तिब्बत का इतिहास भाग-1
तिब्बत का इतिहास 127 ई . से 842 ई. तक
1) चीन का यह कहना है कि " तिब्बत चीन का एक अभिन्न हिस्सा है " इस बात को उचित ठहराने के लिए रचा गया था ,बीजिंग रिव्यू, ग्रंथ 26, अंक 24 ,13 जून सन् 1983 में तोड़ मरोड़ कर और अधूरे रूप में छपा था।लाब्संग तथा जिन यून नामक शोधकर्ताओं ने अस्पष्ट तौर पर सौड़त्सेन गैम्पो को मान्यता दी ,लेकिन यह उन्होंने नहीं माना कि यह तिब्बत का 23 वा राजा था।
तिब्बत का पहला राजा न्यीतरी त्सेंपो , जिसका अर्थ है " सिंहासन पर गर्दन वाला राजा गिना जाता है। जो 127 ई. पू. सिंहासन पर बैठा था।
2) यही से वर्तमान राजकीय तिब्बती कैलेण्डर का "भूटान वर्ष " गिना जाता है। राजा ने याबुलाखंड नाम से प्रसिद्ध पहला किला बनवाया।
3) उस लेख में तिब्बती इतिहास के 831 महत्वपूर्ण साल सिर्फ इसलिए छोड़ दिए गए थे कि उन वर्षों का चीनी साम्राज्य या उसने दावों से कुछ लेना देना नहीं है।
रिव्यू का कहना है कि लेखकों ने " तिब्बत के इतिहास को सुनियोजित ढंग से बिगाड़ा है। "
सौंडत्सेन गैंपो (617 - 619) के समय एशिया में समान हैसियत के बीच विवाह संबंध आम बात थी।
सम्राट ने राजकुमारी वेन चेंग कुंग - चू के अलावा नेेेेपाल के राजा अंशूवर्मन की पुत्री राजकुमारी भृकुटि देवी से भी शादी की थी।
4) चीनी सम्राट तआई त्सुंग की समाधि के पास सम्राट सौंडत्सेन गैंपो का बुत इसलिए बनाया गया था कि इससे सम्राट त्सुंग का सम्राट गैंपो के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट होता है।
648 ई. में चीनी सम्राट ने वांग यून - त्से के नेतृत्व में भारतीय सम्राट हर्ष ( 606 - 647) के दरबार में एक सद्भावना मंडल भेजा था।
5) इसी दौरान हर्ष की सत्ता ,उसी के अर्जुन नामक एक मंत्री ने ले ली और उसी के आदर्शो के तहत वांग यून - त्से के 30 के 30 अंगरक्षकों को मौत के घाट उतार दिया गया।
लेकिन वांग भागकर नेेेेपाल पहुंच गया और वहां से उसने तिब्बती सम्राट से सहायता मांगी। सम्राट ने चीनी मंत्री को तुरन्त सहायता दी ताकि वह अपमान और अंगरक्षकों की मौत का बदला ले सके।
चीनी सम्राट इस सहायता से इतना आभारी हुआ कि उसने मृत्यु के बाद अपनी कब्र के पास तिब्बती सम्राट का बुत बनाने का अनुबंध किया।
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