प्रीतीलता वादेदार भाग - 3

 अंग्रेज़ी क्लब पर हमला और विरगति 

चटगांव में "पहाड़तल्ला " के निकट अंग्रजों का एक बदनाम क्लब चलता था, जिसमें भारतीयों की खुलकर निंदा की जाती थी। उस क्लब के बाहर लगे बोर्ड पर लिखा था ," भारतीय और कुत्तों का आना मना है।" 

23 दिसंबर, 1932 को मात्र 21 साल की उम्र में प्रीतीलता के नेतृत्व में तीन क्रान्तिकारियों ने क्लब के तीनों फाटकों से अंग्रेजों पर गोलियां चलाना शुरू कर दिया। कुछ देर में दोनों तरफ से गोलियां चलने लगी। प्रीतीलता के अलावा किसी क्रांतिकारी को चोट नहीं लगी। 


उस समय क्लब में मौजूद सभी अंग्रेज मारे गए। तभी वहां अंग्रेजी सैनिक गाडियां आ गई। प्रीतीलता के सीने से खून निकल रहा था , इसलिए उन्होंने सभी साथी क्रान्तिकारियों को वहां से भेज दिया और खुद वही रुक गई।

जब उन्हें लगा की वे वहां से भागने की हालत में नहीं है तो प्रीतीलता अपने पास रखी जहर की पुड़िया खा कर वीरगति को प्राप्त हो गई। 

प्रीतीलता का कहना था ," यदि हमारे भाई मातृभूमि की स्वाधीनता के संघर्ष में शामिल हो सकते है, तो हमारी बहनें क्यों नहीं।" 

प्रीतिलता की उस समय की रोकी गई डिग्री 80 साल बाद के. आर. नारायनन के प्रयास से जारी की गई। 

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