मौलाना महमूद हसन

1) कुछ लेखों के अनुसार मौलाना महमूद हसन के जन्म की तारीख की सही जानकारी तो नहीं है, लेकिन सन् 1851 में इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बरेली में हुआ बताया गया है।

2) इनके पिता मौलाना मुहम्मद जुल्फिकार अली अरबी भाषा के प्रसिद्ध विद्वान थे। एक इस्लामिक शिक्षा संस्था दारुल उलम देवबंद के पहले छात्र थे। 

1873 में दारुल उलूम से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद ,1874 में वहीं अध्यापक न्युक्त हो गए और 1915 तक वे यहां कार्यरत रहे।

3) मौलाना महमूद हसन एक प्रसिद्ध शिक्षक, समाज सुधारक और राजनीतिक कार्यकर्ता थे। इन्होंने देवबंद से ताल्लुक रखने वाले कई लोगों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया।

महमूद हसन की संस्था

जब मौलाना महमूद हसन " दारुल उलूम" में अध्यापक थे , तब उन्होंने " समरातुल तरबिया " नामक एक संस्था बनायी थी। जिसका उद्देश्य अपने छात्रों को भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में अपना योगदान देना।


1909 में इसका " जामियातुल अंसार " नाम से पुनर्गठन किया गया और "मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी " को इसका प्रबंधक नियुक्त किया गया।

रणनीति

"मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी " मौलाना महमूद हसन के एक बहुत काबिल शागिर्द और प्रमुख सहयोगी भी थे। मौलाना महमूद हसन ने कई देशों का दौरा भारत को गुलामी से आजाद कराने की सोच के साथ किया।


मौलाना महमूद हसन एक रणनीति के तहत सहायता के लिए तुर्की सरकार से मिलने के लिए ,हज का बहाना बनाकर , हिजाज चले गए और मक्का में वे " गवर्नर गालिब पाशा " से मिले, अपनी पूरी योजना (देश को स्वतंत्र कराने की) समझायी। तब गवर्नर साहब ने उनकी हर तरह से सहायता करने का वादा किया।


महमूद हसन ने गालिब पाशा को अपनी योजना समझायी, तब गालिब पाशा ने मदीने के गवर्नर "बसरी पाशा " के नाम का पत्र दिया। जिसमें मौलाना महमूद हसन की मुलाकात तुर्की सरकार के युद्धमंत्री " अनवर पाशा "  से करवाने की बात लिखी गई थी।

गिरफ्तारी और मृत्यु

महमूद हसन को 17 दिसंबर ,1916 को मदीना से उनके साथियों सहित गिरफ्तार करके " जेद्दा" की जेल में ,फिर 16 जनवरी, 1917 को " जेजा " में एक बंदरगाह में,एक कैदखाने में डाल दिया गया। अंत में उन्हे " माल्टा " की जेल में बंद किया गया और बहुत प्रताड़ित किया गया।

फिर 1920 के मई महिने में उन्हें रिहा कर दिया गया और वे अपने साथियों के साथ भारत वापस लौट आए।


जेल में हुए अत्याचारों के वजह से उनका शरीर काफी कमजोर हो गया था। डॉक्टरों की आराम करने की सलाह के बाद भी वे भारत की आजादी के अपने सपने को सच करने में लगे रहे और डॉक्टरों के कहने पर भी आराम न करने के कारण , 30 अक्टूबर, 1920 को बीमारी के कारण इनकी मृत्यु हो गई।

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