ने सेंटजॉन में रहने वाले भारतीयों के लिए एक संस्था गठित की। 1913 में शिकागो में "हिंदुस्तानी एसोसिएशन ऑफ ...

प्रीतीलता वादेदार भाग - 3

  अंग्रेज़ी क्लब पर हमला और विरगति   चटगांव में "पहाड़तल्ला " के निकट अंग्रजों का एक बदनाम क्लब चलता था, जिसमें भारतीयों की खुलकर निंदा की जाती थी। उस क्लब के बाहर लगे बोर्ड पर लिखा था ," भारतीय और कुत्तों का आना मना है।"  23 दिसंबर, 1932 को मात्र 21 साल की उम्र में प्रीतीलता के नेतृत्व में तीन क्रान्तिकारियों ने क्लब के तीनों फाटकों से अंग्रेजों पर गोलियां चलाना शुरू कर दिया। कुछ देर में दोनों तरफ से गोलियां चलने लगी। प्रीतीलता के अलावा किसी क्रांतिकारी को चोट नहीं लगी।  उस समय क्लब में मौजूद सभी अंग्रेज मारे गए। तभी वहां अंग्रेजी सैनिक गाडियां आ गई। प्रीतीलता के सीने से खून निकल रहा था , इसलिए उन्होंने सभी साथी क्रान्तिकारियों को वहां से भेज दिया और खुद वही रुक गई। जब उन्हें लगा की वे वहां से भागने की हालत में नहीं है तो प्रीतीलता अपने पास रखी जहर की पुड़िया खा कर वीरगति को प्राप्त हो गई।  प्रीतीलता का कहना था ," यदि हमारे भाई मातृभूमि की स्वाधीनता के संघर्ष में शामिल हो सकते है, तो हमारी बहनें क्यों नहीं।"  प्रीतिलता की उस समय की रोकी गई डिग्री 80 स...

प्रीतीलता वादेदार भाग - 2

  आई आर ए में शामिल होना अंग्रेजों ने प्रीतिलता के क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने का कारण देकर उनकी डिग्री रोक दी। इसके बाद वे चटगांव लौट आयी और एक बालिका विद्यालय में पढ़ाने लगी।  सन् 1922 के बीच में उनकी मुलाकात सुर्यसेन से हुई, जिन्हें "मास्टर दा" भी कहते थे। "मास्टर दा" से प्रीतिलता ने बन्दूक चलाने का प्रशिक्षण लिया था। वे प्रीतीलता की देशभक्ति की भावना से काफ़ी प्रभावित हुए और उन्हें क्रांतिकारी संगठन में शामिल होने के लिए कहा।  18 अप्रैल 1930 को अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के लिए " इंडियन रिपब्लिकन आर्मी " (आईआरए) का गठन हुआ।  "आईआरए " महिलाओं को अपने ग्रुप में शामिल करने के खिलाफ था। प्रीतिलता के काफी संघर्ष के बाद "आईआरए " में शामिल हो पायी। 

प्रीतीलता वादेदार भाग - 1

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  प्रारंभिक जीवन प्रीतिलता वादेदार एक स्वतंत्रता सेनानी थी। इनका जन्म चटगांव में (आज के बंगाल में) 5 मई,1911 को हुआ था। इनके पिता जयबंधु वादेदार राष्ट्रीय विचारों के थे और देशभक्ति उनको विरासत में मिली थी। प्रीतीलता ने " बेथुन कॉलेज" से स्नातक किया। यह कॉलेज कोलकाता में है। 

झलकारी बाई भाग - 7

  वीरगति की प्राप्ति झलकारी बाई की मृत्यु के विषय में कई मत है कुछ के अनुसार युद्ध के दौरान जब अंग्रेज़ों को यह बात पता चला कि उन्हें धोखा देकर लक्ष्मीबाई को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया गया है, तब उन्होंने झलकारी बाई को फांसी पर चढ़ा दिया। एक अन्य मत के अनुसार अंग्रेजों को जब झलकारी बाई के द्वारा, रानी लक्ष्मीबाई को बचाने के लिए किये गए कार्य के बारे में पता चला ,तब अंग्रेजों ने झलकारी बाई पर गोली चलायी ,जिसके कारण वह घोड़े से गिर गई और सैंकड़ों गोलियां उनके ऊपर दाग की गई और वे झांसी के लिए शहीद हो गई। 22 जुलाई , 2001 को झलकारी बाई के सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया। 

झलकारी बाई भाग - 6

  अंतिम युद्ध अंग्रेजों से इस लड़ाई को जारी रखने के लिए रानी लक्ष्मीबाई का जीवित रहना जरूरी था। इसलिए झलकारी बाई और रानी के सभी सुभाचिंतकों ने उन्हें महल से जीवित बाहर निकलने के लिए योजना बनायी, झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई की तरह हुबहू कपड़े , गहने और पगड़ी पहनी और घोड़े पर बैठकर अंग्रेज़ी सेना के सामने गई। रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल होने के कारण अंग्रजों ने झलकारी बाई को ही रानी समझ लिया और उन्हें पकड़ने में अपनी पूरी ताकत लगा दी। इसी का फायदा उठाकर रानी वहां से सुरक्षित स्थान पर चली गई।

झलकारी बाई भाग - 5

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  ब्रिटिश सेना से युद्ध 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में झलकारी बाई की वीरता की मिसाल थी।  गोवर्धनलाल पुरोहित जी की पुस्तक से 1857 का भारत मानचित्र इतिहासकारों के अनुसार 23 मार्च,1858 को "जनरल ह्यूरोज" ने अपनी विशाल सेना के साथ झांसी पर आक्रमण कर दिया। तब रानी लक्ष्मीबाई ने अपने 4000 सैनिकों के साथ वीरता से अंग्रेजो का सामना किया था। रानी लक्ष्मीबाई "काल्पी " में पेशवा की सहायता की प्रतीक्षा कर रही थी। लेकिन उन्हें सहायता नहीं मिली क्योंकि तात्या टोपे "जनरल ह्यूरोज" से पराजित हो चुके थे।  रानी लक्ष्मीबाई के एक विश्वासपात्र दूल्हेराव ने अंग्रेजों से मिलकर उनके लिए किले का द्वारा खोल दिया। जिससे ब्रिटिश सेना महल में घुस गई और रानी के बहुत सारे सैनिक मारे गए।  रानी लक्ष्मीबाई के एक विश्वासपात्र दूल्हेराव ने अंग्रेजों के लिए किले का द्वारा खोल दिया। जिससे ब्रिटिश सेना महल में घुस गई और रानी के बहुत सारे सैनिक मारे गए। 

झलकारी बाई भाग - 3

 झलकारी बाई का साहस जब झलकारी बाई छोटी थी , तब वो जंगल में अपने पशुओं को चराने गई थी, तभी एक बाघ ने उनके ऊपर हमला किया। झलकारी बाई ने उस बाघ पर लाठी से जोर से वार किया और फिर वह तब तक उस बाघ को लाठी से पिटती रही, जब तब उसकी मृत्यु नहीं हो गई।  1857 के संग्राम के समय झलकारी बाई की वीरता को देखकर अंग्रेज जनरल ने कहा था कि " यदि भारत की 1 प्रतिशत महिलाएं भी झलकारी बाई की तरह हो जाये, तो अंग्रेज़ों को भारत छोड़ना ही पड़ेगा।" 

झलकारी बाई भाग - 4

  कोरी सेना बुंदेलखंड में कोरी - कोली, खेती - कपड़ा बुनने के साथ ही कुश्ती, मल्लयुद्ध और तीरंदाजी में माहिर थे।  उन्नाव दरवाजे पर कोरियों की तोप लगी हुई थी। यहां कोरी सैनिक तैनात रहते थे और यहां पूरण कोरी गोलंदाज (झलकारी बाई के पति) तैनात रहते थे। यहीं पर अंग्रेजों द्वारा चलाए गए एक गोले से झलकारी बाई के पति वीरगति को प्राप्त हो गए।

झलकारी बाई भाग - 2

  लक्ष्मीबाई से पहली मुलाकात रानी लक्ष्मीबाई से झलकारी बाई की पहली मुलाकात महल में गौरी पूजा के दौरान हुई थी।  लक्ष्मीबाई को जब इनकी वीरता के बारे में जानकारी मिली तब उन्होंने , झलकारी बाई को अपनी "दुर्गा दल" में शामिल कर लिया। झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई की अंगरक्षक भी थी। जल्द ही उनकी काबिलियत देखकर लक्ष्मीबाई ने उन्हें "दुर्गा दल" की कमांडर बना दिया।

झलकारी बाई भाग - 1

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  प्रारम्भिक जीवन झलकारी बाई का जन्म बुंदेलखंड के "भोजला गाँव" में 22 नवम्बर,1830 में हुआ था। उनके पिता का नाम सदोवा और माता का नाम जमुनाबाई था।  बहुत ही कम आयु में झलकारी बाई की माता का देहांत हो गया। इनके पिता ने इन्हें लड़कों की तरह पाला।  इनके पिता ने इन्हे तीरंदाजी , घुड़सवारी, भला चलना और तलवार बाजी भी सिखायी।  विवाह इनका विवाह झांसी के दरबार के गोलंदाज और एक विख्यात योद्धा " पूरण कोरी " के साथ हुआ किया था। झलकारी बाई अपने पति के पैतृक - पेशा कपड़ा बुनने के कार्य को करती थी। 

सरोजिनी नायडू भाग - 4

1) 1914 में सरोजिनी नायडू को " रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ लिट्रेचर की उपाधि "प्रदान की गई।   2) सरोजिनी नायडू को उनकी रचनाओं के लिए " भारत कोकिला " की उपाधि दी गई थी। 3) उनके जन्मदिन की भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस के रुप में मनाया जाता है। 4) वह 1925 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की अध्यक्ष चुनी गई। 5) उन्हें आजादी के बाद उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल नियुक्त किया गया। 6) उनकी मृत्यु 2 मार्च, 1949 को दिल का दौरा पड़ने से लखनऊ में हुई।  7) 12 - 13 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने 1300 पंक्तियों की "द लेडी ऑफ द लेख" नाम की कविता लिखी। सरोजिनी नायडू को इस प्रतिभा से खुश होकर उन्हें हैदराबाद के निजाम ने सालाना 4200 रुपए का वजीफा दिया। 

सरोजिनी नायडू भाग - 3

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  काव्य गोल्डेन थ्रेडसोल्ड (1905) , बर्ड ऑफ टाइम (1912) और ब्रोकेन विंग (1917) अंग्रेजी में लिखी कविताएं हैं। अंग्रेजी पुस्तकें  1) वर्ल्ड ऑफ फ्रीडम आइडिया ऑफ इंडिया ए नेश

सरोजिनी नायडू भाग - 2

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  शिक्षा और विवाह सरोजिनी नायडू ने 12 वर्ष से भी कम आयु में मद्रास यूनीवर्सिटी से मैंट्रीक्यूलेसिलेशन पास कर ली। फिर इनके पिता ने इन्हें 1895 में उच्च शिक्षा के लिए विलायत भेजा।  सरोजिनी नायडू इंग्लैंड में तीन वर्ष रही। लंदन के क्वींस कॉलेज में फिर गिर्टन में पढ़ाई की। इस दौरान उनका स्वास्थ कुछ बिगड़ गया जिसके कारण वे ईटली चली गई और वहां से सितम्बर ,1898 में हैदराबाद चली आई। दिसंबर 1898 में उनका विवाह डॉ. एम. जी. नायडू से हो गया। 

सरोजिनी नायडू भाग - 1

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  प्रारम्भिक जीवन सरोजिनी देवी का जन्म सन् 1879 ई. की 13 फरवरी को दक्षिण हैदराबाद में हुआ था।  इनके पिता का नाम डॉक्टर अघोरनाथ चट्टोपाध्याय था जो एक प्रसिद्ध ब्राह्मण कुल के थे। वे एक उच्च कोटि के वैज्ञानिक और पण्डित थे।  इनकी माता का नाम वरदा सुन्दरी चट्टोपाध्याय था जो बंगाली भाषा में कविता लिखती थी। 1877 ई. में सरोजिनी के पिता ने एडिनबरा युनिवर्सिटी से डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि प्राप्त की और स्वदेश लौट कर दक्षिण हैदराबाद में "निज़ाम कॉलेज " की स्थापना की और जीवन भर शिक्षा के कार्य में ही लगे रहें।

दुर्गा देवी वोहरा भाग - 4

गिरफ्तारी और मृत्यु  12 सितंबर, 1931 को दुर्गा देवी वोहरा को लाहौर से गिरफ्तार कर लिया गया।  भगत सिंह राजगुरू और सुखदेव की फांसी और आजाद की शहादत के बाद पार्टी काफ़ी बिखर गई। इसके बाद दुर्गा देवी अपने बेटे को लेकर दिल्ली आ गई। पुलिस ने उन्हें वहां भी परेशान किया और वे लाहौर आ गई, जहां पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया और इन्हें तीन साल तक के लिए नजरबंद कर दिया गया।  भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के असेंबली में बम फेंकने जाने से पहले, उनको दुर्गा देवी और सुशीला मोहन ने अपने रक्त से टीका लगाकर भेजा था और असेंबली के बाहर दुर्गा देवी अपने बेटे (शचिंद्र) को गोद में लेकर खड़ी रही। फिर उन्हे बंबई गोली कांड में तीन साल की सजा हुई और उन्हें फरार होना पड़ा। उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों की वजह से उन्हें " जिलाबदर " कर दिया गया। 1935 में दुर्गा देवी गाजियाबाद चली आई और प्यारेलाल कन्या विद्यालय में अध्यापिका की हैसियत से काम करने लगी।  1937 में दिल्ली " प्रदेश कांग्रेस कमेटी " की अध्यक्ष बनी लेकिन स्वास्थ के कारणों से उन्होंने 1937 में ही कांग्रेस त्याग दिया। सरकार ने उनके दिल्ली के ...

दुर्गा देवी वोहरा भाग - 3

भगवतीचरण वोहरा की मृत्यु भगवतीचरण ,यशपाल और धनवंतरी की सहायता से चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को लाहौर जेल से निकालने की योजना बनायी।  आजाद की योजना के अनुसार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को उस समय बचाना था, जब वे सेंट्रल से बोसर्टल जेल में ले जाए जाते थे।  28 मई को भगवती चरण, सुखदेव राज और वैशम्पायन के साथ एक बम लेकर लाहौर से कुछ दूरी पर रावी नदी के किनारे के जंगलों में बम टेस्ट करने के लिए गए।  शाम का समय था भगवती चरण के हाथ में बम था ,बम का पीन ढ़ीला था जिसके कारण बम उनके हाथ में ही फट गया। जिससे भगवती चरण का दायां हाथ , चेहरा, बाजू और पेट का कुछ अंश भी उड़ गया। आंखे बाहर निकल आयी और खून की धारा बहने लगी।  वैशम्पायन जी ने तुरन्त ही उनको अपनी गोदी में ले लिया और रोने लगे।  भगवती चरण ने कहा ," पंडित जी से मेरी तरफ से क्षमा मांग लेना, मैं उनका काम पूरा न कर सका। लेकिन मेरे जानें से 1 जून को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को छुड़ाने की योजना पूरी जरूर करें।" 28 मई,1930 को लाहौर में उनकी मृत्यु हो गई।

दुर्गा देवी वोहरा भाग - 2

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  क्रांतिकारी जीवन दुर्गा देवी वोहरा के पति क्रांतिकारियों के साथी थे इसलिए उन्हें सभी सम्मान से " दुर्गा भाभी " कहते थे।  दुर्गा देवी का काम राजस्थान से हाथियार लाकर क्रान्तिकारियों को देना था।चंद्रशेखर आजाद ने जिस पिस्तौल से खुद को गोली मारी थी, वो भी दुर्गा देवी ने ही उन्हें लाकर दी थी। भगवती चरण वोहरा ने " हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी " के लिए घोषणा पत्र तैयार किया था।  अंग्रेजी सरकार के द्वारा करतारसिंह को मात्र 19 वर्ष की आयु में फांसी दे दी गई थी। भारतीय नौजवान सभा ने 1926 में शहीदी दिवस पर उनकी मूर्ति स्थापित की थी। उस पर जो सफेद कपड़ा उढ़ाया जाने वाला था, उसे दुर्गा देवी और सुशीला देवी ने अपनी उंगलियों से खून निकाल कर रंगा था।  दुर्गा देवी के ससुर ने मृत्यु से पहले उन्हें 40,000 हजार रूपए और उनके पिता ने 5000 हजार रुपए दिए थे। ताकि उनके बुरे समय में काम आए।  पर दुर्गा देवी ने इस धन का इस्तेमाल क्रान्तिकारियों की मदद के लिए किया। 1927 में साइमन कमीशन भारत आया, जिसका विरोध लाला लाजपत राय के साथ मिलकर क्रान्तिकारियों ने किया ,जिसमें अंग्रेजी पु...

दुर्गा देवी वोहरा भाग - 1

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भारत की स्वतंत्रता में महिलाओं का भी बहुत बड़ा सहयोग रहा है। जिसमें से दुर्गा देवी वोहरा एक है। प्रारंभिक जीवन दुर्गा देवी वोहरा का जन्म 7 अक्टूबर, 1907 को इलाहबाद के शहजादपुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम यमुना देवी और पिता का नाम बांके बिहारी बट्ट था। उनके जन्म के 10 माह बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया।  विवाह और शिक्षा उनकी शिक्षा आगरा में हुई और उनके होने वाले पति भगवती चरण वोहरा भी आगरा में ही शिक्षा प्राप्त कर रहें थे। दुर्गा देवी वोहरा जब 11 वर्ष की थी तब उनका विवाह 15 वर्षीय भगवती चरण वोहरा से कर दिया गया था। बाद में भगवती चरण वोहरा लाहौर चले गए और अपनी पत्नि को भी साथ ले गए।  1923 में दुर्गा देवी और भगवती चरण वोहरा ने प्रभाकर की डिग्री हासिल की।

अल्लुरी सीता राम राजू भाग - 2

  हाथियारो को अंग्रजों से छीनना  अल्लुरी सीताराम राजु को पता था कि वे धनुष बाण से अंग्रजों का सामना नहीं कर सकते थे। उन्होंने 22 अगस्त, सन् 1922 को पहली बार अंग्रजों से  चिंतापल्ली  हथियारों को छीन ली। अब यह सिलसिला चलता रहा। फिर कृष्णादेवीपेटा पुलिस थाने और राजवोमांगी पर लगातार तीन बार बंदूकें, कारतूस और तलवारें आदि छीन लिए गए। मई 1922 से मई 1924 तक राजू ने 10 से ज्यादा थानों से हथियार लूटे। इससे तंग आकर अंग्रेजों ने पुलिस थाने में हाथियार रखना छोड़ दिया।  अंग्रेजों को चुनौती  आंध्र प्रदेश के " रंपा" क्षेत्र के निवासी इन्हें आश्रय दिया करते थे।  अंग्रेजों के बहुत कोशिश के बावजूद भी जब अल्लुरी को वे पकड़ नहीं पाये तब, उन्होंने अल्लुरी के एक क्रांतिकारी साथी " विरैयाद्रो " को पकड़ा और उन्हें फांसी की सजा सुना दी। लेकिन अल्लुरी राजु ने अंग्रेजों को चुनौती देते हुए, अपने साथी  विरैयाद्रो  को छुड़ा ले गए।  इसके बाद अंग्रेज सरकार ने अल्लूरी सिताराम राजू को पकड़ने के लिए 10,000 का ईनाम भी रखा गया। गिरफ्तारी 7 मई ,1924 को अल्लुरी सीताराम ...

अल्लुरी सीता राम राजू भाग - 1

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  प्रारंभिक जीवन अल्लुरी सीताराम राजु का जन्म 4 जुलाई 1897 को विशाखापटनम के पांडुरंगी गांव हुआ था। इनके पिता का नाम वेंकटराम राजू और माता का नाम सूर्यनारायणम्मा था।  बहुत ही कम आयु में इनके पिता का देहांत हो गया और इनके पालन - पोषण की जिम्मेदारी इनके चाचा अल्लूरी रामकृष्ण ने निभायी।  अल्लुरी सीताराम ने तीरंदाजी, घुड़सवारी और ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन किया।  इन्होंने संन्यासी के तौर पर तक सीतामाई नामक पहाड़ी पर साधना भी की।  अल्लुरी के सहयोगी  1920 में जब गांधी जी का असहयोग आन्दोलन चल रहा था। तब आंध्रा प्रदेश में भी इस आंदोलन का असर था। इस आंदोलन को गति देने के लिए अल्लुरी सीताराम राजु ने पंचायत की स्थापना की और लोगों से अपने आपसी विवाद सुलझाने की अपील की।  अल्लुरी गांधी जी से बहुत प्रभावित थे , इसलिए उन्होंने वनवासियों और ग्राम वासियों को इस आंदोलन में भाग लेंगे के लिए प्रोत्साहित किया। वे ग्रामवासियों को शराब छुड़वाने के लिए प्रेरित करते थे।  असहयोग आन्दोलन असफल होने से वे बहुत ही नाराज हुए।  अंग्रेजो के लाए  फॉरेस्ट एक्ट  के तहत ल...

शचींद्रनाथ सान्याल भाग - 4

  काला पानी की सजा  पहली बार जब उन्हें " काला पानी " की सजा हुई, तब 1937 में संयुक्त प्रदेश में कांग्रेस मंत्रिमंडल की स्थापना के बाद बाकी क्रांतिकारियों के साथ वह रिहा कर दिये गये। रिहा होने पर कुछ दिनों तक वे कांग्रेस के प्रतिनिधि थे, लेकिन बाद में वह फॉरवर्ड ब्लॉक में शामिल हुए। इसी समय काशी में उन्होंने "अग्रगामी " नाम से एक दैनिक पत्र निकाला। वे खुद इसके संपादक थे।  द्वितीय विश्व युद्ध के शुरू होने से पहले 1940 में शचींद्रनाथ को " कालेपानी " की सजा दे दी गई। उनकी दूसरी जेल यात्रा के दौरान उन्हें टीबी हो गया और 1942 में उनकी मौत हो गई।

शचींद्रनाथ सान्याल भाग - 3

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  क्रांतिकारी गतिविधियां शचींद्रनाथ सान्याल कई क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थे ,जैसे - 1912 में अंग्रेज़ी वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकना, 1915 की ग़दर क्रान्ति ,राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान के साथ काकोरी काण्ड में ,चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एच. आर. ए.) का गठन। सान्याल ने राइट टू रिकॉल  का विचार दिया  , जिसका अर्थ है - " आपके चुने हुए मंत्री अगर आपकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते हैं, तो उनका कार्यकाल खत्म होने से पहले ही उनको वोटिंग के जरिए पद से हटाने का अधिकार था।" "द रिवोल्यूशनरी " नाम से छापे जाने वाले उनके संगठन का घोषणा पत्र बांटते समय बांकुरा में सान्याल जी को गिरफ्तार कर लिया और दो साल की सजा दी गई। काकोरी काण्ड में शामिल होने के कारण सान्याल जी को काला पानी की सजा हुई। शचींद्रनाथ सान्याल गांधी जी के अहिंसावादी विचार के सख्त विरोधी थे। 

शचींद्रनाथ सान्याल भाग - 2

1912 में जब वायसराय " हार्डी " के ऊपर बम फेंके जाने की घटना हुई थी,तब शचींद्रनाथ की मुलाकात रासबिहारी बोस से हुई।  रासबिहारी ,शचींद्रनाथ से काफी प्रभावित थे और उनके साथ बनारस आ गए। उसी समय सैनफ्रांसिसको में बनी  ग़दर पार्टी  भारत में एक सेना क्रान्ति की योजना बनायी है। उस योजना के तहत  ग़दर पार्टी  के कई सदस्य बनारस चले आये और यहां पर ग़दर पार्टी को रासबिहारी और शचींद्रनाथ का सहयोग मिला। सेना क्रान्ति करने का दिन 21 फरवरी ,1915 को तय हुआ, पर बाद में इसे 19 फरवरी कर दिया गया। लेकिन इस योजना की जानकारी किसी ने अंग्रेज सरकार को दे दी, जिसके कारण ये असफल हो गई।

शचींद्रनाथ सान्याल भाग - 1

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  प्रारंभिक जीवन   शचींद्रनाथ सान्याल का जन्म 3 जून ,1893 को बनारस में हुआ था। उनके पिता का नाम हरिनाथ सान्याल और मां का नाम क्षीरोदाबासनी देवी था।  जब उनकी उम्र 15 साल की थी, तब उनके पिता का देहांत हो गया।  उनके भाई जतीन्द्रनाथ दास और भूपेंद्रनाथ भी जाने माने क्रांतिकारी थे।  उनकी प्रारंभिक शिक्षा क्वींस कॉलेज , बनारस में हुई थी।  अनुशीलन समिती 1902 में सतीशचंद बसु द्वारा बनायी गई , अनुशीलन समिती जो भारतीय क्रांतिकारियों का एक प्रमुख दल था।  बनारस में ढाका अनुशीलन समिती की स्थापना की गई। अंग्रेज सरकार ने इनका नाम यंग मैन एसोसिएशन  रखा गया। इसमें शारीरिक विकास के लिए खेलकूद आदि कराया जाता था। इसके माध्यम से वह युवाओं को क्रांतिकारी बनाना चाहते थे।  इस समिति को चलाने के कारण, अंग्रेज सरकार द्वारा शचींद्रनाथ सान्याल को कई तरह से परेशान किया जाता था।

मौलाना महमूद हसन

1) कुछ लेखों के अनुसार  मौलाना महमूद हसन  के जन्म की तारीख की सही जानकारी तो नहीं है, लेकिन सन् 1851 में इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बरेली में हुआ बताया गया है। 2) इनके पिता मौलाना मुहम्मद जुल्फिकार अली अरबी भाषा के प्रसिद्ध विद्वान थे। एक इस्लामिक शिक्षा संस्था दारुल उलम देवबंद के पहले छात्र थे।  1873 में दारुल उलूम से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद ,1874 में वहीं अध्यापक न्युक्त हो गए और 1915 तक वे यहां कार्यरत रहे। 3) मौलाना महमूद हसन एक प्रसिद्ध शिक्षक, समाज सुधारक और राजनीतिक कार्यकर्ता थे। इन्होंने देवबंद से ताल्लुक रखने वाले कई लोगों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया। महमूद हसन की संस्था जब मौलाना महमूद हसन " दारुल उलूम" में अध्यापक थे , तब उन्होंने " समरातुल तरबिया " नामक एक संस्था बनायी थी। जिसका उद्देश्य अपने छात्रों को भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में अपना योगदान देना। 1909 में इसका " जामियातुल अंसार " नाम से पुनर्गठन किया गया और "मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी " को इसका प्रबंधक नियुक्त किया गया। रणनीति...

मन्मथनाथ गुप्त भाग - 2

1) गुप्त जी मात्र 13 साल की उम्र से ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए और जेल भी गए।  2) वे हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य भी बने।  3) साल 1921 में जब प्रिंस एडवर्ड बनारस आये ,तब क्रांतिकारी चाहते थे कि बनारस के महाराजा उनका बहिष्कार करें। इसलिए मन्मथनाथ जी भी लोगों को जागरूक करने के लिए पर्चे बांटे जिसकी वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 3 महीने की सजा सुना दी गई। 4) 17 साल की उम्र में उन्होंने काकोरी काण्ड में भी भाग लिया। उनकी वजह से एक रेल यात्री की मृत्यु हो गई थी। जिसकी वजह से उन्हें 14 साल का कारावास हुआ।  5) 1937 में जेल से रिहा होने के बाद ,गुप्त जी क्रान्तिकारी लेख लिखने लगे। जिसके कारण उन्हें 1939 में फिर से कारावास की सजा सुना दी गई।  6) देश के स्वतन्त्र होने से 1 वर्ष पहले तक वे जेल में रहे।  मन्मथनाथ गुप्त जी की लिखीं पुस्तकें 1) गुप्त जी ने लगभग 80 पुस्तकें लिखी। उपन्यास " बहता पानी " 1955 में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास क्रांतिकारी चरित्रों पर केंद्रित था।  2) स्वतंत्रता के बाद " योजना " , " बाल भारती " और "आज कल ...

मन्मथनाथ गुप्त भाग - 1

  प्रारंभिक जीवन  मन्मथनाथ गुप्त का जन्म 7 फरवरी ,1908 में वाराणसी में हुआ था।  उनके दादा 1880 में ही बंगाल छोड़कर बनारस आ गए थे। मन्मथनाथ गुप्त जी के पिता का नाम वीरेश्वर गुप्त था।  उनके पिता पहले नेपाल के विराट नगर में प्रधानाध्यापक थे, बाद में वे बनारस आ गए।  शिक्षा   मन्मथनाथ गुप्त की की शिक्षा दो वर्ष तक नेपाल में हुई, फिर काशी विद्यापीठ में हुई।

डॉक्टर मथुरासिंह भाग - 3

  गिरफ्तारी और फांसी बाद में मथुरासिंह जी को पंजाब भेज दिया गया।  मथुरासिंह जी बम बनाने में माहिर थे। पूरे भारत में एक संगठन तैयार हुआ और विद्रोह खड़ा करने की योजना थी। लेकिन संगठन के गद्दार " कृपाल " के कारण अंग्रेज सरकार को पता चल गया और धर पकड़ शुरू हो गई। लेकिन मथुरासिंह जी पकड़े नहीं गए। इसके बाद मथुरासिंह जी काबुल की ओर गये ,"वजीराबाद" स्टेशन पर पुलिस ने इन्हें पकड़ लिया, पर वहां कुछ घूस देकर वे बच निकले। काबुल जानें के बाद उन्हें वहां का " चीफ मेडीकल ऑफिसर " नियुक्त किया गया। बाद में उन्हें किसी की मुखबिरी के कारण " ताशकंद" में गिरफ्तार कर लिया गया। फिर इनके ऊपर मुकदमा चला और मृत्यु दण्ड सुनाया गया और 27 मार्च 1917 को इन्हें फांसी दे दी गई।  

डॉक्टर मथुरासिंह भाग - 2

1913 में मथुरासिंह भारत से चले गये,पर धन की कमी के कारण इनको " शंघाई " में ही रुकना पड़ा। वहीं पर इन्होंने चिकित्सा कार्य शुरू किया, जिसमें मथुरासिंह जी काफी सफल रहें।  मथुरासिंह कुछ और भारतीयों के साथ कैनेडा गए,पर इमिग्रेशन विभाग से अपने साथियों को न आने देने के लिए बहस हुई और मुकदमा भी चला। लेकिन सरकार ने कहा कि "क्योंकि वे कैनेडा में किसी जहाज द्वारा सीधे नहीं आए है।" फिर मथुरासिंह शंघाई लौट आए। उन्होंने बाबा गुरुदत्तसिंह को एक अपना जहाज बनाने की सलाह दी, जो सीधे कैनेडा जाये। इसी सलाह से गुरुदत्तसिंह जी ने एक " कामागाटामारु " जहाज किराये पर ले लिया और उसका नाम " गुरु नानक " जहाज रखा। किसी कारण मथुरासिंह जी को पंजाब जाना पड़ा। सिंगापुर से ,लगभग 35 साथियों के साथ, दूसरे जहाज से चले, ताकि शंघाई तक " कामागाटामारु " जहाज मिलकर उस पर सवार हो। हांगकांग पहुंचने पर पता चला कि जहाज वहां से भी जा चुका है और मथुरासिंह वहीं ठहर गए।  मथुरासिंह "हांगकांग" में प्रचार का कार्य शुरू किया। अमेरिका से गदर पार्टी का गदर अखबार आता था। इन्होंने...

डॉक्टर मथुरासिंह भाग - 1

भगत सिंह के के द्वारा फरवरी, 1928 में लिखे शहीदों के जीवन परिचय के अनुसार - डॉक्टर मथुरासिंह का जन्म सन् 1883 ई. में ढूंढियाल नामक गांव के, जिला झेलम (पंजाब) में हुआ था। इनके पिता का नाम सरदार हरिसिंह था।  शिक्षा   इनकी शुरुआती शिक्षा इनके गांव में ही हुई, इसके बाद वे चकवाल के हाई स्कूल में पढ़ने लगे। यह अपने सहपाठियों से हमेशा अच्छा व्यवहार करते थे।  हाई स्कूल के बाद वे प्राइवेट तौर पर डॉक्टरी का काम सीखने लगे।  मैसर्स जगतसिंह एण्ड ब्रदर्स की दुकान रावलपिंडी में थी। वहीं पर मथुरासिंह जी ने यह काम सीखना शुरू किया। तीन - चार साल के परिश्रम के बाद वह इस कार्य में प्रवीण हो गए और नौशेरा छावनी में एक दुकान खोल ली।  मथुरासिंह सभी देशाें से चिकित्सा संबंधी पत्र - पत्रिकाएं मंगवाकर पढ़ा करते थे। वे आगे पढ़ने के लिए अमेरिका जाना चाहते थे। तभी इनकी पत्नी और पुत्री का देहांत हो गया। 

बलवंत सिंह भाग - 2

  कैनेडा में शव जलाने का प्रबंध उस समय कैनेडा के प्रवासी हिंदुओं और सिक्खों को मृतक - संस्कार करने में बड़ी विपत्ति होती थी। मुर्दे जलाने की उन्हें आज्ञा नहीं थी। ऐसी अवस्था में उन लोगों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता था।  कई बार उन्हें बारिश में, बर्फ में, शवों को जंगल में ले जाकर , कुछ लकड़ियों को इकठ्ठा करके, तेल डालकर आग लगाकर भागना पड़ता था। ऐसी स्थिति में भी कैनेडियन लोगों की गोली का निशाना बनने का डर रहता था।  बलवंत सिंह जी ने यह असुविधा दूर करने के लिए ,कुछ जमीन खरीद ली और दाह संस्कार करने की आज्ञा भी ले ली।  गुरूद्वारा बलवंत सिंह जी के ही परिश्रम से बना था ,इसलिए सभी ने मिलकर उन्हें ही ग्रंथी बनाने का निश्चय किया। पहले तो इन्होंने मना किया, पर फिर स्वीकार कर लिया।  पहला गुरुद्वारा कैनेडा में जाकर बलवंत सिंह जी अपने दूसरे साथी भागसिंह जी से मिलकर गुरुद्वारा बनाने का काम शुरू किया। बैंकोवर में ही इनके प्रयत्न से अमेरिका का सबसे पहला गुरुद्वारा स्थापित हुआ।