डॉक्टर मथुरासिंह भाग - 2

1913 में मथुरासिंह भारत से चले गये,पर धन की कमी के कारण इनको " शंघाई " में ही रुकना पड़ा। वहीं पर इन्होंने चिकित्सा कार्य शुरू किया, जिसमें मथुरासिंह जी काफी सफल रहें। 


मथुरासिंह कुछ और भारतीयों के साथ कैनेडा गए,पर इमिग्रेशन विभाग से अपने साथियों को न आने देने के लिए बहस हुई और मुकदमा भी चला। लेकिन सरकार ने कहा कि "क्योंकि वे कैनेडा में किसी जहाज द्वारा सीधे नहीं आए है।"


फिर मथुरासिंह शंघाई लौट आए। उन्होंने बाबा गुरुदत्तसिंह को एक अपना जहाज बनाने की सलाह दी, जो सीधे कैनेडा जाये। इसी सलाह से गुरुदत्तसिंह जी ने एक " कामागाटामारु " जहाज किराये पर ले लिया और उसका नाम " गुरु नानक " जहाज रखा।

किसी कारण मथुरासिंह जी को पंजाब जाना पड़ा। सिंगापुर से ,लगभग 35 साथियों के साथ, दूसरे जहाज से चले, ताकि शंघाई तक " कामागाटामारु " जहाज मिलकर उस पर सवार हो। हांगकांग पहुंचने पर पता चला कि जहाज वहां से भी जा चुका है और मथुरासिंह वहीं ठहर गए। 

मथुरासिंह "हांगकांग" में प्रचार का कार्य शुरू किया। अमेरिका से गदर पार्टी का गदर अखबार आता था। इन्होंने भी "हांगकांग" से ऐसा ही गुप्त अखबार छपवाकर लोगों में बांटना शुरु कर दिया।

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