तिब्बत और कश्मीर की सन्धि के नियम क्या थे?

तिब्बत और कश्मीर की सन्धि ,1852 में दलाई लामा द्वारा नियुक्त दो " गारपन " ( क्षेत्रीय गवर्नर ) तथा कश्मीर के महाराजा के प्रतिनिधियों के बीच निश्चित हुई।

(यह जल - सांड वर्ष अर्थात 1852 के माह का तीसरा दिन था।)

चाय व्यापार में कमी के कारण लद्दाखी लोगों के द्वारा तिब्बत सरकार व्यापारी " केसांड ग्युरमे " जब परंपरागत यातायात पशु देने से इन्कार हुआ तो " गारपोंस " ने ' नेरपा ' को इस मामले में और लद्दाख तिब्बत सीमा विवाद की जांच के लिए नियुक्त किया।


लद्दाख थानादार साहब बस्तीराम , कालोन ' रिनजिन ' और साथ में उसके नौकर येशे वांग्याल के बीच एक मुलाकात की व्यवस्था हुई कुछ प्रस्ताव बनाए गए जो इस प्रकार है -

1) भविष्य में तिब्बत के व्यापारियों के बिना किसी अवरोध के लद्दाखी आवश्यक सुविधाएं देंगे।


2) संयुक्त  ते - जिस [ यह एक तिब्बती पदवी है जिसे उस समय के गारपोंस धारण करते थे ] सरकार से यह अनुरोध करेंगे कि तिब्बत में वार्षिक उपहार के जाने के लिए सिर्फ कुशल व बुद्धिमान व्यक्तियों को ही नियुक्त किया जाए।


3) तिब्बत के सरकारी व्यापारियों के साजो सामान व नौकर प्रदान करेंगे और पुराने रिवाज़ो के अनुसार आवश्यकता पड़ने पर सहयोग भी देंगे।


4) गारपोंस आशय का आदेश पारित करेंगे कि न्गारी‌ पहुंचने वाली चाय और ऊन सिर्फ लद्दाख भेजें जाएंगे कहीं और नहीं।


5) लद्दाख और तिब्बत के बीच सीमा पहले कि ही तरह रहेंगे।

6) नमक और ऊनी माल के निर्यात और जौ के आटे पर तथा जौ के आयात पर ' रूदोक ' के लोगों द्वारा किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा।


7) कोई भी पक्ष दोनों संबंधित पक्षों द्वारा निर्धारित नियमों, चुंगी करो कि बाजार आपूर्ति की अवहेलना नहीं करेगा।
 नमक का निर्यात करने वाले ' रोंग्पा ' [घाटी में रह रही जातियां] लोगों पर भी लागू होगा।


8) रोंग से होकर उत्तर और पश्चिम से आने वाले यात्रियों था द्वारा पासपोर्ट दिया जाएगा। पासपोर्ट में वर्णित आयात निर्यात करो के प्रति वे जवाबदेह है।


9) यदि कोई अपना पासपोर्ट दिखाने में असमर्थ है तो साधारण स्थिति में ली जाने वाली राशि का 50 गुणा उससे लिया जाएगा।


10) कस्टम अधिकारियों के द्वारा लगाई ऐसी किसी भी वसूली के खिलाफ कोई सुनवाई नहीं होगी।


11) सभी महत्वपूर्ण तथ्यों पर निर्णय के समय शासन दोनों पक्षों के रिवाज़ो और व्यवहारों को ध्यान में रखेंगा और यातायात आपूर्ति से संबंधित पुराने नियमों को देखेगा।


12) सरकारी व्यापारियों के पशुओं को चरने के लिए आरक्षित चरागाहों  में चराने का अधिकार / अनुमति नहीं दी जाएगी।


इस प्रकार दोनों पक्षों के लोग तिब्बत और शिंग्पा ( कश्मीर) के मध्य इस संधि का दृढ़ता से पालन करेंगे और दो सीमांतर अधिकारी सहयोग से कार्य करेंगे।

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