तिब्बत - भारत फ्रंटियर : ब्रिटिश व तिब्बती महादूतों के बीच नोट्स विनिमय
भारत - तिब्बत फ्रंटियर 1914 : ब्रिटिश व तिब्बती महादूतों के बीच नोट्स विनिमय
1) सीमा पर ब्रिटिश पक्ष में स्थित निजी तिब्बती संपत्तियां को किसी प्रकार छेड़ा नहीं जाएगा।
2) ब्रिटिश पक्ष की सीमा में पड़ने वाले त्सो कारपो और त्सारी सारपा के के पवित्र स्थलों को तिब्बती क्षेत्र में और तदनुसार परिवर्तित सीमा में शामिल किया जाएगा।
मैं समझती हूं कि उपरोक्त दो स्थितियों के सीमा विषय पर आप की सरकार सहमत हो गई है। इस तथ्य को आपकी तरफ से निश्चित रूप से जानकर मुझे खुशी होगी।
आपने जानने की इच्छा की थी कि त्सोना जोंग ,कोंग्बु और कम में मोंपा और लोपा को बेचे गए माल के बकाया की अदायगी जो तिब्बती सरकार के द्वारा एकत्र कि गई क्या अब भी एकत्र की जाएगी ? श्रीमान बेल ने आपको सूचना दी कि आप जब उन्हें बाकी की सूचना देंगे, उन्होंने वादा किया है कि ऐसे मामलों को दोस्ताना ढंग से निपटाया जाएगा।
भारत तिब्बत सीमा का यह अंतिम हल भविष्य में विवादों को रोकने में सहायक होगा और दोनों सरकारों के हितों का विषय बनने से न चूकेगा।
ए.एच.मैकमोहन
ब्रिटिश महादूत, दिल्ली
24 मार्च 1914
ब्रिटिश महादूत हेनरी मैकमोहन
मुझे ल्हासा से आदेश प्राप्त हो गए है और आपके द्वारा हस्ताक्षर किए गए नक्शे की दो प्रतियों में लाल रंग से रेखांकित सीमा से मैं सहमत हूं जो श्रीमान बेल के मार्फत मुझ तक पहुंचाए गए 24 मार्च के आपके पत्र के साथ है।
मैंने नक्शे की दो प्रतियों पर हस्ताक्षर और मुहर लगा दिए गए है। एक कौपी मैंने रख ली है और दूसरी लौटा रहा हूं।
तिब्बती महादूत लोंचेन शात्रा द्वारा काठ - चीता - वर्ष के पहले माह के 29 वें दिन (25 मार्च 1914) को प्रेषित।
लोंचेन शात्रा की मुहर
( इन नोट्स मी जिस नक्शे की बात कही गई है उसका प्रकाशन " एन एटलस ऑफ द नारदर्न फ्रटियर ऑफ इंडिया " , में हुआ को भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 15 जनवरी 1960 को जारी किया गया। )
तिब्बती महादूत लोंचेन शात्रा को
फरवरी में आपने स्वीकार था कि भारत तिब्बत सीमा इसुराजी दरें लेकर भूटान फ्रंटियर तक है जैसा की नक्शे में दिया गया है,इसकी दो प्रतियां आपके सरकार की स्वीकृति के लिए और कुछ शर्तों के साथ संलग्न है -1) सीमा पर ब्रिटिश पक्ष में स्थित निजी तिब्बती संपत्तियां को किसी प्रकार छेड़ा नहीं जाएगा।
2) ब्रिटिश पक्ष की सीमा में पड़ने वाले त्सो कारपो और त्सारी सारपा के के पवित्र स्थलों को तिब्बती क्षेत्र में और तदनुसार परिवर्तित सीमा में शामिल किया जाएगा।
मैं समझती हूं कि उपरोक्त दो स्थितियों के सीमा विषय पर आप की सरकार सहमत हो गई है। इस तथ्य को आपकी तरफ से निश्चित रूप से जानकर मुझे खुशी होगी।
आपने जानने की इच्छा की थी कि त्सोना जोंग ,कोंग्बु और कम में मोंपा और लोपा को बेचे गए माल के बकाया की अदायगी जो तिब्बती सरकार के द्वारा एकत्र कि गई क्या अब भी एकत्र की जाएगी ? श्रीमान बेल ने आपको सूचना दी कि आप जब उन्हें बाकी की सूचना देंगे, उन्होंने वादा किया है कि ऐसे मामलों को दोस्ताना ढंग से निपटाया जाएगा।
भारत तिब्बत सीमा का यह अंतिम हल भविष्य में विवादों को रोकने में सहायक होगा और दोनों सरकारों के हितों का विषय बनने से न चूकेगा।
ए.एच.मैकमोहन
ब्रिटिश महादूत, दिल्ली
24 मार्च 1914
ब्रिटिश महादूत हेनरी मैकमोहन
चीन तिब्बत अधिवेशन का संदर्भ
जैसा की इस बात का भय था कि भारत और तिब्बत के बीच सीमा निर्धारित न होने पर भविष्य में तनाव हो सकता है, आपने फरवरी के अंत में जो नक्शा प्रेषित किया था उसे मैंने आदेश हेतु ल्हासा में तिब्बती सरकार को भेजा था।मुझे ल्हासा से आदेश प्राप्त हो गए है और आपके द्वारा हस्ताक्षर किए गए नक्शे की दो प्रतियों में लाल रंग से रेखांकित सीमा से मैं सहमत हूं जो श्रीमान बेल के मार्फत मुझ तक पहुंचाए गए 24 मार्च के आपके पत्र के साथ है।
मैंने नक्शे की दो प्रतियों पर हस्ताक्षर और मुहर लगा दिए गए है। एक कौपी मैंने रख ली है और दूसरी लौटा रहा हूं।
तिब्बती महादूत लोंचेन शात्रा द्वारा काठ - चीता - वर्ष के पहले माह के 29 वें दिन (25 मार्च 1914) को प्रेषित।
लोंचेन शात्रा की मुहर
( इन नोट्स मी जिस नक्शे की बात कही गई है उसका प्रकाशन " एन एटलस ऑफ द नारदर्न फ्रटियर ऑफ इंडिया " , में हुआ को भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 15 जनवरी 1960 को जारी किया गया। )
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